Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए) णने को,दोष कही निरधारो रे ॥णाचा॥साची वात कही करकं,मुनिवर सघले मानी ॥ साधु जला चारे चारित्रिया,कोई नही अनिमानारे॥१०॥चा॥प्रत्ये कबुतणी धर्म चर्चा, सातमी ढाल रसाल ॥ समय सुंदर कहे साधुतणा गुण,हवे हूं कहीश विशाल रे ११
॥ ढाल बातमी॥राग गोडी॥ वाडी फूली.
अति नल। ॥ मन नमरा रे ॥ ए देशी। ॥ चारे बत्र पति राजवी॥गुण गिरुया रे॥ चारे चतुर सुजाण ॥साधु गुण गिरुथारे । चारे सकल कला नि ला॥ गुण गिरुयारे॥ चारे अमृत वाणि॥१॥साधु चारे सख्य सुत्लरकणा॥गु०॥चारे नूप निधान ॥सा॥ चारेलीला लाडला॥गुणाचारे पुरुष प्रधान ॥॥सा चारै न्याय निपुण नला ॥ गु० ॥ चारे मोहोटा जप ॥सा०॥ चारे चिर पाली प्रजा ॥गु०॥ चारे इंश सरूप ॥३॥सा॥चारे चार कारणथकी।गु०॥ चारे प्रत्येक बु६॥सा॥चारे घर रमण। तजी।गु०॥ चारे ले व्रत गु॥॥सा०॥ चारे जातिसमरणा ॥गु०॥ चारे सा धुने वेश ॥सा॥ चारे एकाकी रहे गुण॥ विचरे देश परदेश ॥॥सा॥ चारे पंच माहाव्रती॥ गुण॥चारें परम दयाल सा॥ चारे सुमति गुप्ति धरा । गु०॥
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