Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ (१०) रियं ॥ १ ॥दोहा॥ तिहाथीपागल चालतां, दीगे तापस एक ॥ मनमां धीरज नपनी,अलगो टल्यो न ग॥२॥ तापस पूजे कोण तुं, सघलो कह्यो संबंध ॥ तापसने पण मूलगो, चेडागुं संबंध ॥ ३ ॥ देता पस पाशासना, म करिश दुःख लगार ।। ए संसार असार ,कुःख तणो नंमार ॥ ४ ॥ राणीने जोरेंक री, खवराव्यां फल फूल ॥ संप्रेडए साथै चल्यो,ताप स सहज अमूल ॥ ५ ॥ धागल जई ननो रह्यो,या वी गामनी सीम ॥ हल खेडी धरती हवे, मुज चाप गर्नु नीम ॥६॥ सुण पुत्री ए दंतपुर, नामें नगर न जीक ॥ दंत विक्रम राजा नलो,तुं जाजे निर्नीक ॥७॥ एम कहीने पाडो बल्यो, तापस पर उपकार ॥रा एगी पण पद्मावती, पोहोती नगर मजार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग केदारो गोडी॥ . ॥ काची कली अनारकी रे हां ॥ ए देशी॥ ॥हवे राणी नगरी गइ रेहां, प्रबंती धर्मशाल ॥ कर्म विटंबणा ॥ विधियुं वांदी साधवी रेहां,बेठी अब ला बाल ॥ कर्म वि०॥१॥है है कर्म विपाक, किम हि न लूटणां ॥ ए आंकणी ॥ रोवा लागी अति घj रेहां, नयणें नीर प्रवाह ॥ कर्मवि०॥ कोण कोण क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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