________________
(६७) रे हो क० ॥ हो स्वारथनुं सहू को मल्युं॥ स० ॥रे दो नही को राखणहार ॥दो पीड न ले कोइ पारकी ॥पा०॥रे दो ए संसार असार॥ ए॥१६॥रे हो क० ॥दो वलि मनमोहे चिंतवे ॥ चिंगारे हो जो मुज वेदन जाय॥हो तो हूं राज्य तजी करी॥ त० ॥ रे हो चारित्र लेन चित्त लाय॥ चा० ॥१७॥रे होक० ॥रे. दो एह मनोरथ मन धरी ॥ म० ॥रे हो निशि नर सूतो नमि राय ॥ रे हो सुपन दीतुं रात पाडली ॥पा० ॥ रे हो थाणंद भंग न माय ॥ आ॥ १७ ॥ रे हो क० ॥ दो मेरु कपर सुरगज चड्यो ॥सु०॥रे दो दीगो पातम रूप ॥ हो जबकी जा ग्यो गई वेदना ॥०॥ रे हो हर्षित दुवो नमि नूप ॥६० ॥१५॥रे हो कर ॥ हो औषध कोई लाग्यु नहीं। ला० ॥रेदो लाग्यो धर्म उपाय ॥ हो ढाल जणी ए चनदमी॥ च० ॥ रे हो समयसुंदर गुण गाय ॥ स ॥२०॥रे होक० ॥
॥ दोहा॥ . ॥ नमि राजा एम चिंतवी,अहो सुपनंतर सार ॥ पहेलो किहां दीगे हतो, में किणही अवतार ॥१॥ जातिसमरण कपन्युं, दीगे सुर नवनेत ॥ मेरु शिख
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org