Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीतरागाय नमः अथ ॥श्री समयसंदरजी नपाध्याय कृत करकंत्रा दिक चार प्रत्येकबुधनो रास प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥ श्रीसिदारथ कुलतिलो, महावीर नगवंत ॥ व र्तमान तीरथ धणी, प्राणमुं श्रीअरिहंत ॥ १ ॥ तसु गणधर गौतम नमुं, लब्धि तणो नंमार ॥ काम धेनु मुरतरु मणि, वारु नाम विचार ॥२॥ वीणा पुस्त क धारिणी,समरुं सरसती माय ॥ मूरखने पंमित क रे, कालिदास कहेवाय ॥३॥ प्रगमुं गुरु माता पि ता, शानदृष्टि दातार ॥ कीडीथी कुंजर करे, ए महो श्रो उपकार ॥ ॥ गारुडी फणीथी मणि ग्रहे, ते जिम मंत्र प्रनाव ॥तिम महिमा मुज गुरु तो, मति मूढ स्वनाव ॥ ५ ॥ मुजने सुमतें जागव्यो,मत कठ रे मत ॥ गुण वर्णव गिरुया तणा, हुं तुज प्र रोश पूंठ ॥६॥ तेणें मुज उद्यम ऊपन्यो, पंखीने जि म पंख ॥ एक लान वली कहे सुमति, दूध नस्यो जि Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म शख ॥ ७ ॥ करकमू राजा डुमुख, नमि नें निग्गई -६ ॥ इण नामें उत्तम दुधा, चारे प्रत्येक बु६ ॥ ॥ ८ ॥ चारित्रिया चारे चतुर, महोटा साधु महंत ॥ चिहुं खंमें कहुं चोपई, जिम पामुं नव अंत ॥ ए॥ चार म ए चौप, चिहुं खं में परसिद्ध | प्रथम खं करकंमुनो, सांजलजो मन शुद्ध ॥ १० ॥ प्रथम ॥ श्रीकरकं प्रत्येक बुद्ध रास प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली | राग गोडी || देशी चोपाइनी ॥ ॥ जंबूनामें एदिज द्वीप, दो चंदा दो सूरज दीप ॥ भरत क्षेत्र तिहां कहीयें नलो, जिहां शत्रुज तीरथ गुण निलो ॥ १ ॥ त्रेशठ शलाका पुरुष रतन, जिदां उत्पत्ति जिन धर्म जतन ॥ साडा पचविश खारजदेश, साधु साधवी दिये उपदेश ॥ २॥ देश कलिंग नामें रसि-६, चंपा नयरी ऋद्धि समृद्ध ॥ राज्य करे दधिव) दन राय, रामचंद सम न्याय कहाय ॥ ३ ॥ तेज प्र ताप अधिक जेदनो, वचन न लोपे को तेहनो ॥ वय री राजा माने घाण, दधिवाहनना घणां वखाण ॥ ४ ॥ चेडानी जे पुत्री सात, तेह तणी सुणजो बात ॥ वीर वखाणी साते सती, नामें पाप रहे नह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रती ॥ ५ ॥ चेडो राजा श्रावक गुरू, एक तीर नाखे ते यु६ ॥ पुत्री परणाव्यानो सुंस, पण कन्याने वरनी दुस ॥६॥ श्राप थापणी मन रुचि दुई, पुत्री परणा वी जूजू॥राय नदायन परजावती, संतानिकनें मृ गावती॥ ७ ॥ श्रेणिक नृप परणी चेलणा, ते परपंच तणी खेलणा ॥ ज्येष्ठा नंदिवईन नृपघरें, लीला लाड करे बद्ध परें॥७॥ चंदप्रद्योतने परणी शिवा, मुज्येष्टा ले व्रत पालवा ॥ दधिवाहन घर पद्मावती, साक्षात् जाणे सीता सती ॥ ए॥ रूपें राणी रंन स मान, कल्पवेली जिम आपे दान ॥ राजाने पण वल्न न घj, नाम जेहनु परनातें नपुं॥ १० ॥ रूपवंतनें पाले शील, ए अधिकाइलहीयें लीलाएक शंखने दूध जस्यो, घेवर कपर बूरो धस्यो ॥११॥ एक सिंहने व ली पाखस्यो, बाप अने संयम धादयो॥ धनवंत वि निय धर्म आदरे, ज्ञानवंतने किरिया करे ॥१॥माने तीने बेटो जल्यो,बुद्धिवंतनें विद्या नण्यो॥ कंठ नलो ने गुणे सिक्षांत, ध्यान धरे ने रहे एकांत ॥१३॥ फा सुधन सुपात्रं दान,जल्यो घणुनें न करे मान ॥ तप सी न करे क्रोध लगार, एम रूप शीयल अधिकार १४ ॥राजा राणी सुख जोगवे, राज्य काज मुहतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) जोगवे || गोडीरागें पहेली ढाल, समयसुंदर कहे व चन रसाल ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ एक दिन मोहोलो उपन्यो, गर्जतणे परनाव ॥ दिन दिन थाये दूबली, राणी तेणे प्रस्ताव ॥ १ ॥ दधि वाहन पूबे प्रिया, कहे कोण कारण एह ॥ तुं कां दी से दूबली, सुण प्रीतम ससनेह ॥ २ ॥ हूं पेरूं वेश ताहरो, तुं वत्र धारे शीश ॥ गज चढी वनमांहे नमुं, सुज मन एह जगोश ॥ ३ ॥ कहे राजा चिंता मकर, कर एह प्रकार || सोहागणी साची तिका, जेहनें वेश जरतार ॥ ४ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग मारुणी ॥ पदरी ॥ राणी वेश करी राजानो, गज चढी हर्ष पा रजी ॥ राजा बत्र धरे राणीने, पूंठें बहु परिवारजी ॥ १ ॥ कोइ राखो रे कोइ शूर सुनटने नांखो रे, कोइ काय उपाय मुज दाखो रे ॥ मुनें हाथी जाय, दयाल कोइ राखो रे ॥ पद्मावती राणी एम विलवे, ऋण ऋण विलखी याय रे ॥ दयाल कोइ राखो रे ॥ १ ॥ ए प्रांकली ॥ ए हवी वात बेली तिथ नगरी, लोकनें अचरिज थाय जी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन उद्यान विनोद करावी, मोहलो पूरे राय जी ॥ को रा० ॥३॥ वूगे मेह प्रथम वनमाहि, प्रगटयो नूमि सुगंधजी ॥ बीजां वन समरंतो शे डयो, दूर गयो गज अंधजी ॥ कोई रा० ॥४॥ वडशाखा वलगी रह्यो राजा, राणी गइ गजसाचे जी॥हाहाकार दु नगरीमा हि, हाथी न केहनें हा थेंजी। कोइरा०॥५॥माकार गयो अटवीमांदे, दीतुं एक तलावजी ॥ पाणी पीयण नगी गज पयगे, राणी लह्यो प्रस्तावजी॥ कोइरा०॥६॥ हलवे हल वें गजयी उतरी,चाली एक दिशि लेईजी॥ सिंह वाघ थी बिहिती अबला,कर्मनें दूषण देईजी ॥कोइरा॥ ॥ ७ ॥ हा हा दैव करूं केम हुँ दवे,कोण कीधां में पा पजी॥ कोण विपत्ति अवस्था पाडी,राणी करे विला पजी॥ कोइरा०॥७॥ण रोवे कण जोवे चिटुंदि शि, छण चीतारे राज जी ॥ कुण कुण राज लीला नोगवती, एयवस्था याजजी॥ कोइरा॥ ए॥ कि हां चंपा नगरीनां मंदिर,किहां हीमोला खाटजी॥कि हां प्रीतम पोढण सुखशय्या, किहां नवरंगी खाटजी कोइरा॥१०॥ किहां ते नोजन नगति सजा, कि हां कुटुंब परिवारजी॥ मंगाकार पडी हुँ अटवी, अब Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ला कोण अाधारजी। कोइरा॥११॥ वली वैराग्य चडी ते राणी, रोये न लाने राजजी॥ चनराशि ल ख जीव खमावी, सारं पातम काजजी। कोइरा॥ ॥१२॥ दुःखमाहे जे धर्म संजारे, तेहने कोइ न तो लेंजी॥मारुणी रागें ढाल ए बीजी, समयसुंदर एम बोलेजी॥कोरा ॥१३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ जननी मन याशा घण।। ए ढाल । ॥राग वेराडी॥ हवे राणी पदमावती,जीवराशि खमावे ।।जाण पएं जग ते नखं, एण वेला यावे ॥१॥ ते मुज मि जामि उक्कडं,अरिहंतनी साख ॥जे में जीव विराधिया, चनराशि लाख ॥ ते मुज० ॥२॥ सात लाख एथि वीतणा, साते अपकाय ॥सात लाख तेनकायना,सा ते वली वाय ॥ ते मुज॥३॥ दश प्रत्येक वनस्प ति, चौदह साधार ॥ बि ति चरिंख्यि जीवना, बे बेलाख विचार ॥ ते मुज०॥४॥ देवता तिर्यंच नारकी,चार चार प्रकाशी ॥ चन्दह लाख मनुष्यना, एलाख चोराशी॥ ते मुज०॥५॥ एण नव परनवें सेवियां, जे पाप अढार ॥ त्रिविध त्रिविध करी परि हाँ, उर्गति दातार ॥ते मुज॥६॥ हिंसा कीधी जीव Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नी, बोल्या मृषा वाद ॥ दोष अदत्तादानना, मैथुन नन्मादं ॥ ते मुज० ॥ ७ ॥ परिग्रह मेल्यो कारिमो, कीधो क्रोध विशेष ॥ मान माया लोन में कीया.वली राग ने देष ॥ ते मुज॥ ॥ कलह करी जीव दह व्या, दीधा कूडा कलंक॥ निंदा कीधीपारकी,रति अर ति निःशंक ॥ते मुजाए। चाडी कीधी चोतरे,कीयो थापण मोसो॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनो, नतो आल्यो नरोंसो॥ ते मुज०॥ १०॥ खाटकीने नवें में किया, जीव नानाविध घात ॥ चडीमार नवें चरकलां,माखां दिन रात ॥ ते मुज०॥ ११ ॥ माजीगर नवें माउलां, जाल्यां जलवास ॥धीवर नील कोली नवें, मृग पा ड्या पास ॥ ते मुज ॥ १३॥ काजी मुनाने नवें, पढी मंत्र कठोर ॥ जीव अनेक जप्ने किया,कीधां पा प अघोर ॥ ते मुज० ॥ १३ ॥ कोटवालना नवें में किया,आकरा कर दंग ॥ बंदीवान मरावीया, कोरडा बडी दंम ॥ ते मुज० ॥ १४ ॥ परमाधर्मी ने नवें, दीधा नारकी सुख ॥ दन नेदन वेदना,ताडना थ तितिरक ॥ते मुज०॥१५॥ कुंजारने नवें जे किया, नी माह पचाव्या॥ तेली नवें तिल पीलिया, पापें पेट जराव्यां ॥ते मुज० ॥१६॥हालीने नवें हल खेडीयां, Jain Educationa interational For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फाडयां प्रथिवी पेट ॥ सूड निदान कीयां घपांदीधा बलद चपेट ॥ते मुजः॥१७॥ मातीने नवें रोपिया, नाना विध वृक् ॥ मूल पत्र फल फूलना, लागां पाप ते जद ॥ते मुज॥१॥ अधोवाईयाने नवें,नखाथ धिका नार ॥ पोरीचंट कीडा पडया, दया न रही ल गार ॥ ते मुज॥ १५ ॥बीपाने नवें तस्या,कीधा रं गए पास ॥ अगनि धारंन कीया घणा, धातुर्वाद घ ज्यास ॥ ते मुजण॥ २० ॥ शूरपणे रण फूजता, मा खां माणस वृंद ॥ मदिरा मांस माखण नख्या, खाधा मूल ने कंद ॥ ते मुज॥१॥ खाण खणावी धातु नी,पाणी नल्नेच्यां ॥आरंन कीधा अति घणा,पोतें पा पज संच्यां ॥ते मुज०॥॥ अंगारकर्म कियां वली, घरमें दव दीधा ॥ सुंस कस्या वीतरागना, कूडा को सज पीधा ॥ ते मुज॥२३॥ बिलि नवें उंदर जीया, गिरोली हत्यारी॥ मूढ गमार तणे नवे, में जूलीख मारी॥ ते मुज॥श्ानाडनूंजा तवं नवें, एकेंख्यि जीव ॥ ज्वार चणा गहुँ शेकीया, पाडता रीव ॥ ते मु ज०॥२५॥.खांमण पीसा गारना,वारंन अनेक॥ रांधण इंधण अग्निना, कियां पाप उदेक ॥ते मुज०॥ ॥॥विकथा चार कीपी वली, सेव्या पांच प्रमाद ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ष्टवियोग पाडया किया,रुदन विषवाद ॥ते मुज०॥२॥ साधु थने श्रावक तणां, व्रत लेई नांग्यां ॥ मूल बने उत्तर तणां, मुफ दूषण लाग्यां ॥ते मुज०॥॥ साप वींडी सिंह चितरा,शकराने समली ॥हिंसक जीवतणे जवें, हिंसा कीधी सबली ॥ ते मुजण॥ ए॥ सुखाव डी दूषण घणां, वली गर्न गलाव्या ॥जीवाणी ढोल्यां घणां, शील व्रत नंजाव्यां ॥ ते मुज॥३०॥नव अ नंत नमतां थकां,कीधा कुटुंब संबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसिहं,तेहगं प्रतिबंध ॥ते मुज॥३१॥जव धनं तनमतां थकांकीधा परिग्रह संबंध ॥ त्रिविध त्रिवि ध करी वोसि,तेदशुं प्रतिबंध ॥ ते मुज॥३॥ए णि परें इण नवें परनवें, कोषां पाप अखत्र॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसलं, करुं जनम पवित्र ॥ ते मुज० ॥ ॥३३॥राग वैराडी जे सुणे, ए त्रीजी ढाल ॥ समय सुंदर कहे शीलथी, बूटे ततकाल ॥ ते मुज॥३३॥ ॥दोहा॥ ॥वली राणी पदमावती,शरणां कीधां चार ॥ साना री असण कीडे, जाणपणानुसार ॥१॥गाथा॥ जर मेदुङ पमा, श्मस्स देहस्स श्माई वेलाय ॥ थाहार मुवहि देहं,चरमे समयंमि वोसरीयं,सत्वे तिविहेण वोसि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) रियं ॥ १ ॥दोहा॥ तिहाथीपागल चालतां, दीगे तापस एक ॥ मनमां धीरज नपनी,अलगो टल्यो न ग॥२॥ तापस पूजे कोण तुं, सघलो कह्यो संबंध ॥ तापसने पण मूलगो, चेडागुं संबंध ॥ ३ ॥ देता पस पाशासना, म करिश दुःख लगार ।। ए संसार असार ,कुःख तणो नंमार ॥ ४ ॥ राणीने जोरेंक री, खवराव्यां फल फूल ॥ संप्रेडए साथै चल्यो,ताप स सहज अमूल ॥ ५ ॥ धागल जई ननो रह्यो,या वी गामनी सीम ॥ हल खेडी धरती हवे, मुज चाप गर्नु नीम ॥६॥ सुण पुत्री ए दंतपुर, नामें नगर न जीक ॥ दंत विक्रम राजा नलो,तुं जाजे निर्नीक ॥७॥ एम कहीने पाडो बल्यो, तापस पर उपकार ॥रा एगी पण पद्मावती, पोहोती नगर मजार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग केदारो गोडी॥ . ॥ काची कली अनारकी रे हां ॥ ए देशी॥ ॥हवे राणी नगरी गइ रेहां, प्रबंती धर्मशाल ॥ कर्म विटंबणा ॥ विधियुं वांदी साधवी रेहां,बेठी अब ला बाल ॥ कर्म वि०॥१॥है है कर्म विपाक, किम हि न लूटणां ॥ ए आंकणी ॥ रोवा लागी अति घj रेहां, नयणें नीर प्रवाह ॥ कर्मवि०॥ कोण कोण क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ट में नोगव्यां रेहां, उःख नरी मनमाहि ॥ क० ॥ ॥॥ साधवीय धर्म सुणावियो रेहां, ए संसार असा र॥ क० ॥ धर्म सामग्री दोहिली रेहां, कुटुंब अनं ती वार ॥ क० ॥ ३ ॥ वैराग्ये मन वालीयुं रेहां, ली धो संजम जार ॥क०॥ दीदाथी बीहिती थकी रेहां, न कह्यो गर्न विचार ॥क० ॥४॥ अनुक्रमें व्रत पालता रेहां, वाध्यु मोटुं पेट ॥ क० ॥ कोढ पाढ ग्र ह खेटनो रेहां, न रहे बानु नेट ॥ क० ॥ ५ ॥ कहे गुरुपी बेठी रहो रेहां, थमें करयु निर्वाह ॥ क० ॥ लोक बोक प्री नही रेहां, जिनशासन उमाद ॥ ॥कर्म॥६॥ बेटो जायो साधवी रेहां, बानो मूक्यो समशाण ॥ कर्म ॥ रतन कंबल शिर वीटीयो रेहां, वली मुंड्डी सहि नाण ॥ क० ॥ ७॥ तोपण बाल मुठ नही रेहां, ऐ ऐ पुस्य प्रमाण ॥ क० ॥ चंमाल देखी चमकीयो रेहां, स्त्रीने दीधो बाण का थपकरण नाम आपीयु रेहां, दिन दिन वाधे तेह ॥क० ॥ चंमालपीशुं साधवी रेहां, मां अधिक सने द॥ क० ॥ ५ ॥ गुरुपी पूजे साधवी रेहां, गर्न न दीसे केण ॥ क० ॥ में जायो ' मुथको रेहां, बाहि र परतव्यो तेण ॥क० ॥१०॥ बालकशुं बा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) लक रमे रेहां, मागे द्यो मुफ दम ॥ कल ॥ खाज ख पणावे हाथ\ रेहां, नाम पाडयुं करकंम् ॥॥११॥ साधवी यांत्र तपे घणुं रेहां, बालकयुं बहु प्रेम ॥क० ॥ बेटो पण माने मले रेहां, मोह वाध्यो ब द एम ॥क०॥ १२ ॥ मीठा मेवा साधवी रेहां, खा जा लाडु खुर्म ॥क०॥ वोहोरीने दीये बालने रेहां, धिक् धिक् मोहनी कर्म ॥ क० ॥ १३॥ करके हु मोहटो थयो रेहां, रखवाले समसाण ॥ कल ॥क में रुलावे जीवने रेहां, कोई न चाले प्राण ॥क ॥ ॥१४॥ चोथी ढाल ए में कही रेहां,राग केदारा गा य॥क०॥ समय सुंदर कहे कर्मनी रेहां, में गति कहीय न जाय ॥क०॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ... कारण किए समसानमें, याव्या दोय अण गार ॥ वंशजाति माहे रह्यो, दीनो दंग एक सार ॥ ॥१॥ एक यति लाठी तणो, जाणे गुणने दोष ॥ बीजा साधु प्रत्ये एम कहे,सहजें राग न रोष ॥ २ ॥ एक गांतिलाठीनली,वेढ उगती थाय॥तान तिगंठी संपजे, चउगंठी मरणाय ॥ ३॥ पंच गंठी पथनय हरे, षट गंगी जय जोय ॥ सत गंती नीरोगता, अव Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) गंती निधि होय ॥॥ नवगंगलाठी मुजस,दस गंती दे सिदि॥ चारंगुल वधती ग्रही,एणे लाठी नृप रिक्षि॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग सारंग मल्हार ॥ .. ... करकं पासे हतो,तिहां ब्राह्मण पण एक हो। ब्राह्मण ॥ साधु वचन बेहु सानयां, लागी चूप प्रत्येक हो ॥ ब्रा० ॥१॥ दंम न देखें तुजनें माहरो, कहे क रकंफु बाल होना चालि जाश्यां आपण चउतरें, हूं धरती रखवाल हो ॥ ब्रा० ॥ २ ॥ दंम० ॥ चार अंगुल धरती खणी, ब्राह्मणें लीधो दंम हो॥ ब्रा० ॥ करकं फोंटी लीयो, जगडो लागो प्रचंम हो॥ब्रा०॥ ॥३॥ दंम०॥ नगरी गया बे ऊगडता, चवटीये कियो न्याय हो ॥ब्रा०॥ रे बालक ब्राह्मण नणी, ला ती दीये पुण्य थाय हो ॥ब्रा०॥ ॥ दंम०॥ कहे कर कंफ हूं झुं नही, राजपामीश अनिराम हो ॥ब्रा०॥ पंच हसी कहे एहनें,तुं देजे एक गाम दो ॥बा०॥५॥ दम ॥ ऊगडो नांग्यो एणी परें,दंम लि करकंफ हो ॥ ब्रा०॥ कोप कीयो ब्राह्मण मति, मारी करां शत खंम हो ॥ब्रा॥६॥दंगा करकंफु माता पिता, नाशि गया ततकाल हो ॥ब्रा०॥ नगर कंचनपुर नोयरे,सूता सरोवर पाल हो ॥बा॥ ७ ॥दम०॥ ढाल नणी ए. Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) पांचमी,राग सारंग मल्हार हो।ब्रा०॥समयसुंदर कहे हवे कहूँ, पुस्य तणां फल सार होब्रा०॥ ७॥ ॥ ॥ ढाल बही॥राग खंजायतीनी देशी॥ ..॥राजा मूड अपुत्री रे,तिरों अवसरें तिणे गामो रे॥थश्व एक अधिवासि रे, नगर नमे गम नामो रे ॥१॥ राज पामीयो रे करकंस कंचनपुर तणुं रे, फ व्यु साधुनुं वचन ततकाल शोहामणुं रे,ऐ ऐ पुण्यप्र माण ॥राजाए अांकणी नगरी पुरुष नहीं तिस्यो रे, लाख मली लोकाई रे ॥ पुस्य विना नवि पामीय रे, मोहोटी पदवी का रे॥राज ॥॥नयर बाहेर दय थावीयो रे,सूतो देखो कुमारो रे॥त्रण प्रदक्षिणा देई करी रे, हिस्यो हर्ष अपारो रे ॥ राज॥३॥ उत्यो कुंवर उतावलो रे,नंघ बगाई खातो रे॥ पुण्य ध केल्यो तरफडी रे, जांणे दालिइ जातो रे ॥राज॥ ॥४॥ अधिकारी नर धाविया रे, जयजय शब्द करं सारे ॥ कर जोडी नना रह्या रे,चामर नत्र धरंता रे ॥राज ॥५॥ राजा अश्व उपरें चढयो रे, चाल्यो नगर मकारो रे ॥ हय गय रथ पायक तणो रे, पूनें अंत.न पारो रे ॥राज०॥ ६ ॥ नगरीमांहे पेसता रे, ब्राह्मण पाडा आया रे ॥ ए चंभाल राजा दुळ रे, प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) मुं नही थम पाया रे ॥राज ॥ ७ ॥राजा दंग नमाडीयो रे, अनि ज्युं बलवा लागा रे ॥बीहिता विप आवी नम्या रे, चाल्युं नदी कोश्त्रागुं रे ॥राजा॥ वाडव स्थानवासी जिके रे,हरिकेशी चंमालो रे ॥ क रकं ब्राह्मण किया रे, ते सघला ततकालो रे ॥रा ज० ॥ ए॥ सकल नगर शणगारीयु रे,याणंद अंग न मावे रे ॥ गोंख नपरें बाला चडी रे, एगी गली रा जा आवे रे ॥ राज ॥१ ॥घर घर गूडी नहले रे, तोरण बांध्यां बारो रे ॥ हाट पटंबर बाईयां रे, नीड घणी दरबारो रे ॥राज ॥ ११॥ पूर्ण कलश लेप मिनी रे,सहु सामहीये थावे रे॥गोरी गावे सोहलो रे, मोती थाल जरावे रे॥राज॥१२॥ नवरंग नेजा फरहरे रे, ढोल दमामा वाजे रे ॥ मदन नेरि वाजे न ली रे, नादें अंबर गाजे रे ॥राजा १३ ॥राज मंदि र राय यावीयोरे,बेगे तखत तुरंतो रे ॥प्रजा पाले था पणी रे,न्याय तपास करतो रे ॥राज॥१३॥राजा करकंमुहवो रे,आपणी आण वरतावे रे ॥ मनवंबित फल पामीयें रे,पुरस्य तणे परनावें रे ॥ राज॥ १५॥ नलो रागखंनायती रे,सोहेलानी ढाल बहीरे ॥ समय सुंदर कहे श्रावको रे,सानलता यति मीठी रे ॥१६॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) ॥ दोहा ॥ ॥ हवे ते ब्राह्मण यावियो, सुणि राजाने राज ॥ गाम एक मागे नलुं, जेहथी सीजे काज ॥ १ ॥ क रकंमु राजा कहे, वाच काचनि कलंक ॥ मन मान्युं विप्र मागतुं, गाम एक निःशंक ॥ २ ॥ चंपा नगरी वसुं दधिवाहन जिहां राय ॥ तिहां दे गाम सुखें रहुँ, कोण करे श्रावजाय ॥ ३ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ राग सिंधूडो ॥ मेवाडा राजा रे || ए देशी || ॥ कागल लखी दीधो रे, विप्र चाल्यो सीधो रे ॥ वी लीधो सातूनो साथै संबलोरे ॥ चंपापुर पोहोतो रें, जिहां पोतें रहतोरे ॥ मनमांहि गहगहतो, वंबित सुफ फलो रे ॥ १ ॥ चंपापुरी राजा, दधिवाहन रा जारे ॥ एक गाम ब्राह्मणने देजो प्रतिनजुरे ॥ येणे गामने गमेरे, राय बीजो पामेरे || ईणि काम विरा की या सही किलो रे ॥ २ ॥ कागल देखाड्योरे, नृप त्रिसूलो चाड्योरे ॥ वली त्राड्यो ब्राह्मणनें राजा कोपरे ॥ चंमालनो बेटो रे, ए राजथी मोटोरे ॥ म तनेटो कंचनपुर किणे एथापीयारे ॥ ३ ॥ वलतो दूत मूक्योरे, दधिवाहन चूक्योरें ॥ घणुं कूक्यो वली बोल For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) कहाव्या आकरा रे ॥ करकंमु राजा रे, सुणि करत दी वाजा रे ।। ततकाल वजायां वाजां चढतरां रे॥४॥ कटकी करी धायो रे, चंपापुरी आयो रे,तपतेज सवा यो रे पुर वींटी रह्यो रे ॥ गढरोहो मंमयो रे,अनिमान नमयो रे,निजबोल न खमयो नृप साहामो अड्यो रे ॥५॥ रणनूमिका सूडे रे, नालगोला कडे रे, गडडंत गयगुडे शेषनाग सलसले रे॥सरणाई वाजे रे,सिंधूडो साजे रे, शूरवीर विराजे उंचा उबले रे ॥६॥ पहेखा जिण शाला रे,उमट्या मेह काला रे, शिर टोप बना या नेजा जबकतारे ॥जालांबणीयाला रे, उबाले पा तारे, एक सुनट मुबाला चाले चमकता रे ॥ ७ ॥ वाजे रणतूरी रे,बेन दल पूरां रे,एक एकथी शूरा सुनट ते साथमें रे॥जमकी जीन सबके रे,जाणे विजलीच मके रे, तरवार उघाडी ऊबके हाथमें रे॥॥ वहे तीर वचालें रे, आवंतां टाले रे, वयर वाले ते पालो पण सासे नही रे॥निज नेजा फरके रे,वढवाने वरके रे, पग एक न सरके पाना ते सही रे ॥ए॥ मूडे वल घाले रे, बागलथा चाले रे,फोज यावंती वारे एकण वार की रे॥ एक पागडा बोडे रे, नृप होडाहोडे रे, अ शाएं अणी जोडे फोजां मारकी रे ॥१०॥ बगेडी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) थाकस बाजी रे, बेन राजा राजी रे, न रहे गज वा जीजाव्या केम किये रे॥गकुरब पुकारे रे, बाप बिरुद संजारे रे, बाज जय ते तुम्हारे नुजें पामीयें रे॥११॥ जाजरा सुससीधा रे,गंगोदक पीधां रेनला नोजन कीधां ताजां चूरमां रे॥राणीरा जाया रे,याम्हा साम्हा धाया रे, घणा अमल खवराया चडिया शूरमा रे॥१२ एक कायर कंपे रे, चिदंदिशि दल चंपे रे, मुख जंपे हाहा हवे कण दिशि नागशु रे॥शूरवीर त्राडुके रे,होंशे रण ढू के रे, मुख कूकें घाज जटापट लागणुं रे॥ १३ ॥सं ग्राम मंमाणो रे,नहीको तिसो शाणो रे,राय राणो सम जावे जेबिडं रायने रे॥हुती वात थोडी रे,थई क्वेशनी को डी रे,न शके को बोडी समजायने रे॥१॥सिंधुडे रागें रे, सुणि शूरिमा जागे रे, थति मीठी लागे ढाल ए सातमी रे ॥ समयसुंदर नांखे रे, दवे वढतां राखे रे, पदमावती पाखें कुण मति समी रे ॥१५॥ ॥ ढाल बातमी ॥राग आशावरी सिंधूडो ॥ ॥चेत चेतन करी॥ ए देशी ॥ ॥ युछ सुण्यु पदमावती रे, गुरुणी पूछे विचार ॥ थावी तिहां उतावली रे,दा मत होये संहारो रे॥१॥ धन पदमावती रे,नांज्यो वयर विरोधो रे,लान घणो थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) यो, दधिवाहन प्रतिबोध्यो रे ॥२॥ धन पद॥ प्रथम गइ पदमावती, करकंमुनी पास ॥कहे केम जूफे बाप झुं रे, राजा रह्यो विमासो रे ॥३॥धन ॥ ते केम राजा पूनियुं रे, साधवी कर्वा सरूप ॥ तो पण पग पा बा न दे रे, अति थनिमानी ते नूप रे ॥४॥धन॥ चालीने चंपा गई रे, पोहोती नृप यावास ॥ दासीएं दीती स्वामिनी रे, भावी मती सवि पासो रे ॥ ५ ॥ धन प०॥प्रणामीने रोई घणुं रे,एह अवस्था देखि ॥ दधिवाहन पण आवीयो रे,दीतो साधवी वेषो रे॥६॥ ॥धन प०॥ राजा पाय प्रणमी करी रे, पूजे गर्ननी वा त॥ ए तुज अंगज जेहगुं रे, यु६ करे दिन रातो रे ॥ ७ ॥ धन प०॥राजा अति हर्षित दुरे, मल वा साहामो जाय॥करकं पण बापना रे, प्रणमे जग तिमु पाय रे ॥॥धन प०॥ पैसारो करी थाणीयो रे,प्रगट्यो घाणंद पूर ॥ घर घर रंग वधामणां रे, चं पा नगरी सनूरो रे॥णाधन पण॥ कंचन पुर चंपा तणां रे, दिये सुतने बेदु राज॥ दधिवाहन दीक्षा ग्रही रे, साखां यातम काज रे॥१०॥धन प०॥ करकंम् परणी घणी रे, प्रेमदा तेणें प्रस्ताव ॥राज लीला सुख नो गवे रे, पुस्य तणे परनावो रे ॥ ११ ॥धन०॥ सिंधू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) डो याशा मली रे, पुण्य तणां फल एह, बाठमी ढाल रसाल रे, समय सुंदर कहे एहो रे ॥१॥धन॥ ॥दोहा॥ ___॥ दवे करकंफु रायने, गोकुलगुं बहु प्रेम ॥ एक दिन चाल्यो देखवा, कहेवा लाग्यो एम ॥१॥ सुण गोकुल ए वाबडो,वर्ण सपेत सशु६॥ एहनी मार्नु ए हने, धवरावे तुं दूध ॥२॥ वली ए जब मोटो हुवे, त व बीजी पण गाय॥ दोहीने दूध पायजे, जिम ए मा तो थाय ॥३॥ एम कही नृप पाडो बल्यो, गोकुलें कीधु तेमाषन युवान थयो सबल,राख्यो न रहे केम ॥४॥ तीखां शिंग मुकुंमला,नंचो कुंनी थून ॥ गल कंबल जा डो सबल, जाग जोईएं मन ॥५॥मारे ठोसे मलपतो, निर्बल वृषनने नित्य ॥ उंचुंपून नलालतो,त्राडुके मय मत्त ॥६॥ एक दिन वली नृप देखीयो, सुंदर मातो सं म॥राजाने अचरिज थयुं, ऐ ऐ बलद प्रचं ॥ ७ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग टोडी धन्याश्री॥ मुनीसर अतिथि नलो ए कोय ॥ ए देशी॥ ॥वली करकं यावीयोजी,गोकुल देखण देत॥पूज्यो राजा गोकुलीजी, बलवंत बलद ते केत रे॥१॥ जी वडा, ए संसार असार ॥ करकंम् एम चिंतवे जी, सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चो जिन धर्मसार रे ॥जीव० ॥ ए आंकणी॥ति ण अवसर बढो थयोजी, मडीयो नाम कहाय ॥जरा करीथयो जाजरोजी,उतनी नहीं पाय रे ॥२॥ जीव०॥पड्यो पडयो जाये ढल्योजी, मकी बेगे वा ट॥ सडण पडण घटी जतोजी, पडयो करे अरडाट रे ॥३॥ जीव०॥ कर जोडी कहे गोकुलाजी, एहिज बलद तिकोय ॥ नृप चिंते बूढापणेजी, एह अवस्था होय रे॥४॥ जीव ॥ बाग चोर जल नय घणाजी, गरथ ते धनरथ मूलावार न लागे विणसतांजी, धर्म खरोयनुकूल रे॥५॥जी॥ तरु पंखी मेलो जिस्योजी, कुंटुंब तिस्युं कहेवाय ॥जाये ते गति जूजूईजी,साचो जिनधर्म सखाय रे ॥६॥जी॥ मात पिता बंधव सुता जी,अंतेनर निजहर्म ॥ स्वारथ विण विहडे सहूजी, विहडे नही जिनधर्म रे॥७॥जी॥मान अणीजल बिंदूजी,जिम पाकुंतरुपान ॥अथिर ए तिमथान जी,थिर निश्चल धर्म ध्यान रे ॥ ७ ॥जी॥ जरा करी अतिजाजरो जी, काचो माटी नंम ॥ काया रोग समा कुतीजी, जिन धर्म एक अखंम रे ॥ ए॥जी॥ यौ वन जाये जोरमेंजी, जाणे नदीनो वेग ॥ राख्यु न रहे केह जी, धर्म रहे दृढ टेक रे॥१०॥ जी०॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) एम सहू को जग कारिमो जी, को नही राखणहार ॥ साचो एक संसारमेंजी, जिनधर्म एक याधार रे ॥ ॥ ११ ॥ जी० ॥ टोडीने धन्याशरीजी, नवमी ढालें राग ॥ समय सुंदर कहे सांनलो जी, जिम उपजे वैराग रे ॥ १२ ॥ जी० ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ राग धन्याश्री ॥ चंदन नगरी दीपती ॥ ए देशी ॥ ॥ एम वृषनें प्रतिबूजीउ, वजी कीधो मस्तकें लो च ॥ राज ऋधि तृण जिम परिहरी, यति नलो ए खालोच ॥ ० ॥ १ ॥ मुनिवर वादीयें ॥ करकं साधु सुसाधु रे, पेहलो प्रत्येक बुद्ध ॥ मु०॥ ए यांकणी ॥ तत्काल उधो मुहपत्ती, देवता दीधो वेश ॥ वैराग संयम यादस्यो, पांगुखो तुरत प्रदेश || पांगु ॥ २ ॥ ॥ मुनि० ॥ करकंमुनां केतां कहुं, एकजीने गुण वखाण ॥ एकता च्यारे थायशे, ए खंम चनये जाण ॥ ए ॥ ३ ॥ मुनि० ॥ गम्बवडा खरतर गुरु वडा, जिल चंद युगह प्रधान ॥ जिण सिंहसूरि सुजरा घणो, जसु वि यो अकबर मान ॥ जसु० ॥ ४॥ मुनि० ॥ खागरें श्राव क दीपता, श्रीमाली ने उशवाल || विमल नाथ प्र सादथी, व्यति सुखी चतुर खुशाल ॥ ० ॥ ५ ॥ मु० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) संवत सोल चोश वली, मास फागुण सार ॥ ए प्रथ म खंम पूरो थयो,सिदि योग ने बुधवार रे ॥तिदिन ॥ ६ ॥ मुनि ॥ प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना, गणि सक लचंद मुणिंद ॥ ते सुगुरुने सुपसाउलें,मुज सदा सुख थानंद ॥मुज॥७॥मुनिए ढाल में दशमी नणी, धन्याश्री ए राग ॥ गणि समयसुंदर एम नणे,श्रीसंघ मुजश सौनाग ॥ श्रो० ॥७॥ मुनिः॥ इति श्री करकंकु नाम्नः प्रथमप्रत्येक बुद्धस्य रासे प्रथमः खंमः संपूर्णः अथ ॥ उमुह नाम्नो दितीय प्रत्येकबुवस्यारसे ॥ ॥क्तिीयः खंमः प्रारन्यते ॥ ॥दोहा ॥ ॥ ब्राह्मी लिपी प्रणमुं वली, अक्षर रूप विचार ॥ जगवती सूत्र धुरेंजए, श्रीसोहम गराधार ॥१॥5 मह नामें राजा नलो,बीजो प्रत्येक बुझ॥ तस बीजो खं बोला, मीठो मिश्री दूध ॥२॥ सावधान थ सांनलो, मूको कच पच वात ॥काच तणी कटकी त जी, सहुको पीये निवात ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) ॥ ढाल पदेली॥राग बिलावल ॥मनको प्यारो तनको प्यारो॥ए देशी॥ ॥ जंबू दीप मेरु दक्षिण दिशि, नरत देत्र यति सार रे माई|गंगा सिंधु नदी वहे निर्मल,जाणे मोती को हार रे माई ॥१॥ राजा राज करे जय नामें, हरिकुल पंकज नाग रे माई॥गुणमणि माला नयण विशाला, गुणमाला पटराणी रे माई॥॥राजा॥ हार वच्चे जेम पदक बिराजे, तेम तिहां देश पंचाल रे माई ॥ नयर कंपिल पुर जाणो नगीनौ, दिसम्र दि रसाल रे माई॥३॥राजा॥ देहरा विण किंहां दम न दीसे, लोकने सबल यासान रे माई ॥ दीवा विण नही स्नेह तणो दय, हाट विना नही मान रे माई ॥ ४ ॥राजा॥ सर्प विना को नही दो जीनो, असि विण नही दृढ मूठ रे माई ॥ माहोमांहे नको दे केहने, धनुष विना निज पूंठ रे माई ॥ ५ ॥रा जा० ॥ बंध नही नारी वेणी विण, सारी विण नही मार रे माई॥ तर्क विना नही वाद नगरमें,पुत्र विना नहीं नारी रे माई॥६॥राजा॥ दान विना कोई व्य सन न दीसे, धर्म विना नही लोन रे माई ॥ न्याय निपुण राजधर्मी जन, सुंदर नगर सशोन रे माई Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) ॥ ७॥ राजा ॥ रागवेलावल पेहली ढालें, बे बेथ र्थ विचारे रे माई ॥ समय सुंदर कहे समजी लेजो, केहजो सना मकार रे माई ॥ ॥ राजा ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग गोडी ॥रामचंदके बाग, चा __पो मोहोरी रह्यो री॥ ए देशी॥ ॥ एक दिवस जयराय,पनणे दूत नणी री॥कहे थधिकाइ काय, मोथी थवर तणी ॥१॥चित्र सना अतिचंग, राजन नही ताहरे री॥ अधिकारी बोलाय, राजा दुकम करें री॥२॥ तुरत बोलाया उम, धरती रंग खणीरी॥ वेगें म लावो वार, राजा चोप घणारी ॥३॥ यतः । रायाणं वयणाणं,देवाणं मणसाणं,सेवा एं गरथाएं,पामराणं जाणं॥१॥ढाल॥खणतां पांच मे दीद,दीठो मुकुट नलोरी ॥ सर्वरत्नमय सार,तेज प्रताप निलो री ॥५॥ दोडयो वधाई दीध, राजा जय हरख्यो री॥ नृप थाव्यो तिणे गए, निज नयणें निरख्यो री ॥ ६॥ वायां वाजिन तूर,बाहेर मुकुट लीयो री॥ दीधुं श्रति बहु मान,जिणे ते प्रगट कीयो री॥७॥ थोडे दिन ततकाल, चित्रसना नोपनीरी॥ अनुपम थचरिजनूत, इंसना फिपनी री॥७॥ शु जमुहूर्त शुभ योग, तासु प्रतिष्ठा करी री॥ उत्सवकी Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ध अनेक, कीर्ति जग पसरी री॥ ए॥ ते चित्रसना मजार, सिंहासण नपरेंरी॥बैठो श्रीजयराय,मस्तक मुकुट धरे री॥१०॥ जय राजा मुखचं, प्रतिबिंबो प्रगटेरी ॥ लोक मल्यां लख कोड,नाम उमुह प्रगटे री॥११॥ गोडी राग रसाल, बीजी ढाल कही री॥ समय सुंदर कहे एम,सुगतां सरस सहीरी॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ कामण गारा रे लोक ॥ ए देशी॥ ॥ मुह नामें राजाघरें रे, गुलमाला पटराणी॥ अनुक्रमें सात बेटा जण्या रे,साते सुकज सुजाण ॥१॥ था कामिनी तृप्ति न पामे केम ॥रढ लीधी मूके नही रे, पामे नव नवा प्रेम रे ॥ या कागाए आंकणी॥ जनमथी माया केलवी रे, शीखे घरनुं सूत्र॥धूलडीये रमती कहे रे, ए मुज पति ए पुत्र रे॥॥या का॥ देह समारे दिन प्रत्ये रे,शीखी नाण विनाए॥अण ख अदेखाई करे रे, गाये त्रियनां गान रे ॥३॥ का धाराधे कुलदेवता रे, विनति करे वारंवार ॥ गौरीगण गोरी रमे रे, नलो होजो जरतार रे ॥॥श्रा का॥प रणी पण रहे पूनती रे, वशीकरण एकांत ॥ किमहि पियुडो वश करुं रे,पूलं मननी खांत रे॥५॥ था का॥ सुख पामे जरतारनु रे, तो पुत्र वांडे नार ॥ पुत्र पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) खे कहे कामिनी रे, कां सरजी किरतार रे ॥ ६ ॥ श्रा का० ॥ पुत्र परणावुं प्रेमयुं रे, वहू देखूं एक वार ॥ गोद खेलाउँ पोतरा रे, सफल करूं अवतार रे ॥ ७ ॥ ॥ का० ॥ बालक पीड़ा उपजे रे, प्रायें उगमते सूर ॥ खेत्रपालें जमती रहे रे, ढोले तेल सिंदूर रे ॥ ८ ॥ ॥ या का० ॥ पुत्र प्रमुख सुख उपनां रे,तो पण जी व उद्वेग ॥ गुणमाला रहे कूरती रे, पुत्री न पामी एक रे ॥ ए ॥ था का० ॥ चोरी न बांधी यांगो रे, तोर णें नावी जान ॥ पेसतो जमाइ न पोंखीयो रे, ते जी व्यं कु ज्ञान रे ॥ १० ॥ या का०॥ हाथ मुकावण हा श्रीयो रे, के घोडा के गाम ॥ जमाइ न दीधो दायजो रे, तो धन केहु काम रे ॥ ११ ॥ या का० ॥ घनतनसघ ली नारीनो रे, सहज सदारो एह ॥ पुत्रथकी पण वा लहो रे, नवल जमाई नेह रे ॥ १२॥ या का० ॥ दी से राणी दूबी, प्रीतम पूग्यो नेद ॥ गुणमाला कहे गलगली रे, पुत्री एक उमेद रे ॥ १३॥ प्रा का मा न्यां बणां मानणां रे, दंम देवाले जाय ॥ ड्रोड धाव क रतां थकां रे, कि मेलें पुत्री याय रे ॥ १४ ॥ श्रा का० ॥ कल्पवेलि मांजरि नली रे, दोठी सुपन मजा ॥ बहु जतनें बेटी थई रे, राणी हर्ष खपार रे ॥१५॥ र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) ॥ का० ॥ रूपें कुंवरी रूयडी रे, मदनमंजरीना म ॥ यौवन यावी जोरमें रे, सकल कला प्रनिराम रे ॥ १६ ॥ या का० ॥ समय सुंदर कहे में नयी रे, ए ली परें त्रीजी ढाल | गुजराती लोक पूढज्यो रे, ते क देशे ततकाल ॥ १७ ॥ खा का० ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग नूपाल ॥ सरवणीयानी देश ॥ ॥ तेरो अवसर उजेली राय, चंमप्रद्योतन नाम क दाय ॥ जोर वहे वारु जेदनो, तेज प्रताप सबल ते दनो ॥ १ ॥ चंमप्रद्योतन यागल दूत, वात कहे ए चरिजनूत | नगरी कंपिलानो धणी, तेह तणी म हिमा प्रतिघणी ॥ २॥ प्रगट्यो मुंकुट रतन निराम, मुह थयुंजय नृपनुं नाम ॥ किणही राजाने याज ते नदी, एहवो मुकुट जाणजो सही ॥ ३ ॥ चंमप्र द्योत ते प्रति लोनियो, मुकुट लेल उपर मन कियो ॥ मूक्यो दूत ते कारज सिद्धि, विनाशकाले विपरीत बुद्धि ॥ ४ ॥ दूत जो कहें डमुह नरेश, मुकुट दिये मत करे कलेश ॥ चंमप्रद्योतनने ए योग, रतन क दीजें सबलो जोग ॥ ५ ॥ डुमुह राय पण नही पाध रो, वलतो वचन कहे व्याकरो ॥ मुकने पण वल्लन ए बोल, तुम स्वामीनां रतन अमोल ॥ ६ ॥ हाथी ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) क अनलगिरि नाम,अमिनीरु रथ अनिराम ॥ शिवा नामें राणी बदजुत,लोह जंगो राजानो दूत ॥ ७ ॥ ए चारे द्यो मुज एक वार, पडे करगुं ते मुकुट विचा र॥ दूत जइ कहे सघला बोल, चंप्रद्योतन कोप्यो निटोल ॥ ७ ॥ राग एह नस्यो नपाल, चडनडतानी चोथी ढाल ॥ समयसुंदर कहे हवे संग्राम, करशे पण रेहेशे नहीं माम ॥ ए॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग रामग्री ॥ नणे मंदोदरी दैत्य दशकंधरा॥ ए देशी॥ अथवा कडखानी देशी ॥ ॥चडयो रण फूजवा चंम्प्रद्योत नृप, चडतनां तुरत वाजा वजायां ॥सुनट नट कटक चड, मटकि नेता थयां, वडवडा वागीया वेगें धाया ॥१॥ च ड्योाथ गजवर्णनं ॥ शीश सिंदूरीया प्रबल मद पूरीया,नमर गुंजार नीषण कपोला ॥ शूढ उत्साल ता, शत्रु दल पाडता,हाथीया करत हालाकलोला। ॥॥ च०॥ घंट वाजी गले रहे एका मले, मेह काली घटा जाणे दीसे ॥ ढलकती ढाल ने शीश चा मर ढले, मत्त मातंग रहे नया रीसें ॥३॥ च०॥ हा लता चालता जाणे करी पर्वता, गुहर गुंजार गंनीर करता ॥ चंप्रद्योत राजा तणा कटक, हस्ती लाख Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) दोय मदवारि जरता ॥४॥च०॥ अथ अश्ववर्णन। देश काश्मीर कंबोज काबुल तणा, खेत्र खुरसाण सू धा खरंगा ॥ अवल उत्तर पवन पाणी पंथा वली, न लजला कही तेजी तुरंगा ॥ ५॥०॥ नीलडा पी लडा सबल कंबोजना, रातडा रंग कविता किहाडा॥ किरडीया काजूषा धूसरा दूसरा, हांसिला वंसिला नांग जाडा ॥ ६ ॥ च०॥ पवन वेग पाखस्या फोज बागल धस्या, चालता जाणे चित्राम लेख्या॥ एहवा थश्व उजेण। राजातणे, कटकमें लाख पंचास सं ख्या ॥ ७॥च॥अथ पायक वर्णन ॥ शिर धरे यां कडा बांहे पेहेरी कडां, नाजनी परतना बोलवा ला ॥ एकथी एकडा कटक बागल खडा, शूरवीर वां कडा सुजट पाला॥ ७॥च०॥सबल कांधाल मूबाल जिनसालिया, लोह मथ टोप आटोप धारा॥ पंच ह थीयार हाथे ने बाथे नडि,नीमसम वड नता पालि द्वारा ॥ एच०॥ तीर तरकस धरा अनंग नट याक रा, सहस जोधार संग्राम शूरा ॥ चंमप्रद्योत राजा तणे एहवा, सात कोडि साथ पायक पूरा॥१०॥ च०॥अथ रथ वर्णन ॥ निज निज नाम नेजा धजा फरहरे, घरहरे घोर नीशाण वाजा ॥ जरह जोशाण Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) कीया लाख बे रथ लीया, साथ में चंमप्रद्योत राजा ॥ ११ ॥ च० ॥ चालीया कटक जाणे चक्रवर्त्तिका, धू सरी धूल कडे गगन लागी । समुड्जल कबल्यां शेष पण सलसल्या, गुहर गोपीनाथकी निंद जागी ॥१२॥ च० ॥ इंडने चंद नागें पण खलनल्या, लंक गढ पोलि तालां नडायां ॥ सबल सीमाल नपाल नागी गया, चंमप्रद्योत राजान खाया ॥ १३ ॥ च० ॥ यावी यो चंमप्रद्योत उतावलो, देश पंचालनी सीममांहे ॥ मुह राजा पण देई दमामां चड्यो, थावी साहमो अड्यो मन बाहें ॥ १४ ॥ च० ॥ फोज फोजें म ली जाट नट कबली, सबल संग्राम नारथ मंमाणो ॥ नडें नड मल्या नूपनूपें नडघा, सुनट सुनटें घडघा दें खी टाणो ॥ १५ ॥ च० ॥ मुकुट परजावें राजान जीं त्यो डुमुह, कटकमां प्रगट जस पडद वागो ॥ काढ लंपट सदा कूड कपटी तदा, चंमप्रद्योत राजान ना गो ॥ १६ ॥ च० ॥ नासतो नाजतो चंमप्रद्योत नृप, जालि करी बेडीयामहे दीधो || कटक नाजी दशो दिशि गयुं तेहनुं, धर्म जय पाप दय वचन सोधो ॥ १७ ॥ च० ॥ डुमुह राजान थायो घेर छापणे, कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) इहां राज पंचारात पडखो॥ रामग्री रागनी ढाल एपा चमी, समयसुंदर कहे जाति कडखो ॥ १७ ॥ च० ॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिन चंप्रद्योत नृप,मदनमंजरी दीठ ॥ का म राग विकलो थयो, लागो रंग मजीठ ॥ १ ॥ तातुर बेसी रह्यो,नवि करे जोजन पान ॥ नीसासा ना खें घणा, धरे मंजरी ध्यान ॥ ॥ उमुह कहे राजा कहो,केम चिंतातुर आज ॥कामातुर राजा कहे,मूकी सघलीलाज ॥३॥ कामी व्याधी लोनीयो, मद पी 'धो नरपूर ॥ मरतो नर ए पांचे जणा,लका बोडे दूर ॥ ४ ॥ मुझने वाले जीवतो,तो पुत्री परणाय ॥ नही तर पेशिश अगनिमें, वेदना में न खमाय ॥ ५॥ पु त्री परणावी तुरत, उमुह लह्यो प्रस्ताव ॥ प्रारथीया पहिडे नही, उत्तम एह स्वनाव ॥ ६ ॥ दीधो सब सो दायजो,संतोष्यो सुविशेष ॥ चंग प्रद्योतन रायने, संप्रेडयो निज देश ॥ ७॥ ... ॥ ढाल बही॥राग सोरती॥ ॥ हवे ते उमुह नरिंद, निजराज पाले नि६६ ॥ इंध्वज उत्सव ते श्राव्यो, राजा ढंढेरो वजाव्यो॥१॥ सहु लोक मलीमलीयाव्यो, इंध्वज अधिक बगा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) यो॥ वरसो वरसें एरीति,राजा प्रजा करी प्रीति ॥२॥ उचो इंध्वज कीधो, दीपतो पट कपर दीधो ॥ वारु चित्राम विनती, रणकी सम घंटा चीति ॥ ३ ॥ दीजें जाचकने दान, गाईजें गीतने गान ॥ नानाविध वा जित्र वाजे, नादें करी अंबर गाजे॥॥ वली नाटक पडह बत्रीश,पेखंता पूगे जगीश ॥ श्म सात दिन सु विचार, उत्सव कीधो अतिसार ॥ ५॥ पूनम दिन पू जीअर्ची,सुविशेष घणुं धन खरची ॥ सदुको लोक ते मंदिर पोहोतो, मनमोहे अति गहगहतो॥६॥ इंइध्व जनी बही ढाल, ए सोरती राग रसाल ॥ समयसुंदर कहे सुणो एह, वैराग उपजशे जेद ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी॥राग केदारो॥श्रेणिक राय, ढुंरे - अनाथी निथ॥ ए देशी॥ ॥ एक दिवसें राजा यावीयो, पेख्यो इंध्वज तेह ॥ मलमूत्र माहे पड्यो सडी, हाहा कुण अवस्था ए ह॥१॥रे जीवडा कारिमो ए संसार॥ बहु कुःख तो रे नंमार रे॥ जीवडा० ॥ए थांकणी॥ माणस पगे मरदीजतो, नींजतो कीच मकार ॥ एम देखी राजा चिंतवे, अहो अहो अथिर संसार ॥२॥रे जी॥ का रिमी शोना देहनी, पारके पुजलें होय ॥ हाथथी उ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) तारी मुड्डी, जीव नरत नरेसर जोय ॥ ३॥ रे जी० ॥ कारिमुं रूप संसारमां, मत करो गर्व लगार ॥ विष्ण सतां ऋण वेला नहीं, जुन चक्रवर्ती सनतकुमार ॥ ४ ॥ रे जी० ॥ कारिमि ऋद्धि संसारमा, ऋणमांहे खूटि जाय ॥ चंमाल घरें चाकर रह्यो, पाणी आल्यो रे हरिचंद राय ॥ ५ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण मातनुं, दृष्टांत चुलणी जोय ॥ निज पुत्रने बाल जणी, याग दीधी मन करी कोय ॥ ६ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं राज संसार मां, दीसतां सुख एकवार ॥ समनें ब्रह्मदत्त बेक, ग या सातमी नरक मकार ॥ ७ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सग पण बापनुं, कीयो कनक नर घनर्थ ॥ आपणो अं गज बेदीयो, ज्ञातासूत्रे एह अर्थ ॥ ८ ॥ रेजी० ॥ का रिमुं सगपण बापनुं, कोणी कें कीधुं पाप ॥ श्रेणिक काठ पंजर दीयो, नित्य नाडी मरायो बाप ॥ ए ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण बंधुनुं, जीव जोयें हृदय मजार ॥ ते भरत बाहुबल नड्या, एक एकने रे दी धा प्रहार ॥१०॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण नारितुं, पतिमारिका दृष्टांत ॥ नरतार माखो आपणो, मांस नाखण रे गई एकांत ॥ ११ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सग पण कंतनुं, न कीयो सबज अन्याय ॥ वनमांहें दम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) यंती तजी, दाहा बना रही विललाय ॥ १२ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण बंधव मित्रनुं, मारीयो पर्वत राय ॥ मित्र शेही कीधी चाणकें, नंदराज दीयो के हे वाय ॥ १३ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण सर्वनुं, सु नूम राम प्रकार ॥ निःक्षत्र निर्ब्राह्मण करी, जेणें पृथि वी एकवीरा वार ॥ १४ ॥ रे जी० ॥ संसार सघलो का रिमो, जीव जाणतो ए मर्म ॥ स्वारथ विना विहडे स हु, एक विहडे नही जिनधर्म ॥ १५ ॥ रे जी० ॥ वैराग्य एपी पेरें धावियो, द्धि त्यजी तृण जेम जेल ॥ वेश दी शासन देवता, व्रत नीधुं रे डुमुह नृप तेल ॥ ॥ १६ ॥ रे जी० ॥ ए राग केदारे कही, सातमी ढाल रसाल ॥ गण। समयसुंदर एम कहे, मोरो वंदना हो जो त्रिकाल ॥ १७ ॥ रे जी० ॥ ॥ ढाल याम्मी ॥ राग धन्याश्री ॥ शील कहे जग हुं हुं ॥ ए देशी ॥ ॥ डुमुह नामें मुनिवर नमुं, बीजो प्रत्येक बुधो रे ॥ प्रतिबूज्यो इंध्वजथकी, संजम पाले मन सूधो रे ॥ १ ॥ मु०॥ ए यांकणी ॥ संवेग मारग यादखो, विचरथो वली देश विदेशो रे ॥ नविक जीव प्रति बोध वा, थापे धर्म उपदेशो रे ॥ २ ॥ 5० ॥ गुण गातां मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) गहगहे, सुणतां चित्त वर्ष थपारो रे ॥ चोथे खंमें ए का दोशे, दुं गाइश सुगुण विस्तारोरे॥३॥ मु॥ संवत सोल चोश समे, चैत्रवदि तेरश शुक्र वारो रे॥ बीजो खंग पूरो थयो,श्री यागरा नगर मकारो रे ॥ ४ ॥ उमु०॥ वडोगड खरतर तणो, गुरु युगप्र धान जिणचंदो रे ॥ श्रीजिनचंद सूरीसरो, प्रतपो बे सूरज चंदो रे ॥५॥ उमु ॥ सकलचंद सुपसाउले, में पूरो कीधो खंमो रे ॥ समयसुंदर कहे संघनो, सदा तेज प्रताप अखंमो रे ॥६॥ उमु०॥ ढाल जी ए बातमी, धन्याश्री रागें सोहे रे॥ समयसुंदर कहे गा वतां, नर नारीनां मन मोहे रे ॥ ७॥ मु॥इतिश्री उमुह नृपप्रत्येकबुचरित्रे दितीयः खंमः संपूर्णः ॥ अथ श्रीनेमिराज कृषि प्रत्येक बुद्ध चरित्रस्य तृतीय खंमप्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥ मूल मंत्र समरूं सदा, पंच जिहां परमि॥ बावन अदर माहे तसु,तिलक मुकुट सिरिदिछ॥१॥ हवे त्रीजो खंम निमि तणो, जोडण जागी बुदि॥ चिंत वित पाम्या पडी, पात्र मले तो सि ॥२॥ सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धुतणा गुण वर्णता, करतां निर्मल देह ॥ गंगाजल मां जीतता, केम रहे तनुनी खेह ॥३॥ साधु कथा सहेजें नली,अधिक ढाल रस एह ॥ विच विच मेवाने मरकी, सखर मीठाइ तेह ॥ ॥ साधु चरित्र सुगता थकां, मुगति तणां फल होय ॥ गरथ न लागे गांठ मुं, तेणे सुगजो सदु कोय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पहेली। गांगा मीणारा था री मृगली ॥ ए देशी ॥ ॥ जंबूवीप सोहामणो, क्षेत्र नरत रसाल ॥ देश यवंती दीपतो, कदी न पडे कुष्काल ॥१॥ नगर सु दर्शन अति नजुं, बहुरुदि समृद्धि ॥ वारुं वसे व्यव हारीया, देश देश परति ॥॥नगर०॥ एषांकणी॥ उंचां मंदिर मालीयां, नंचा प्रासाद ॥ दंम नपर ध्वज लहलहे,करे स्वर्गगुंवाद ॥३॥ नगर॥ अंतेन र जाणे अपरा, मूकी आणी॥ दैत्य थकी मरते थके, निर्नय ठाम जाणी॥ ४ ॥ नगर॥ किहां कि ऐ राज सना जडी, महेता परधान ॥ शेत सेनापति सूत्रवी, खोजा ने खान ॥५॥नगर॥ किहां कणे त्र धरावतो, बेठो नूपाल ॥ दूकुम चलावे आपणो, माने बाल गोपाल ॥ ६॥ नगर ॥ किहां कणे नूप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) आगल नला, वढे जेती मन ॥ दुशीयार रहे हवे रा मला, वाहे वली गाल ॥ ७ ॥ नगर ॥ किहां कणे झुंढ कलालता, फरतां मदवारि ॥ सुंदर शशि सिंदू रीया, घूमे दरबार ॥ ॥ नगर॥ कहां करो घोडा जुलमती, सोवन जडित पत्ताण ॥ ताजा तेजी ही सता, दीसे दीवाण॥॥ नगर॥ किदां कणे वली पायक लडे, सामे हथीयार ॥ एक वाहे घा एकने, ए क टालदार ॥ १० ॥ नगर०॥ किदां कणे घडीयाला घडी, वाजे वारंवार ॥ काल जणावे लोकने, रेहेजो दशियार ॥११॥नगर०॥ किहांकणे वली नोबत तणा, वाजे नीशाण ॥ जागोरे जागो धर्म करो, लोकने करे जाण ॥ १२ ॥ नगर॥ किहांकणे कनक रूपातणी, पडे तिहां टंकशाल ॥ गंज खजाना उपर रहे, बहुत रखवाल ॥ १३ ॥ नगर॥ किहांकणे बेठा चठतरे, काजीकोटवाल ॥ जगडोनांजे लोकनो,न तीये लांच विचाल ॥ १४॥ नगर० ॥ किहांकणे दोशी कापडा, वेचे पटकूल ॥ जेम तेम साटुं मेलवे, दलाल वातुल ॥ १५॥ नगर ॥ किहांकणे बेठा जवहरी, जवाही र लेईजोय ॥ मोतीमाएक लालडे, लान पामे सोय ॥ १६ ॥ नगर ॥ किहां कणे माझ्या कंदोईएं, सूख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डी बदु दाट ॥ गुंदवडां पेडा जला, दीवे गले दाढ ॥ १७ ॥ नगर ॥ किहांकणे सखरा सुरहीए, चूया चंपेल ॥ महमहता ममियां घणां, मोघरेल फूलेल ॥ ॥ १७ ॥ नगर ॥ किहां घंटा रणके देहरे, जिनबिंब विचित्र ॥ श्रावक स्नात्र पूजा करे, करे जन्म पवित्र ॥ १ए॥ नगर ॥ किहां वली साधुने साधवी, बेठी पोशाल ॥ ये नवियणने देशना, वांचे सूत्र रसाल ॥ २०॥ नगर ॥ किहां जले आंक नणे घणा, नी शालें बाल ॥ बार मुखें कही, घडो दे ततकाल ॥ १॥ नगर० ॥ किहां काजी मुनां पढे, किताब कुराण ॥ किहां वली ब्राह्मण वेदीया, नणे वेद पुरा ए॥ २२ ॥ नगर ॥ कहां बजार बाजी पडे,किहां गीतने गान॥ किहां पवाडा गाईयें, किहां दीजें दान ॥ २३ ॥नगर॥ किहां वली नगरनी नायका, बैठी श्रावास ॥ हाव नाव विन्रम करी,पाडे नर पास ॥२४ ॥ नगर ॥ कहां वली मोती प्रोईये, किहां फटिकनी माल ॥ किहां परवाला काढीयें, हींगलो हरियाल ॥ ॥ २५॥ नगर ॥ किहां धानना ढग मामीया, किहां खडना गंज। किहां घी तेल कूफा नखा, किहां काष्ठ ना पुंज ॥ २६ ॥ नगर ॥ चनराशी चउटा नलान Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ता पोल प्राकार ॥ नली बाजार त्रिपोलिया,नला स कल प्रकार ॥ १७॥ नगर ॥ नगर सुद ना, ए पेहेली ढाल ॥ समय सुंदर कहे हवे कहुं, तिहां कोण नपाल ॥२७॥ नगर ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ नयण सलूणी रे गोरी नागिला ॥ ए देशी॥ ॥ मणिरथ राजा राज करे तिहां,लघु बंधव युव राज रे। जुगबादु राजा घरे नारजा,करे अनोपम काज रे॥१॥ शीयल सुरंगी रे मयणरेहा सती ॥ ए बांक पी॥ रूपें रंजसमानो रे, विनय विवेक विचारे पागली,चनसह कला सुजाणो रे ॥२॥ शीयल॥ नाण विना विचक्षण गुणनिलो, चंजस पुत्र प्रधा न रे ॥ युगबादु राजानो अति घणो, मयणरेहाने मान रे ॥॥शीयल०॥ देव तो अरिहंत गुरु सूधा ज ति,केवली नाषित धर्म रे ॥ सूधो समकित पाले श्रा विका, नांजे मिथ्यानम रे ॥ ४ ॥ शीयल ॥ जीव घजीव प्रमुख नव तत्त्वना, जाणे नेद विचार रे॥ पु एयवंत पाले अति निर्मलां, श्रावकनां व्रत बार रे ॥ ॥ ५॥ शीयल ॥ अशन पान खादिम स्वादिम व सी,फामुक गुरु थाहारो रे॥वस्त्र पात्र उषध जैषज्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) करी, पडिलाने अणगारो रे॥६॥ शीयल ॥ मु ख पूनमनो जाणे चंदलो, मृगलोचन अणीयाल रे॥ नासिका दीपशिखा जेम दीपती, कोकिल कंठ रसाल रे ॥ ॥ शीयल ॥राजहंस जेम चाले मलपती,के सरीसम कटिलंक रे॥सरस वचन चतुराई गुण घणा, एक नही कोई वंक रे ॥॥शीयल॥ एक दिन दीवं मयणरेहा तणुं,एहQ सुंदर रूप रे ॥काम राग जेद्यो चित्त नीतरें, चिंतवे मणिरथ नूप रे॥णाशीयला मयारेहा गोरी मलवा नणी,करुं को दाय नपाय रे ॥ काम नोग इणशंजोगव्या विना, निःफल जमवा रो जाय रे ॥१०॥ शीयल ॥ मयणरेदाने मूके ने टणां,नला नलां फलने फूल रे॥चीर पटोली चरणाचू नडी, बाजरण यति बहुमूल रे ॥ ११ ॥ शीयल ॥ मयणरेहा लेइ सघ नेटपुं, जाणे जेठ प्रसाद रे॥ राजा जाणे मन मान्यु सही, लागो प्रीतिसवाद रें ॥१२॥शीयल० ॥प्रार्थना करी नृपें एकदा, सती रही दृढ चित्त रे ॥मयणरेहा मणिरथ राजा जणी,दि यो उपदेश पवित्त रे॥१३॥ शीयल ॥राजा मात पिता सरिखा कह्या, प्रजा तणा अाधार रे ॥ आप अन्याय करे जो एहवो,तो किहां कीजें पोकार रे॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) शीयत्त ॥जली नारीने पांच पिता कह्या, राजा स सरो शेठ रे॥लाजीमरिये प्रीतें बोलतां, जनम पिता ने जेठ रे ॥ १५ ॥ शीयल ॥ शीयल रतन राजन किम खंमीयें,जोई चित्त विमास रे ॥ इह नव अपज स वाघे यति घणो,परनव उर्गति वास रे ॥१६॥ ॥शीयल०॥ जुगबादु तुज नाई अति नलो,मुफ माथे नरतार रे ॥ जेठ विचारी जू एहनी,केम लोपीजें का र रे॥१७॥ शीयल ॥ सतीय वयण सुणी राजा चिंतवे,मौन करी रहूं याज रे॥जुगबादु बांधव माया विना, सरशे नहीं नेट काज रे ॥ १॥ शीयल० ॥ बीजी ढाल नणी में एहवी, प्रश्न पडुत्तर सार रे ॥ समय सुंदर कहे हवे तुमें सोनलो, गर्नतणो अधि कार रे ॥१ए॥ शीयल०॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ सुगुण सनेही मेरे लाल,वि नति सुणो मेरे कंत रसाल ॥ए देशी॥ ॥ एक दिन मयारेहा तिणे अवसरें, निश जर सूती थापणे मंदिर ॥ सुपने पेखे पूनम चंदा॥ जाग त प्रगटयो परमाणंदा ॥१॥ चंद सुपन चित्तमाहि धर ती,चालीनिजपियु पासें निरती॥राजहंस जेम लीला करती, ठमठम अंगण पगलांजरती॥॥धापणा पी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) युनी पासें थावे,कोमल वचनें कंत जगावे॥मयणरेहा बोले थति मीठो, चंदसुपन स्वामी में दोगे ॥३॥ सुं दर शोल कला संपूरण,तापसंताप तिमिरनर चूरण ॥ गगन मंगलथी ते उतरतो,दोतो वदन प्रवेश करतो॥४ तेह तणुं फल कहों मुज स्वामी,हुँ पू तुमने शिर ना मी ॥ वनिता वचन सुणी नृप हरख्यो,कहे तें सुपन न लोथति निरख्यो ॥५॥ सुपन एह तणे अनुसारें, पुत्र होशे परधान तुम्हारे ॥तहत्ति करी राणी घर: वे,सु ख नोगवती काल गमावे ॥६॥त्रीजे मासें कपनाम हलो, गर्नवतीने एहज सोहिलो ॥ जाणे जिनवर पू जा कीजें, साधु समीप वखाए मुगीजें ॥७॥ उत्त म दान सुपात्रं दीजें,एणी परें लखमी लाहो लीजें ॥ उत्तम गर्न तणे परनावें, माता उत्तम मोहलो पावे ॥॥ अधम गर्न पेटें जो घावे,माने ईट लीहाला ना वे॥ होंश करे माटी खावानी, चोरी पेसी बानी मानी॥ मानला जला मोहला नपना जेह, मयणरे हा पूराणा तेह ॥ त्रीजी ढाल कही ए सार,समय सुं दर कहे सुपन विचार ॥ १०॥ ॥ ढाल चोथी॥ जुबखडानी देशीमां ॥ ॥तेणे अवसरें सोहामो,थायोमास वसंत ॥सुरं Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) गां खेलणां ॥ रसिया खेले बागमें,गाये राग वसंत॥१॥ सुरंगां० ॥ एअांकणी॥ बोलसिरी जाई जुई, कुंद व ने मुचकुंद ॥९॥ चंपक पामल मालती, फूली रह्यां अरविंद ॥२॥सु०॥ दमणो मरून मोघरो, सब फू ली वनराय ॥ मु०॥ एक न फूली केतकी, पीयु विण हर्ष न थाय ॥३॥॥ थांबा मोखा यति घणा, मांजर लागी सार ॥९॥ कोयल करें टटुकडा, चिटुं दिशि नमर गुंजार ॥॥सु० ॥ जुगबादु रमवा च व्यो,मयणरेहालै साथ ॥सु०॥ बागमांहि रमे रंगा, मफ धघु निज हाथ॥५॥मुग निर्मल नीर खंको खली, जोले राजमराल ॥९॥प्रेमदाशुं प्रेमें रमे, नाखे ला ल गुलाल ॥ ६॥ सु० ॥ नोजन नक्ति युक्ति नली, करता थई अवेर सु॥रात पडी रवि थाथम्यो, प सखो प्रबल अंधेर ।। ७ ।मु० ॥ निर्नय गम जाणी रह्यो, रातें बाग मजार ॥ मु०॥ केलीघर सूतो नृप, थोडो शो परिवार ॥ ७ ॥९॥ चोथी ढाल पूरी थई, मुंबखडानी जाति ।।सु०॥ समयसुंदर कहे हवे सुणो, रातें दोशे जे वात ॥ ए ॥ सु०॥ ॥ ढाल पांचमी ।। अवसर जाणी इं॥ ए देशी ॥ ॥ हवे मणिरथ पापिष्ट, चित्तमांहे चिंतवे ॥ अव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) सर बाज नलो मल्यो ए॥ एक थोडो परिवार, बंधु बाहिर रह्यो,राति तिमर नर वन नल्यो ए॥१॥धाज जाळं वनमांहि, मारी सहोदर, मयणरेता मंदिर धरूं ए॥नोगवू जोग संजोग, मनोवंडित सुख, मयणरेहा घरणी करूं ए ॥ २ ॥ एम चिंतवी चित्तमाहि, वनमा हे गयो, पूज्युं मणिरथ पाहरु ए॥कहो किहां बांध व मुजा, केम बाहेर रह्यो, ९ घायो रहा करूं ए ॥३॥ केलीघर गयो राय, जबकि ससंन्रम, जुगबाद उनो थयो ए ॥ प्रणम्या बंधव पाय, राय वचन सु णी, शमन नय दरेंगयो ए॥४॥ चल तुं नगर म जार, वनें रहेश्यां नही, एम कही अवसर घटक ल्यो ए॥ दीधो खड प्रहार, छेदी कंधरा, जुगबादु ध रणी ढल्यो ए॥ ५॥ न गम्यो बांधव प्रेम, न गण्यो अपयश, परनव मर पण नवि गरयो ए ॥ न गण्यु पाप श्रखत्र, न गण्युं परःख, मणिरथ निजबांधव हस्यो ए॥ ६॥ पाडी बूम पोकार, मयणरेहा सती, दादा धनरथ कुण कियो ए ॥ धाया पाहरू लोक, पूनियु मणिरथ, केरा प्रहार पापी दीयो ए॥७॥ हे मणि रथ पापिष्ट,माहारा हाथथी,पडतुं खड़ जाण्युं नहीं ए॥ इंगित ने थाकार, सङ जाण्यु एम, नृप बनरथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) की धो सही ए॥ ७॥ कामयकी बहु क्लेश, मन चंचल सदा, कामथकी अनरथ घणा ए ॥ समयसुंदर कहे एम, ढाल ए पांचमी, हवे कहुं काम विटंबना ए॥॥ ॥ढाल बही॥ राग सारंग ॥ प्राण पीयारे कां तजी ॥ ए देशी॥ ॥धिक धिक कामविडंबना,देखे नही कामांधो रे॥ कामथकी अनरथ घणा, पूरव सुणि प्रबंधो रे ॥१॥ ॥ धिक० ॥ रावण सीता अपहरी, कीधो लुमो कामो रे॥ संकागढ़ लूंटावीयो,द्यां दश शिर रामो रे ॥२॥ ॥धि॥ आईकुमार मुनीश्वरो, मूकी संजम नारो रे॥ श्रीमती सुख जोगव्युं, वरस चवीश अपारो रे ॥३॥ धि॥ पांचशे नारी जेणे तजी, कनकवृष्टिक जेणो रे ॥ वेश्यावचन विलासथी, चक्यो श्रीनंदि षेणो रे ॥॥धि ॥ विहरण वेला पांगुस्यो, अरहन्नो सुकुमालो रे ॥ गोंख बोलाव्यो गोरडी, ते लुब्धो तत कालो रे ॥ ५ ॥ वि०॥ सिंहगुफावासी यति, गयो ने पाल सुदेशो रे ॥ रतनकंबल कीयु नेटणुं, कोण कोण सह्या कलेशो रे॥६॥धि॥आषाढनति माहामुनि, बद्ध बुद्धिलब्धि नंमार रे॥नुवन सुंदर जयसुंदरी,नटवीशुंघ रबारो रे ॥७॥ धि० ॥ पेट पीडा मिशें प्रारथे, श्रमण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ७ ) शेकावे पेट रे ॥ साधु सबल तपसी ढुंतो, काम विडंब्यो नेटो रे ॥ ८ ॥ धि० ॥ चित्त चूक्युं रहने मिनुं, चरम शरीरी जेहो रे ॥ गुफामांहि राजुल तणो, देखी कथा डो देहो रे ॥ ए ॥ धि०॥ साधु द्रुतो कुलवालुङ, वे श्यालुब्धो जेहो रे ॥ थून पडाव्यो जिन तणो, अनर थ कीधो एहो रे ॥ १० ॥ धि०॥ साधवी पण सुकुमा लिका, मूकी मसाण पासो रे ॥ सारथवाहचं घर कीयुं, जोगव्या जोग विलासो रे ॥ ११ ॥ धि ॥ दमयंती देखी करी, चूको नल अणगारो रे || चेला रूप देखी च ल्यो, वीर तणो परिवारो रे ॥ १२ ॥ धि० ॥ नूल्यो पु त्री प्रजापति, यहिल्या नूल्यो इंदो रे ॥ जननीशुं जा व्द जुल्यो, नगिनी अहिउंदो रे ॥ १३ ॥ धि० ॥ एम अनेक जोगी यति, चूक्या कर्मविशेषें रे ॥ तेम चू क्यो मणिरथ इहां, मयारेहारूप देख्यो रे ॥ १४ ॥ धि० बह ढाल पूरी थई, कह्या केता अधिकारो रे ॥ सम यसुंदर कहे धन्य तिके, पाले शीयल उदारो रे ॥१५॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे मणिरथने पाहरु, जोरें नगर लेई जाय ॥ निरतिकरी चंड्जस नली, वैद्य तेडी वन धाय ॥ १ ॥ चंड्जस पण खाव्यो तिहां, करतो मुख खाकंद ॥ गा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) बडी बंधावतां, नृपति थयो निःफंद ॥२॥अंगे नप नी वेदना, रुधिर वबूटां खाल ॥णमालोचन मलि गयां,वाच रही ततकाल ॥३॥ मरण समें जाणीक री,मयणरेदा बढुमान ॥ मन दृढ करी मधुरे स्वरें,ध में सुणावे कान ॥४॥ ॥ ढाल सातमी॥ वणजारानी देशी ॥ ॥ मोरा प्रीतमजीतुं सुण एक मोरी शीख ॥वालम जी सुण एक मो०॥ तुं मन समाधिमाहे राखजे, मो राजीवनजी॥ मोरा प्रीतमजी तुं खामे सघला जीव, ॥ वाल॥नेद चउराशी साख जे ॥ मोराजी० ॥ ॥१॥ए यांकणामोरा प्रीतमजी तुं म करे राग ने दे प। वालम्॥ तुं शत्रु मित्र सरिखा गणे॥ मोरा॥ मोरा प्री० ॥ तुं देजे कर्मने दोष ॥ वाला ॥ तुं चं तरंग वयरी दणे मोरा० ॥ ॥ मोरा प्रीत० ॥ ताहरे देव एक अरिहंत ॥ वाला ॥ तुं गुरु सुसाधु दियडे वहे। मोरा जी०॥ मोरा प्री० ॥ ताहरे केव लिनाषित धर्म ॥ वाल० ॥ तुं तो समकित सूचूं स ईहे ॥ मो० ॥३॥ मो० ॥ तुं दश दृष्टांतें जाण ॥ वाला ॥ ए मनुष्य तो नव दोहिलो ॥ मो० ॥ मो० ॥ जो एणे न कीजें पुण्य ॥ वाला ॥ तोप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) रनव सुख सोहलो ॥ मो० ॥ ४ ॥ मोरा ॥ तुं प नरह कर्मादान ॥ वाल ॥ वली पाप बढारह परि हरे ॥ मोरा ॥ मोरा०॥ तुं सुकृत किया अनुमोद ॥ वाल ० ॥ तुं मुकत तणी गर्दी करे। मो०॥ ५ ॥ ॥ मोरा० ॥ ताहरे मारग ने अति दूर ॥ वा० ॥ तुं संबल साथें घालजे ॥ मोरा ॥ मो० ॥ तारे पग पग चोरनी धाड ॥ वाल॥ तुं तेहथी सहिरो रहे ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ तुं हिंसा मृषा वाद ॥ वा० ॥ तुं अदत्तादानथी उसरे ॥मो०॥ मोरा प्री० ॥ तुं परि ग्रह धारंन पाप ॥ वा० ॥ तुं त्रिविध त्रिविध करी परिहरे ॥ मो० ॥ ७ ॥ मोरा०॥ तोरी अंतयवस्था एह ॥ वाल० ॥ तुं धर्मे दृढ करजे हियुं ॥ मोरा ॥ मो० ॥ तु सदहजे मनगु६ ॥वाल०॥ तुने चन विहार अगसए दीयुं ॥ मो०॥ ७॥ मो॥ एक साचो श्री जिनधर्म ॥ वाल॥ ताहरे अवर सदु को अथिर ने ॥मो॥मो॥ तुं मरण तणो जय माण ॥ वा॥ तुं जोय जगत कुण अमर डे ॥ मो० ॥ ए ॥ मोरा ।। तु शरणां करजे चार ॥ वा० ॥ श्रीअरिहंत सि६ सु साधु जे ॥ मोमो०॥ तु केवलि नाषित धर्म ॥वा॥ ए चारे धाराधजे ॥ मोग॥ १० ॥ मो० ॥ तुं ध्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) धरे नवकार ॥ वा० ॥ जिमकाज सरे पियु ताहरु ॥ मो० ॥ मो॥ एह संसार असार, तुं मोह म कर जे माहरो ॥ मो० ॥ ११ ॥ मो० ॥ एम मयणरे हा उपदेश ॥ वाते साचो सघलो सदहें । मो॥ ॥ मो० ॥ए जुगबाद जुवराज ॥ वा० ॥ते काल करी परनव लह्यो । मो० ॥ १२ ॥ मो॥ धन्य मय परेहा ए नारी ॥वा० ॥ एण अवसर काज समा. रियुं ॥ मो० ॥ मो० ॥ जेणे थापण्डो जरतार ॥ वा० ॥ उपदेश देई निस्तारीयो । मो० ॥ १३ ॥ मो० ॥ ए सातमी ढाल रसाल ॥ वा० ॥ जुगबादु श रणां तणी॥मो॥मो समयसुंदर कहे एम ॥वा०॥ हवे मयणरेदा वात ले घणी ॥ मो० ॥ १४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥पितामरण जाणीकरी, चंजसा करे पोकार ॥ यांखें बदु थांसु फरे, करे विलाप अपार ॥१॥मयण रेहा एम चिंतवे,धिक धिक माहारूं रूप ॥ एवंथी थ नरथ उपन्यो, माखो प्रीतम नूप ॥॥ मत मारे मुज पुत्रने,मणिरथ माहरे काज ॥ शील रतन राखण न एी, जावं किणे दिशि नाज ॥ ३ ॥ एम मनमाहि Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) चिंतवी, समजावी सुत सार ॥ निशिनर चाली एकली, पूर्व दिशि सुविचार ॥४॥ ॥ ढाल बातमी ॥ मोहनगारो रे नंदि खेण नाहलो ॥ ए देशी॥ ॥निशिनर चाली रे मयणरेहा सती,एकलीय बला रे नार ॥ पूर्व दिशि सामां मन शंकती,पेठी थ टवी मजार ॥१॥ मयणरेहा निशि चाली एकली,रा खए शीलरतन ॥एयांकणी॥ किंहां जई काज समा रूं जीवनु, करूं वली कोडी जतन ॥ ॥मयणरे ॥ खरे मध्यान्हें सरोवर देखीयु,लीधो तिहां विश्राम ॥ फल फूल नक्षण करी पाणी पीयु, सूती कदली गम ॥३॥मय॥ सागारी थासण मुखें कच्चयो,राति पडी ततकाल ।। सिंह वाघ गुंजे बिहामणा, बोले बहु लां शीयाल॥४॥ मय० ॥ धाधी रातें पेटपीडा थ ई,जायो पुत्र प्रधान ॥ गुनलकण संपूरण गुणनितो, सुंदररूप निधान ॥ ५॥ मय० ॥ रतन कंबल नामां कित मुड्डी, वींटी बाल शरीर ॥ सती सरोवर प्रना तें गई, शुचि करवा निज चीर ॥ ६॥ मय० ॥ वस्त्र धोई पेठी वली स्नानने, तिण वेला उंदैत ॥ पाणी माहेथी गज नीसस्यो, जाणे काल कतांत ॥ ७ ॥म Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) य० ॥ तिणे गजें शुंढादमें ग्रही करी, कबाली या काश ॥ दैवयोगें दीठी विद्याधरें,ऐ ऐ रूप प्रकाश ॥७॥ मय० ॥ पडतां जाली तेणें विद्याधरें, करती कोडी विलाप ॥ वैताढ्यपर्वतें लेई गयो,पण मनमांहि पाप ॥ ए ॥ मय ॥ मयणरेहा कहे सुण विनति, मुज मनें छःख अनेक ॥ ते कुःख केहेतां फाटी पडे, हायु पण सांनल कुःख एक ॥ १० ॥ मय० ॥ बाज रातें वनमा में जल्यो, बालक पुण्य पवित्त ॥ केली घर मूकी हुँ गई, सरोवर स्नान निमित्त ॥ ११ ॥ म य॥ जलहाथी कबाली तें ग्रही,पण बालकनी काण वात ॥ विण धवराव्यो मरशे टल वली,के कोई करशे घात ॥ १२॥ मय० ॥ तेणें मुझने पोहोती कर तिप वनें, अथवा बालक बाण ॥ प्रारथीया उत्तम पहि डे नही, जनम सफल तमु जाण ॥ १३ ॥ मय० ॥ कहे विद्याधर कामातुर थको,जो मुज करे जरतार ।। तो तुं वचन कहे ते दुं करूं, बच्चे साखी किरतार ॥१४॥ मय० ॥ पाठमी ढाल सबल संकट पडी, फुःखमांहे वली दुःख ॥ समयसुंदर नाखे विनोगव्यों, करम तणुं नहीं मुरक ॥ १५॥ मय० ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ॥ दोहा॥ ॥ वलतुं विद्याधर नणे, सुण सुंदरी ससनेह ॥ दे श गंधार मांहे नचु, रत्नावद पुर एह ॥ १ ॥ विद्या धर राजा तिहां, मणिचूड मह मतिवास ॥ पटराणी पदमावती, मणिप्रन हूँ सुत तास ॥ ५ ॥ दक्षिण न त्तर श्रेणिनी,राजक्षिसवि बोडी।मुफ पिता संजम लीयो, मोह तणुं दल मोडी ॥३॥ चारित्रियो चारण श्रमण, करतो कर्मनुं सूड ॥ काले इहां याव्यो हतो, विहरंतो मणिचूड ॥ ४ ॥ हवे ते नंदीश्वरें गयो,प्र तीमा वंदनकाज ॥ तमु समीप जाते थके, में तुज अपहरी थाज ॥ ५ ॥ वात कहूं वली ताहरी,पुत्र त णी अनिराम ॥ माने बोल तुं माहरो,पूरे वंबित का म ॥ ६ ॥ वक्र तुरंगम अपहयो, मिथिला नगरी रा य॥ तेणें वनें दोगे ताहरो, पुत्र थनोपम काय ॥७॥ घर पाणी राणीनणी,दीधो पुत्रप्रधान ॥ पंच धायें पा तीजतो, दिन दिन वाधे वान ॥ ७ ॥ प्रज्ञप्ति विद्या ये कह्यो, पुत्र तणो विरतंत ॥नोगव नोग संयोग तुं, मुफशं मन एकंत ॥ ए॥ हूं तुऊने गेहूं नही, हवे तुं माहारे हाथ ॥ तन धन जोवन रूप, फल नोग व मुज साथ ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ॥ ढाल नवमी॥ राग मालवी गोडी॥ तुं गीया गिरि शिखर सोहे॥ ए देशी॥ ॥सुणी वचन सराग तेहनां, सतीय चिंते एम रे ॥ सबल संकट पडी हूं हवे,शील रा केम रे॥१॥ मयगरेहा शील राख्यु, पडि संकट जेण रे॥ दिनप्रत्ये प्रनातें उठी, नाम लीजें तेण रे ॥२॥मयण ॥ए यांकणी ॥ में जे कर्म कगेर कीधा, उदय थाव्यां ते हरे ॥ यापदामांहे पडी थापद, हजी नावे द रे ॥३॥ मय० ॥ ढुं अनाथ अत्राण अबला, कांई न चाले जोर रे॥शील राखण नगीना,कलं एक निहोर रे ॥४॥ मय० ॥ सती नांखे सुण विद्याधर, नंदीसर लेई जाय रे ॥ पड़ी मानीश वचन ताहरु, जोरें प्रीति न थाय रे॥५॥ मय० ॥ एम मुणी हर्षि त दु खेचर, रचियुं देव विमान रे ।। साथें लेई चाल्यो विद्याधर, नंदीसर असमान रे ॥६॥ मय० ॥ तिहां जाइ जिनवर बिंब पूज्यां, रुषजानन वर्षमान रे ॥ चंशनन वारिषेण नामें, धनुष्य पंचशत मान रे॥७॥ मया ॥ मणिचूड मुनिने वांदी बेग, बेक पागल आय रे ॥ चार नाणीवात जाणी, सुत लियो सम काय रे ॥णामय० ॥ कर जोडी मणिप्रन कहे सुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) सती, खमे मुफ अपराध रे ॥ बाजथी तुं बहेन माद री,बुजव्यो एणें साध रे ॥णामय॥ तुं कहे ते वली करूं कारज, बहेन दे श्रादेश रे ॥ सती कहे ते सर्व कीg, यात्रा पुस्य विशेष रे ॥१०॥मय०॥ सती शील रह्यं अखंमित, गयुं संकट दूर रे ॥ ढाल नवमी सम यसुंदर, नणे थाणंद पूर रे ॥ ११ ॥ मय० ॥ ॥दोहा॥ ॥ मयणरेहा मुनिवर नणी, पूजे प्रणमी पाय ॥ वात कहो मुफ सुत तणी, नगवन् करो पसाय ॥१॥ कहे मुनिवर सुण श्राविका, पूरव नव विरतंत ॥जेम तुज अंगज अवतस्यो, तिम हुँ कहिशुं तंत ॥ २॥ ॥ ढाल दशमी ॥ तिमिरी पासें वडखंगाम ॥ चोपाई॥ ___॥ जंबुदीप पूर्व सुविदेह, पुखलावती विजय गु गेह ॥ तिहां मणितोरण नगर उदार, गढ मढ मं दिर पोल प्रकार ॥ १ ॥ चक्रवर्ति पदवी नोगवे राय, अमितजसा नामें केहेवाय ॥ तमु घर पुष्पवती पट राणी, अनुत रूप जाणे इंझणी॥॥ तेहने पुत्र बे पुण्य प्रमाण, पुष्पसिंह रत्नसिंह चतुर सुजाण ॥ चरा शीपूरव लख राज, पाली सास्यां धातम काज ॥३॥ चारण श्रमण यतिनी पास,दीदा सीधी मन ठल्हा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) स ॥ शोल पूर्व लख वरसा सीम, तप जप संजम कीधा निःसिम ॥४॥ ते पोहोता बारमे देवलोक,पुरम्य तणां फल पाम्या रोक ॥ सामानिक देवता केहेवाय, बावीश सागर नोगवा थाय ॥ ५॥ तिहाथी चवीने धातकी खंफ, जरतमाहे हरिषेण प्रचंग ॥ अर्ध च की राजा धनिराम, समुदत्ता तस नार्या नाम । ॥ ६ ॥ तेहनें पुत्र थया सुपवित्त, सागर देवने सागर दत्ताबारमो जिन दृढसुव्रत स्वाम, तस पासें साधु थया हितकाम॥७॥त्रीजे दिन थयो वीजली पात, बेदु साधु तणो थयो विघात ॥ उपना सातमे सुर धावास, स तर सागर लगें लील विलास ॥॥ नेमीसरने तेणें प्र स्तावें, केवल महिमा करवा यावे॥प्रश्न करे कई जग अाधार,किहां थाशे स्वामीयम अवतार॥ ए॥ नगवं त कहे इण नरत मजार, मथुरा पुरी अलका धव तार ॥ जयसेन राजानो सुविवेक,पुत्र होशे बेदुमाहि एक ॥१०॥ बीजो नगर सुदर्शन जेह, मयणरेहा सुत दोशे तेह ॥ एम सांजली गया देवता दोय,निज देवलोकें हर्षित होय ॥ ११ ॥ अनुक्रमें सुर सुख नोगवी सार,एक तणो मिथिला अवतार ॥ जयसेन वनमाला कूखें हंस, पुत्र पद्मरथ कुल अवतंस ॥१॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५७) जयसेन राजा दीक्षा लीध,शदि पद्मरथ पुत्रने दीध ॥ पुष्पमाला पटराणी सुरंग, नोगवे राजा सुरक अनंग ॥१३॥ एकदिन अपहरियो वक्रतुरंग, नृप अटवी पडियो जाणे कुरंग ॥ तिहां दोगे तुम अंगज जेह, पूरव नव तणो प्रगटयो नेह ॥ १४ ॥ बालक चंचो लीधो जाम, पू लशकर याव्युं ताम ॥ गज चडी राजा मिथिला याव्यो, पुत्र जनम जेम रंग वधाव्यो ॥ १५ ॥ बीज तणो जेम वाधे चंद, मयणरेहा तुज पुत्र थाणंद ॥ सतीय सुणी हरखी ततकाल, समय सुंदर कहे दशमी ढाल ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जेहवे मुनिवर एम कहे, तेहवे एक विमान ॥ ननथीनीचं नता, तेजें नाग समान ॥१॥ ज यजय शब्द समुच्चरी, अपर याणंद पूर ॥ घम घम घमके घुघरी, वाजे वाजित्र तुर ॥ २ ॥ निर्मल फटि क रत्नमय, नाटक पेड बत्रीश ॥ मणि मुक्ताफल जालिका, शोनामान सुजगीश ॥ ३ ॥ तेणे विमान थी नीलस्यो, देव दिव्य आकार ॥ कानें कुंमल जल हले, उरें मुक्ता फलहार ॥ ४ ॥ सती तणा ते देवता, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) पहिला प्रणमी पाय ।। साधु नणी वांदे पड़ी, बेसे बागल प्राय ॥ ५॥ ॥ढाल अगीयारमी ॥रे जीव जिनधर्म कीजियें ॥ए देशी॥ ___॥ मणिप्रन विपरीत वंदना, देखी कहे एम ॥ तु फ सरिखा पण देवता, कहो नूले केम ॥ १॥ धर्म तणो नपकारडो, मोहोटो संसार ॥ परहित जाणी जिके करे, धन ते नर नारि ॥२॥ धर्माए अांकण राजनीति धर्म नीतिना, सुर कही जाण ॥ ते पण लोपे रीतिने, कोण चाले प्राण ॥ ३॥ धर्म०॥ सुण परमारथ सुर कहे, विद्याधर राय ॥ नगर सुदर्शननो धणी, मणिरथ कहेवाय ॥ ४ ॥ धर्म ॥ जुगबादु बंधव हतो, तेहने युवराज ॥ रमवा उद्याने गयो,स घलो तेइ साज ॥ ५ ॥ धर्म० ॥ मणिरथ नाई मा रोयो, वयराण संबंध ॥ खड़ प्रहार दीधो खरो, यो तमु खंध ॥ ६ ॥ धर्म ॥ कंठगत प्राण थाव्यां थका, निर्फराव्यो जेण॥काज समायां तेहनां,मयण रेहा एण ॥ ७ ॥ध ॥ धर्म मर्म समाजावीयो, मु काव्योक्रोध ॥थासण पण उच्चरावीयुं,दीधो प्रतिबो ध॥ ॥ धर्म॥ काल करी गयो पांचमे, देवलोकें ते Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पए) ह॥ इं सामानिक सुर दुन, देवता हुँ एह ॥ ५ ॥ ॥ धर्म ॥धर्माचारज माहरे, मयरेदा जाणी॥पेह जी कीधी वंदना, उपगार प्रमाणी॥१०॥ धर्म० ॥जे हथी जिन धर्म पामीयो,नपकारी सोय ॥ धर्माचारज थापणो, तेहने ते होय ॥ ११॥धर्म ॥ तान थो क जिनशासने,कह्या प्रतिकार ॥ मात पिता शेठ ध मैनो, कीधो जेणे नपकार ॥१॥ धर्म ॥ विद्याधर मन चिंतवे,में जास्यो मर्मात्यां सुःख पामे जीवडो,न क रे ज्यां धर्म ॥१३ ॥ धर्म ॥ देव कहे सानल सती, तुं सामिणी मुज ॥ मयणरेदा तुं मुज प्रिये, कहे ते करूं तुज ॥ १३ ॥ धर्म० ॥ मुजने प्रिय सुख मो नां ते तें न देवाय ॥ पण एक वार तुं पुत्रनी,पासें ले ई जाय ॥ १५ ॥धर्म॥ थांखें पुत्र देखी करी, मन थापीश नामकाज समारीश थापणुं ढील नहा धर्म काम ॥१६॥धर्म॥ ढाल एह अग्यारमी, कह्यो परत पकार ॥ समय सुंदर कहे हवे कहूँ,बागल्यो अधिकार ॥ ॥ढाल बारमी। मरुदेव माताजी एम नणे ॥ ए देशी॥ ॥ मनहुँ रे कमायुं मलवा पुत्रने रे, मयणरेहा कहे एम रे ॥ सांनल सुरवच नारीनुं रे,पुत्र कपर ब Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) 0 हु प्रेम रे ॥ १ ॥ मनडुं रे ० ॥ ए यांकली ॥ में जनमीने वनमें मुकीयो रे, स्नान कराव्युं न साहि रे । वरें धरीने न विधवरावीयो रे, खांति रहे मनमांहि रे || || मनडुं || यांख न प्रांजी यणी खालडी रे, प्रर्द्धचंद नवि कीयो जाल रे ॥ हेजशुं नवि दुलरावीयो रे, अंगज मुफ सु कुमाल रे ॥ ३ ॥ मनडुं० ॥ नजर नरी नवि जोईयो रे, मुऊ दीन दैव विठोह रे ॥ जल विण माउली टन वलुं रे, मुऊ घणो पुत्रनो मोह रे ॥ ४ ॥ मनडुं ० ॥ मय परेहा मिथिलापुरी रे, सुरपहोती करि याण रे ॥ जिहां नमि मल्लि जिनवर तणांरे, जनम व्रत केवलनाय रे ॥ ॥ ५ ॥ मनडुं० ॥ प्रथम जुहायां देहरों रे, पी गई साधवी पास रे ॥ पाय कमन प्रणमी कर। रे, खागल बेठी उल्लास रे ॥ ६ ॥ मन० ॥ साधवी धर्म संनलावीयोरे यावियो परम संवेग रे ॥ सुर कहे चाल नृपमंदि रें रे, पुत्र देखाडुं तुज वेग रे ॥ ७ ॥ मन० ॥ मयणरे हा कहे मादरे रे, पुत्रशुं नहीं प्रतिबंध रे॥ धिक् धिक् मो दनी कर्मने रे, हुं थइ मूढमति अंध रे ॥ ८॥ मन० ॥ पुत्रनी मोहनी में तजी रे, थिर कुटुंब परिवार रे ॥ जि नधर्म एक सखायि रे, प्रवर संसार असार रे || मन० ॥ तो हवे सुख जिम तिम करी रे, ढुं व्रत लेगुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) हितकाम रे ॥ मयणरेहाने प्रणमी करी रे, सुर गयो यापण गम रे॥१०॥ मन ॥ साधवी पासें संजम लियो रे,मयणरेता अनिराम रे ॥ तप जप कतिन करी धाकरां रे, साधवी सुव्रता नाम रे ॥११॥ मन०॥ बार मी ढाल पूरी थई रे,मोहनीकर्म अधिकार रे।समय सुं दर कहे दवे सुणोरे,पुत्रनो कोण प्रकार रे।।१॥मन। ॥ दोहा ॥ . ॥ तेरो बालक वधतां तिहां, शत्रु नमाड्या जेण॥ नाम यथारथ पापियुं, कुमरतणुं नमि तेण ॥१॥था नवरसनो तिणे कीयो,सकल कला अन्यास॥अनुक्रमें यौवन धावियु, मृगनयणी दृगपास ॥॥ वंश इका गनी नपनी,रूपवंत गुणवंत॥सहस बगेत्तर कन्यका, परणावी अति कंत ॥३॥ निज नारीशु परिवस्यो,अपह र युं जेम इंद ॥काम नोग सुख जोगवे, पामे परमाणंद ॥४॥ हवे ते राजा पद्मरथ, नमिने देई राज ॥ दीक्षा लेई मुगतें गयो, सास्यां धातम काज ॥ ५॥ ते पण मणिरथ पापीयो, निजबंधवने मार ॥ तेणें निशिथ हि मशीयो मू, नरक गयो निर्धार ॥ ६ ॥ चंजस राजा थापियो, मति मेहेते परधान ॥ पाले राज पर शु, दिनदिन अधिके वान ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) ॥ ढाल तेरमी ॥ योगणानी देशी॥ ॥ एकदिन नमि राजानो हाथी,लूटो अतिमद मस्त थकोंहारेमदम०॥थालान थंन नखेडी नाख्यो, मारे माणस देई धको॥हांदे०॥ ए बांकणी॥१॥जाय लोक दिशो दिशि नागां, बीहितां पेट पडे घ्रसको ॥ हां० ॥ सांकल त्रोडे रुखने मोडे, को तेहने जा लीन सको रे॥शाहांग॥ विंध्याचल घटवीनणीजा तो, नगर सुदर्शन सीम रह्यो ॥ हां ॥ चंजसा नृप सेवकें दोगे, थापणा नूपने थाय कह्यो ॥३॥ ॥हा॥ चंजसा नृप जाली थास्यो,बांध्यो गज दर बार रह्यो । हां० ॥ फरता दूत देखी मन हरखी,न मि राजा जणी जाय कह्यो ॥४॥ हां ॥ नमि राजा निजदूत मूकीने, चंजसा पासें गज मागे ॥ हा०॥ चंजसा पण सबलो राजा,कह्यो ते तेहने नविला गे॥५॥हां० ॥ वली कहे रतन लख्या नही नाम,जे सबलो ते नृप नोग||हां॥शूरने वीर तिके जग साचा, बल बल करी अरियण जोगवे ॥ हां० ॥ ६॥ दूतव चन मुणी नमि नृप कोप्यो, सिंह हकाखो केम खमे ॥ हां ॥ अष्ठापद गरिव सांसे, केम करिव र्षा काल समे॥ हां ॥ ७॥ तुरत प्रयाण नंना वज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डावी, मेघामंबर बत्र धरी॥हा॥हय गय रथ पायक दल मेली, राजा चाल्यो कटक करीहां ॥ ॥ चंइज सा पण नमिागम सुणी, सैन्य लेई साहमो चाल्यो ॥हा॥ नगरथको बाहिर नीसरतो, प्रथमथी अपरा कुने पाल्यो । हां० ॥ ॥ मंत्रि प्रधान वचन सुणी राजा, पोल जडी पुरमांद रह्यो ।। हां० ॥नगर वींटीप ड्यो चिढं दिशि परदल, नाली गोला वहे गढ विग्रह्यो ॥ हां०॥ १० ॥ सुव्रता साधवी सुणी मनचिंतवे, हा मत मनुष्यनो क्य होई ॥ हां० ॥ बांधव बेदु माहो माहे फूजी, जाये मत पुर्गति कोई॥