________________
(१६)
कर्म-विज्ञान-भाग ५
(विषय-सूची)
१. कर्मबन्धनों की विविधता एवं विचित्रता २. ध्रुव-अध्रुवरूपा बन्ध-उदय-सत्ता-सम्बद्धा प्रकृतियाँ ३. परावर्तमाना और अपरावर्तमाना प्रकृतियाँ ४. विपाक पर आधारित चार कर्म प्रकृतियाँ ५. कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ-१ ६. कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ-२ ७. बद्ध जीवों के विविध अवस्था-सूचक स्थानत्रय ८. चौदह जीवस्थानों में संसारी जीवों का वर्गीकरण ९. जीवस्थानों में गुणस्थान आदि की प्ररूपणा १०. मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-१ ११. मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-२ १२. मार्गणाओं द्वारा गुणस्थानापेक्षया बन्ध स्वामित्व-कथन १३. मोह से मोक्ष तक की यात्रा की १४ मंजिलें १४. गाढ़ बन्धन से पूर्ण-मुक्ति तक के चौदह सोपान १५. विविध दर्शनों में आत्म-विकास की क्रमिक अवस्थाएँ १६. गुणस्थानों में जीवस्थान आदि की प्ररूपणा १७. गुणस्थानों में बन्ध-सत्ता-उदय-उदीरणा प्ररूपणा १८. औपशमिकादि पाँच भावों से मोक्ष की ओर प्रस्थान १९. ऊर्ध्वारोहण के दो मार्ग : उपशमन और क्षपण २०. ऋणानुबन्ध : स्वरूप, कारण और निवारण २१. रागबन्ध और द्वेषबन्ध के विविध पैंतरे
३४०
३८०
३९५
४२१
४६४
५०४
५२८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org