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इसके अतिरिक्त जिस किसी का भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्राप्त हुआ है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं। __- पुस्तक के सुन्दर और शुद्ध मुद्रण के लिए श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना का सहयोग प्राप्त हुआ है। वे भी साधुवाद के पात्र हैं। '
मुझे विश्वास है कि पाठक कर्मविज्ञान के पाँचों भागों को रुचिपूर्वक पढ़ेंगे और इस उच्च विज्ञान को हृदयंगम करके जीवन और जगत की समस्त जटिलताओं का समाधान प्राप्त करके मुक्ति प्राप्ति की ओर अग्रसर होंगे।
-आचार्य देवेन्द्र मुनि
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