हा॥११॥ गुरु पीने पूबी करी सुव्रता,प्रथम गई नमिनी पासें ॥हा॥ पदपंकज प्रण्मी करी पूब्युं, केम थाव्यां कहो नृपवासें ॥ हां ॥ १२॥ सुण राजान विषय विष सरीखा,कारिमीझदिने राज तेहा॥हा॥तेहने काजें सं ग्राम तें मांगयो, थापणा बंधव साथें एद ॥ हां० ॥ ॥१३॥ कहे बांधव केम ते मुज होई, साधवी नंद कह्यो सघलो ॥ दो० ॥ अतिथनिमानी ते नमिरा जा,मिलए न जाये ते सबलो ॥ हां ॥ १४ ॥ बारि दिशि पयठी पुरमाहे,राजमंदिर थांगण थाई॥हा॥ दीनी चंइजसा थावंती, चरण कमल प्रणम्या धाई Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) ॥हा॥ १५॥ सजन संबंधी सघलां थायां, नयरों नारप्रवाह करें ॥ हां०॥ कहो साधवी तुम्हें संज म मारग, दुःकर लीधो केणि परें । हांग ॥ १६ ॥ चंइजसा कहे किहां मुफ बांधव,साधवी वात कही संघ ली॥हा॥जेणसेंती तूं जुड़ करे ते,बांधव तुज रंग रली॥हां० ॥१७॥ चंजसा मलवा नणी चाल्यो, न मि साम्हो थाइपाय लागो॥हा॥ बांधव बेन मल्या मनरंगें, लोक तणी मन मर नागो ॥ हां ॥ १७ ॥ नमिराजाने देश अवंती, राज देई वैराग नजी॥हा॥ चंजसा गुरुपासें दीक्षा, ग्रदी का रिमी शदि तजी॥ हां ॥ १५ ॥ नमि राजा जोगवे मिथिलापुरी, नगर सुदर्शन राज बेई॥ हां० ॥ समय सुंदर कहे सुणो हो च तुर नर, तेरमी ढाल ए चित्त देई । हां ॥ २० ॥ .. ॥ ढाल चौदमी ॥ नावनानी देशी॥ ॥हो राज बे रूडी परें । रूडी परें रेहो ॥ सुख नो गवतां सुविशेष ॥ हो देह दायज्वर नपनो रेहो ॥ न मटे पीड निमेष ॥ १॥ दो कर्मथी न बूटे रे, कोई विण जोगव्या रे॥ दो कडूवां कर्मविपाक हो दादब मासी तनु दहे॥ तारेहो जाणेघगनिनी जाल ॥ हो सहि न शके नेमि वेदना ॥ वे ॥ रेहो नोजन Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) तज्यु ततकाल ॥ त०॥॥रे हो क० ॥ हो वडवडा वैद्य बोलाविया ॥बो॥रे हो पूज्या बेहु कर जोडो॥ हो लालच लोन देखाडीयो।दे ॥रे हो देयं कनक नीकोडी।क०॥३॥रे हो क० ॥ हो औषध नैषज तुम्हें करो ॥ तु० ॥रे हो करो कोइ दाय उपाय ।। हो वैद्यकला कोई केलवोको॥ रे हो जेणे करी दा घज्वर जाय ॥0॥४॥रे हो क० ॥ हो वैद्य कहे राजन सुणी ॥रा०॥रे हो धम्हें न साधु नर थाय॥ हो पण एक तपति उपाय २ ॥०॥ रे हो बावना चंदन लाय ॥ बा० ॥ ५॥ रे हो क० ॥ हो सह सने अाअंतेरी॥०॥रेहो दीठो दाघज्वर ताप। हो को केहनी नलीये वेदना ॥ वे ॥रे हो वनिता करे विलाप ॥वि०॥६॥रे हो क॥ हो अांखे बिहुँ आंसू रे ॥०॥ रे हो कनीप्रीतम पास ॥ हो स्नान मऊन नोजन तज्या।।नो० ॥रे हो अब साथ रे उदास ॥१०॥ ७ ॥रे हो क० ॥ हो घसी घसी चंदन बावना ॥बा०॥ रे हो नरीनरी कनक क चोल ॥क० ॥ हो नारि विलेपन तनु घसे ॥ त०॥रे हो ण ण करे वली खोल ॥ खो० ॥ ॥रे हो क० ॥ हो खलके चूडी सोना तणी॥ सो० ॥ रे हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) शब्द सोहावे नहीं कान ॥ हो चूडी कतारी आपली ॥ या० ॥ रे हो प्रेमदा प्रेम प्रधान ॥ प्रे० ॥ ए ॥ रे हो क० ॥ हो सघलां वलय कतारतां ॥ ० ॥ रे हो एकेक राख्यो मंगलिक ॥ हो वालि सोनुं जे यापणुं ॥ आ॥ रे हो जे त्रोडे कान खलीक ॥ जे० ॥ १० ॥ रे हो क० ॥ हो वलय कोलाहल केम रह्यो । क० ॥ रे हो राजा पूढी निजनारि ॥ हो नेद सुल्यो मिथिला धणी ॥ मि॥ रे हो चिंते चित्त मकार ॥ चिं० ॥ ११ ॥ रे हो क० ॥ हो एकाकी पणुं प्रति नलुं ॥ ० ॥ रे हो बहु जण मल्या बहु दुःख ॥ हो चक्रवर्त्तिने सुख नही ॥ सु० ॥ रे हो जे मुनिवर ने सुख ॥ जे ० ॥ ॥ १२ ॥ रे हो क० ॥ हो एकलो थावे जीवडो || जी० ॥ रे हो परजव जाय पण एक ॥ हो कुटुंब सट्रु को कारिमुं ॥ का ॥ रे हो वारु धर्म विवेक ॥वा० ॥ १३ ॥ रे हो क० ॥ हो जवजव जाय जीव एकलो ॥ ए० ॥ रे हो साथै कर्म सखाय ॥ हो पुष्यें शुन गति पामीयें ॥ पा० ॥ रे हो पापें दुर्गति जाय ॥ पा० ॥ १४ ॥ रे हो क० ॥ हो जीव खबे एक शाश्वतो ॥ सा० रे हो दर्शन ज्ञान संपन्न ॥ हो कह्या संयोग प्रशाश्व ता ॥ घ० ॥ रे हो पुत्र कलत्र धन धान्य ॥ पु० ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) रे हो क० ॥ हो स्वारथनुं सहू को मल्युं॥ स० ॥रे दो नही को राखणहार ॥दो पीड न ले कोइ पारकी ॥पा०॥रे दो ए संसार असार॥ ए॥१६॥रे हो क० ॥दो वलि मनमोहे चिंतवे ॥ चिंगारे हो जो मुज वेदन जाय॥हो तो हूं राज्य तजी करी॥ त० ॥ रे हो चारित्र लेन चित्त लाय॥ चा० ॥१७॥रे होक० ॥रे. दो एह मनोरथ मन धरी ॥ म० ॥रे हो निशि नर सूतो नमि राय ॥ रे हो सुपन दीतुं रात पाडली ॥पा० ॥ रे हो थाणंद भंग न माय ॥ आ॥ १७ ॥ रे हो क० ॥ दो मेरु कपर सुरगज चड्यो ॥सु०॥रे दो दीगो पातम रूप ॥ हो जबकी जा ग्यो गई वेदना ॥०॥ रे हो हर्षित दुवो नमि नूप ॥६० ॥१५॥रे हो कर ॥ हो औषध कोई लाग्यु नहीं। ला० ॥रेदो लाग्यो धर्म उपाय ॥ हो ढाल जणी ए चनदमी॥ च० ॥ रे हो समयसुंदर गुण गाय ॥ स ॥२०॥रे होक० ॥ ॥ दोहा॥ . ॥ नमि राजा एम चिंतवी,अहो सुपनंतर सार ॥ पहेलो किहां दीगे हतो, में किणही अवतार ॥१॥ जातिसमरण कपन्युं, दीगे सुर नवनेत ॥ मेरु शिख Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) रथाव्यों हतो, हुँ जिन महिमा हेत ॥ २॥ प्रतिबू ज्यो राजा नमि,त्रीजो प्रत्येक बुझ॥ नावें चारित्र ती यो नलो, संवेगी मनशु६॥३॥पाट थापी निज पुत्र ने,राज रमणि सवि मि॥ माया ममता परिहरी,नमि पहोतो वनखंम॥४॥ इंश परीक्षा यावीयो, करी ब्रा ह्मणनुरूप ॥ नमिराजा वैरागर्नु,देखें कोण स्वरूप॥५॥ ॥ ढाल पंदरमी॥बे बांधव वंदन चल्याए देशी॥ .॥कहे नमि रायनें,हेतु कारण पडिचोय रे॥ ए ह अर्थ श्रवणें सुणी, प्रश्नपडुत्तर जोय रे ॥ १ ॥ कहे नमि० ॥ मिथिला नगरी मंदिरे, सबल कोला दल आजो रे ॥ दारुण दीन दयामणो, केम सुणीय ऋषिराजो रे ॥ २ ॥ ३० ॥ नमि राजा कहे इंइने, हे तु कारण पडिचोय रे ॥ एद यर्थ श्रवणें सुणी, प्रश्न पडुसर जोय रे ॥ ३ ॥ नमि॥ मिथिला नगरी वने हतो,दमनोरम नामो रे ॥फल फूलें गया शोनतो,ब दुपंखी विश्रामो रे ॥४॥न ॥ ते तरु वाय कंपावी यो, तेणे पंखीनां वृंदो रे । हीन दीन खीयां थकां, अशरण करे थाकंदो रे ॥ ५॥ न० ॥ यनिएं मिथि ला बलें, मंदिरनो नहीं लेखो रे ॥ एह यंतेनर पारडे, एक वार फरि देखो रे ॥६॥ इं० ॥सुखें समाधे जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) बुं वसुं, काम नही किणतां रे ॥ मिथिला नगरी दा ऊतां, थम न बले इहां कां रे ॥ ७ ॥न ॥ गढ गोपुर करि थर्गला, थट्टालक खणे खा रे ॥ यंत्रशत नी सज करी, क्षत्रिय तुं पनी जाइ रें॥ ॥ इं०॥ श्रद्धानगरी में सजी,उपशम रस प्राकारो रे॥संवेग रूप गोपुर सज्यो, तप नोगल अति सारो रे ॥ ए॥न॥ सबल कमाड संवर तणां, खाइयंत्र थाटालो रे ॥ ए .त्रणे सबला सज्या, त्रणे गुप्ति विशालो रे ॥ १० ॥ ॥ नमि०॥वीरज धनुष चढावी\ समिति प्रत्यंचा चा ढी रे॥धैर्यमुति काठी ग्रही,सत्ययुं वींटी गाढी रे॥११ ॥नाबार नेद तप बाणगं,कर्म कंचुकने नेदी रे॥मु जथातम रूप शत्रुने, जीपे जिनमत वेदी रे ॥ १ ॥ न०॥ऊंचां मंदिर मालीयां,वरंमी वर प्रासादो रे॥नवा करावी थापणां, पबीतजे परमादो रे ॥ १३ ॥न०॥ मारग वचें घर ते करे,जे मन धरे संदेहो रे ॥ निचे मुक्ति नणी चल्यो, तस घर शाश्वतो तेहो रे ॥ १४ ॥ न०॥ लोमहार तस्कर बुरो, गंठी बोड निवारी रे ॥ निरुपश्व नगरी करी, होजे पनी व्रतधारी रे॥१५॥ इंइ०॥ एह अन्याय इहां घणो, मिथ्यामति दंम दी में रे ॥ विण थपराधी बांधायें, अपराधी मूकीजें रे॥ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १६ ॥न ॥ वली सीमाल पाल जे, माने नही तुज शिक्षा रे ॥ ते वश थाणी बापणे,तुं पड़ी लेजे दिदा रे॥१७॥ २० ॥जे रण फूजे एकलो,दश ला ख वैरी जीपे रे ॥ एक जीपे को थातमा, तो ते थ धिको दीपे रे॥१॥ नायाग करावी अति घणा, माणस घणां जमाडी रे॥दीये कनकादि दक्षणा,व्रत ले जे दिबांकी रे ॥१॥॥ जो कोई दश लाख दे, मास मास गोदान रे ॥ संजम अधिको तेहथी, दान विनापि प्रधान रे॥२॥नमि०॥ कठिन गृदाश्र म पालता, समरथ नही तिण नासे रे॥ पण पौषध व्रत पालता,रहे तुं गृहस्थावासे रे ॥१॥ २० ॥ कानपणी नोजन करे,मास मास जे बालो रे॥साधु त णी कला शोलमी, अर्धे नही तिण कालो रे ॥२॥ न०॥ कनक रजत मणि मोतीयें,नरी पूरा नमार रे॥ संजम पण लेजे पनी,त्रिय वर निरधार रे ॥२३॥ ॥६० ॥ पर्वत कनक रूपा तणा,मोहोटा मेरु प्रमाण रे॥वार धनंती पामीया, न थ तृप्ति नत्राणरे ॥ ॥ २४॥न । काम नोग साधा थका, ए अचरिज जे बोडे रे ॥ पश्चात्ताप होशे पडी,पण दुताने शेडे रे २५॥ ३० ॥ काम बाशीविष सारिखा, साल Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) समा दुःखखाणी रे ॥ वंडित काम कामता, दुर्ग तियें जाय प्राणी रे ॥ २६ ॥ न० ॥ क्रोधें यधोग ति पामियें, मानें धमगति होय रे ॥ माया शुनगति प्रत्ये हणे, लोन की जय दोय रे ॥ २७ ॥ २० ॥ उचरा ध्ययनथी नखा, प्रश्न उत्तर यनिरामोरे ॥ पनरमी ढाल पूरी यई, समय सुंदर हित कामो रे || || २ ||नन ॥ ढाल शोलमी ॥ रयण केता रे माइ ऊलमलां ॥ ए देशी ॥ ॥ ब्राह्मणनुं रूप फेरीयुं, थाप प्रगट थयो ५ ॥ चपल कुंमल खानरणथको, प्रणमी पाय अरविंद ॥ ॥ १ ॥ इंड् प्रशंसा एम करे | धन्य धन्य तुं कृषि राय ॥ त्रस्य प्रदक्षिणा देई करी, प्रणमी वारवार पाय ॥ २ ॥ ई इ० ॥ दो तें क्रोध दूरें कीयो, थदो तें जीत्यो थ निमान ॥ अहो तें माया ममता तजी, यहो लोन तज्यो असमान ॥ ३ ॥ ५० ॥ अहो तें खार्जव थ ति जलो, हो तें माईव सार ॥ थदो तें साधु कुमा जली, ग्रहो तें मुत्ति उदार ॥ ४ ॥ ० ॥ इण नव उत्तम पूज्य तुं, परनव होइश सि६ ॥ पामीश साधु तुं मुक्तिनां, सासतां सुख समृद्ध ॥ ५ ॥ ० ॥ धन्य करणी तोरी साधुजी, धन्य पिता कुल धन्य ॥ धन्य मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ता जेणें जनमीयो, एहवो पुत्र रतन ॥ ६ ॥६॥ ढुं बलिदारी कृषि ताहरी, तुज सम थवर न कोय ॥ चडते परिणामें चडपो, सोने श्याम न होय ॥ ७॥ इं॥तुं धन तुं कतारथ थयो,सफल कीयो अवतार॥ राज्य रमणी सवि परिहरी, लोधो संजम जार ॥॥ इं० ॥ एम प्रशंसा करतो थको, देय प्रदक्षिणा तीन ॥ वली वली करे पग वंदना. नावनक्ति अति लीन ॥ ए॥६६०॥ गुन लक्षण पद साधुना, प्रण मी परम उन्नास ॥ चपल कुंमल शिर सेहरो, इंग यो आकाश ॥१०॥ इं० । शोलमी ढाल सोहाम णी, इंश परीक्षा जाण ॥ समयसुंदर कहे सांजव्यां, जीवित जनम प्रमाण ॥ ११ ॥ ३०॥ ॥ ढाल सत्तरमी॥ धन्याश्री रागमां ॥ . ___बंति वाजे हो वीणा ॥ए देशी ॥ ॥ मुनिवर पाय नमुं पाय नमुं,नमिराजा कृषि राय ॥मुनि॥ एषांकणी॥नमि राजा संजम ली॥०॥ चढते मन परिणाम ॥ मु०॥ चोथे खंग चिद्वं साध ना॥ चि॥गुण गाइश अनिराम ॥१॥मु०॥ इंश प्रशंसा एम सुणी॥ एम०॥ कीधो नहीं अहंकार ॥ ।मु०॥त्रीजो प्रत्येक बुद्ध ए॥बु० ॥ क्रमें कमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) करें विहार ॥॥मु०॥ विमलनाथ प्रसादथी॥०॥ श्रीनग्रसेन पुरमांहे।मु०॥ गिरु गब खरतर तो ॥ खर०॥ दिन दिन अधिक उजाह ॥शमु॥ युगप्र धान गुरु राजिया।गु०॥ श्रीजिनसिंह मुलिंद ॥१०॥ सकलचंद सुपसाचलें ॥सु०॥ मुझ मन परमाणंद ॥४॥ मु॥त्रीजो खंम पूरो थयो॥पू०॥नमिराजा अधिकार।मु०॥ सत्तर ढाल सोहामणी ॥सो०॥ समयसुंदर सुखकार ॥ मु०॥५॥ इति श्रीनमिराजा प्रत्येक बुदरासनामा तृतीयः खंमः संपूर्णः ॥ ३ ॥ ॥ अथ निग्गइ नाम चतुर्थ प्रत्येक बुद्ध चरित्रे चतुर्थः खंमः प्रारन्यते॥ ॥ दोहा ॥ ॥सीमंधर स्वामी प्रमुख, विहरमान जिनवीश ॥ ज्ञानदिवाकर दीपता, चरण नमुं निश दीस ॥ १ ॥ वली प्रणमुं असिथासा,मूलमंत्र नवकार ॥ धरणी घर पद्मावती, सुरपद पाम्यो सार ॥२॥ शत्रुजो गिरि नार गिरि,श्रीय समेत गिरिंद॥थाबू अष्टापद नमुं,ए तीरथ थाणंद ॥३॥ दान शीयल तप एत्रणे,नाव मले Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) तो चंग॥ तेरो कारण कहुं निग्गई, चोथो खम सुरंग ॥४॥ ॥ ढाल पहेली ॥ शीख न शीख न चेलणा ॥ देश ॥॥ ॥ जंबुद्वीप सोहामणो, लाख जोयण मान ॥ द हिप जरत तिहां जलो, देश गंधार प्रधान ॥ १ ॥ रा ज करे सिंहरथ तिहां, राजा परचंम ॥ वयरी राय नमा डीया, परताप प्रखंम ॥ २ ॥ राज करे । ए यांक थी । पुंमर वर्धनपुर प्रतिननुं, बहु ऋद्धिसमृद्धि ॥ नूरमणी नालें तिलो, सघजे पर सि६ ॥ ३ ॥ राज० ॥ एकदिन राजा नेटणे, खाया अश्व दोय ॥ उत्तर पंथना उपना, देखे सहु कोय ॥ ४ ॥ राज० ॥ राजा राज्यकुम रथया, बेदु सवार । नगरथकी बाहिर गया, चलगा न मजार ॥ ५ ॥ राज० ॥ राजायें अश्व शेडावीयो, केहवो जोनं वेग ॥ पवनवेग जेम कडीयों, लागो उद्वेग ॥ ६ ॥ राज० ॥ जेम जेम वागं काठी ग्रही, तेम ते म चड्यो रोष || घटवी मांहे लेई गयो, खडतालीश कोश ॥ ७ ॥ राज० ॥ ढीली वाग मूकी तिहां, था क्यो नूपाल ॥ वक्रशिक्षित कनो रह्यो, घोडो ततका ल ॥ ८ ॥ राज० ॥ वक्रमाणस पण एहवां, समजा यां न जाय || लाल पाल माने नदी, खापें पाध सं ध्याय ॥ ए ॥ सज०॥ अश्व जेइ तरु बांधीयो, ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) काकी राय ॥ प्रावृत्ति करे थापणी, फलने फूल खाय ॥१॥राज ॥ ऊंचो गिरि उपर चड्यो, व सवा निवास ॥ नूप सात एक नमियो, देखे थावा स॥ ११ ॥राज ॥ तिहां बेठी एक कन्यका, देखी दिव्यरूप ॥ऐ ऐ अनुत लावणिमा,चमक्यो चित्त न प॥१॥ राज ॥ कन्या जत्नी कती थ, दी थादर मान ॥ सिंहासन बेसण तव्यो,मान विण तजे गन ॥ १३ ॥राज ॥ यतः ॥ बार बोलावण बेस', बीडी बे कर जोड ॥ जे घर पांच बब्बा नही,ते घर दूरे बोड ॥ १४ ॥ नयणे नयण बेहु मल्यां, उपन्यो कामराग ॥ चतुर्रा चमक लोह ज्यु, जोवे चित्त ला -ग॥ १५॥राज०॥ यतः॥ नया पदारथ नयण रस, नयणें नयण मिसंत ॥ अजाण्याशुं प्रीतडी, पेहला नयण करत ॥१६॥रा ॥राजा तन मन ननस्या, कुमरीतन देखी॥ प्रेम जणावे पाबलो, संचम सुविशेषी॥१७॥राज॥दोहा ॥ जेणे दी क्रोध उपशमे, वाधे अधिक सनेह॥ पूरवनव संबंध नो, तिवसेंति को नेह ॥१॥ जेणे दो प्रेम उप शमे, जागे क्रोध कषाय ॥ वैरनाव कोपाउलो, ति एसेंती कहेवाय ॥१५॥ ढाल ॥राजा कहे मुलक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यका, एकाकी केम ॥ घटवीमाहे रही इहां, नव यौवन प्रेम॥ २०॥ कहे कन्या नूपति नणी, विनति अवधार ॥ पहेलो परण तुं मुऊने,पनी कहीश विचा र॥१॥राज ॥लडी थने नोजन जला, साहेब बगलीस ॥ नवि तेलीजें धावतां, ए विश्वावीश ॥ ॥ २२॥राज ॥ एम राजा मनें चिंतवी, देहरामोहे जाय ॥ जिनप्रतिमा पूजा करी, प्रणमे प्रनुपाय ॥ ॥ २३ ॥राज ॥ ते कन्या परणी तिहां, गंधर्व विवा ह॥ रातें सूता रतिरंगगुं, बेदु घरमांह ॥२॥रा० ॥ तीप्रनातें बे जणांवली देव जूदार ॥ बेठगे राय सिं दासने, अर्धे निज नारि ॥ २५॥ राजा॥ पेहली डाल पूरी थई, परणी अज्ञात ॥ समयसुंदर कहे हवे सुणो, कुमरीनी वात ॥ २६ ॥ राज॥ ॥दोहा॥ नारी कहे प्रीतम मुणो, मुफ संबंध समूल ॥ नरत क्षेत्रमांहि नगर, क्षत्री प्रतिष्ठ अनुकूल ॥१॥ एकदिन राजाने दुउ, सना चितरवा राग ॥ सकल चित्तारा तेडीया, वैहेंची ये दश नाग ॥२॥ चित्रां गद एक चित्रकर, निर्धन वृक्ष शरीर ॥ चित्र सजा नित्य चितरे, पण मनमां दिलगीर ॥३॥ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) ॥ ढाल बीजी॥ उपशम तरुबाया रस लीजेंए देशी॥ काल गयो केतो चितरता, पूरूं काम न थाय जी॥ चित्रांगद चितारा केरी, पुत्री एक कहायजी॥ ॥१॥ कनकमंजरी चतुर विचक्षण, सकल कलागुण जाजी॥ वेधक वचन अधिक चतुराश्यद्भुत रूप जु वानजी॥२॥कनक॥ ॥ए थांकणी॥ एक दि वसें चितारा पुत्री, लेई नक्त थाहारजी ॥ राजमा रग आवंती रोकी, खेलंते असवारजी ॥३॥ कनक०॥ ते असवार गयो जव दूरें, तव ते थावी तेतजी। पिता गयो नोजन मूकीने, देहनी चिंता हेतजी ॥४॥ कनक० ॥ नवरी बेठी तेणें चितारी, मणि कुहिम सु पवित्रजी ॥ वानाशं वारू चीतरियो, मोर पिड सुवि चित्रजी ॥५॥ ननक० ॥ तेणे अवसरें राजा तिहाँ आव्यो, जास्यो साचो मोरजी॥ जालण काजें जबकी कर वाह्यो। नांगा नख अतिजोरजी॥६॥ कनक०॥ ताली देई हसी चीतारी, वाह्यो मर्मनो बोलजी। त्रिदुं पायें मंगतो थोमांचो, चोथो मल्यो अमोलजी नक०॥ वचन सुपी वित्तखो थयो राजा, पूजे कहे कोण मंचजी ॥ कनकमंजरी कुमरी हसती, सघलों कहे प्रपंचजी ॥ ॥ कनक० ॥ बाप नणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) नोजन आणंती, दौठो पुरुष में एकजी॥राजमारग घोडो छोडंतो, ते माहे नही विवेकजी ॥ए॥ कन क०॥ दयाजाव नही ते माहे,मूढ न जाणे एमजी॥ वढू बेटी बूढीने बाली, चाले मारग केमजी॥१०॥ कनक० ॥ एक मूरख ए पेहेलो पायो, बीजो पायो एहजी ॥ जेणें मुफ बाप नणी चित्रशाला, सरखी विहेंची तेहजी॥११॥ कनक०॥ बहु परिवारें बीजा चितारा,मुफ पिता असहायजी॥अति निर्धन बूढो केम तेहने, सरि काम देवायजी॥१२॥कनक॥ मुक पिता त्रीजो ए मूरख, नोजन वेला विवादजी॥ देहचिंता कठीने जाये,शीतल किस्यो सवादज॥१३ ॥ कनक० ॥ शीतल अन्न जन्म पुत्रीन, कर्षण ह त्यो कुवायजी॥ वयर विरोध सगाणुं चारे, स्वाद दीन कहेवायजी ॥ १४॥ कनक०॥ चोथो मूरख तूं राजे सर,जेणे थाल्यो मन नर्मजी॥ मोर किहां आवे वामें, जास्यो नदी ए मर्मजी॥१५॥कनक०॥ ऐ ऐरा जन तुज चतुराई, ऐ ऐ बुदिपारजी॥ घणा दिवस थो जोता मलीया, मूरख पाया चारजी॥ १६॥ कन कवचन चातुरी रंजियोराजा,रंजियो देखी रूपजी। गति मति धृति थारुति अति रंज्यो, कुमरी एह अनू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) पजी॥१७॥कनकर ॥ चीतारी नृपर्नु चित्त चोरी, पोहोती निज अावासजी ॥ रायतणे चित्त चटपट लागी, प्रेमबंधन मृगपासजी ॥ १७ ॥ कनक ॥ चित्रांगद चीतारा पासें, मंत्री मूकी रायजी ॥ कनक मंजरी कन्या मागी,तुं मुजने परायजी॥१॥क नक०॥ढं निर्धन तूं बत्रपति राजा, केम थाये वि वाहजी॥राजा श्राप दियां धन बला,चित्रकर थ यो उत्साहजी॥२०॥कनकम्॥ गुन मुहूर्ते ते परण्यो राजा, कनकमंजरी नारजी॥ मोटो मोहोल दीयो र हेवाने,बदु दासी परिवारजी॥॥१॥ कनकरा जाने बहु थपबरा सरखी, राणीरूप निधानजी ॥ थाप आपणे वारे यावे,नृपमंदिर बहुमानजी २२॥ कनक० ॥ तिणे रातें वारो निवास्यो, नवपरणोतने दीधजी॥ करी शणगार गई पियु पासे, दासी साथें सीधजी ॥ २३॥ कनक ॥ राजाने राणी बेदु म लियां, हरख अपारजी॥ समय सुंदर कहे ढाल नपीए, बीजीबद्ध विस्तारजी॥ २४ ॥ कनकम् ॥ ॥ दोहा ॥ पूर्व संकेतें मदनिका, प्रश्न करे बहुमान ॥ स्वा मिनीयचरिज सारिखं, कहो को मुज पाख्यान॥१॥ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) कहे राणी सुण मदनिका,उतावलीम थाय॥एकवार राजा सुवे, कहिश पढी सुविचार ॥॥राजाने अच रिज थयुं, किसी कहे एह वातासूतो कपट निक री, सुगवा माफिम रात ॥३॥ ॥ढाल त्रीजी॥ राग जयतश्री॥ गिरिधर यावेगो।ए देशी॥ ॥ मदनिका बोले हे सखी, अब कहे कथा तूं का ॥राजा पण सुंणतो नथी,रात खुशीमांहे जाय॥१॥ मोरी बेहनी, कहे कोई अचरिज वातामुजमन अधिक सुहात ॥ मोरी॥ रंगनर माफिम रात ॥मो॥ ए यां कणी॥राजा तणी राणी कहे, सुण एक नगर वसं तातिहां नगर शेठ वसे नलो, धर्मी में धनवंत॥२॥ मो० ॥ तेणे शेते मंमाव्युं देहरं, एक हाथ उँचुं ते हामाहे मांमयो देवता, चहबो तमु देह ॥३॥ मो॥ मदनिका पूछे स्वामिनी, ए वात केम मनाय॥ केम एक हाथनी देहरी, चनहबो देव समाय ॥४॥ मो॥राणी कहे सुण हे सखी,अब उघ आवे मुज वेधक ले तो बावजो, काले कहेगुं तुज ॥ामो॥ मदनिका निज मंदिर गइ,नृप थयो चटपट चित्त।बीजे दिन वारो दीयो,चितारीयं बदु प्रीत ॥६॥मो॥ तेणे Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १) संचि पूबी ते कहे, सुण सखी मूढ गमार॥ए वातनुं ॥ चरिज किश्यु,चतुर्नुज देव मुरार ॥७॥मो॥ एक व सीकथा कहे सामिनी,९ करूं एक थरदासाराणीक हे राजा सुणे,कपट निशकरे यासा॥ मो॥ किण रायें चोर ग्रही करी,घालीया पेटीमहे ।। मंजुष ते मू की करी, वाही नदी प्रवाहे ॥॥ मो० ॥ ते नदीमा वहेती गई, किण नगर पासें मंजूष ॥श्रावती दीनी बेहु जणे,लाधी जाण्यू लूस ॥ १० ॥ मो॥ मंजूष मु श खोलतां,निसस्या तस्कर जेह॥ पूज्युं दिन केता थ या,त्रीजो दिन कहे तेह ॥ ११ ॥ मो०॥ तेणें त्रीजो दिन केम जाणीयो, सामिनी कहे सुविचार ॥ जेषनुं दहीं जम्यो घj,धावे वंघ अपार ॥१२॥मो॥ तेणे त्रोजे दिन वारो दीयो, नृप थयो सुणवा टांप।।सुण स खि नेद एहनो, तरियो थावतो ताप ॥ १३॥मो॥ वली मदनिका पूजी कथा,नववधू कहे अधिकार॥किणे राय घाट घडाववा,तेडाव्या बदु सोनार ॥१॥मो॥ नोयहरा मांहि ते घडी,दीपनी ज्योत संघात ।। मांहो मांहे पूब्यां थकां, एक कहे धब रात ॥१५॥मो॥ तिहां नही सूरज चंइमा, केम रात जाणी एण ॥ टी मोरां नोजन नख्या, निझा आवे तेण ॥ १६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) मो॥तेणें चोथे दिन वारो दीयो,कुण हेतु एहनो हो य॥ चितारी कहे सुण सखी,रातंधो हतो सोय ॥१७॥ मो॥ सुणि वात एक सोहामणी,गुरु लह्या लाडुंचा र ॥एक प्रथम चेलाने दीयो,बीजो बीजाने सार ॥१७ मोतिसरोचोथाने दीयो,एक था कियो नद॥क हे तुरत जो चतुर ने, तेहना केता शिष्य ॥ १५ ॥ मो०॥ कर जोडी स्वामिनी विनवू, ए नेद मुफ सम जाय ॥खाधी खटाइअति घणी, नयणे निंद नराय ॥ २० ॥मो० ॥ पांचमे दिन वारो दीयो,राणी जग, यनिराम ॥ तेहनें चेला त्रण हता, चोथु त्रीजानु नाम ॥ १ ॥ मो॥ कहे राणी सुण रे सखी, उत्तं ग मंझप एक ॥ तस ऊपर नीचे रहे,उत्तम पंखी अने क ॥ २२ ॥ मो० ॥ एक ऊपर नीचे मले, तो ते बेन सरिखां होय ॥ नीचलुं एक उपर मले,तो ते बमणां जोय ॥ २३ ॥ मो० ॥ कहे सखी ते केतां दुता,पंखीयां तेणें प्रासाद ॥ हूं मूढमति जाणुं नही, कहे मुंज करीय प्रसाद ॥२४॥ मो॥ मुफ उघ या वे अति घणी,दिन रमी पासा सार। जो चतुर ने तो थावजे, काले कहिा विचार ॥ २५॥ मो० ॥ वली के दिन वारो दीयो,राय चित्त लागी चूंप ॥अब कहे Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) वातज ताहरी, शीश नरानं खूप ॥ २६ ॥ मो॥ ते सातने पांच दुता, पंखीया नपर नीच ॥ निजकंत सूतो सांजले, अखि बेय निज मीच ॥ २७ ॥मो॥ वली चतुर चितारी कहे, त्रण चोरें चोरी कीधानमा र फाडयो केहनो,सोनश्या बदलीध ॥ २ ॥मो॥ ते सोनैया संताडी करी, तस्कर गया सवि नाग ॥ ए क चोर श्राव्यो एकदा, लगयो त्रीजो नाग ॥२॥ मो० ॥ बीजो पण त्रीजो वंटो, एक अधिक लेई जा य ॥त्रीजो शेष रह्यो जीके,त्रिदुनें सरिखा थाय॥ ३० मो० ॥ कहे सोनईया केटला, धुरथकी हुँता तेह ॥ काले धाव कहेगुं वली, बाज मुज दुःखे जे देह ॥ ॥३१॥ मो० ॥ सातमे दिन वारो दीयो, नृपवधू ने द कहेय।सोनैया ते षट दुता,हवे तुं ले लेय ॥३२ मोगामुण उंट वनें चरवा गयो,एक.द मोटो दीत। लांबी गाबडी खप रह्यो,यांवीन शके नीठ ॥३३॥मो० कोपियो उंट ते नपरें,करी गयो मल मूत्र ।। उंचा तरु उपर इस्ती,वात पडे केम सूत्र ॥३४॥मो०॥ कहें सखी मुज कौतुक घणुं, नही कहूं याजनी रात॥प्रीत मसेंती प्रेमनी, करवी जे बदु वात ॥ ३५ ॥ मो० ॥ आउमे दिन वारो दीयो, प्रीव्यो नेद सुरीताद दु Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G ) तो तेमा हतो,जीरण कूपनी नीति ॥३६॥ मो॥ बार वरसें प्रीतम मल्यो, पद्मिनी पसली माहे ॥मोहो टां मुक्ताफल दीयां, करवा नारिनो उत्साहे ॥३॥मो॥ तिणें नारी ते नाखी दीयां,केम कियो पियुयुं रोषाया ज अमल पियु खवरावीयो, कही न शकुं पडे शोष ॥३७॥ मो० ॥ नवमे दिन वारो दीयो, नेद कह्यो राणी तामाकरकांतें ते रातां थयां, कीकी बबि मुख श्याम ॥ ३॥ मो०॥ मानिनी मनमांहे चिंतवे, मुज हती मोहोटी याश॥मुज गुंजाफल पियु दीयां,त्रंबक मूल न तास ॥ ४० ॥ मो० ॥ सुण नूप पंमित पू बिया,गया बार मांहे दोय॥ पूंते कहो केता रह्या,चो ज अ यहां कोय ॥४१॥ मो० ॥ एक कहे पंमित दश रह्या,बीजो कहे रह्यो एक ॥ त्रीजो कहे सघला गया, कहे स्वामिनी सुविवेक ॥ ४२ ॥ मो० ॥आज यांख फरके दाहिएी,कहेतां न आवे धात॥ चिंताज गावी शोकनी, मत कांई घाले घात ॥ ४३ ॥ मो० ॥ दशमे दिन वारो दियो, राणी कहे सुण दा स।एक श्रावण ने नाश्वो,बेदु गया बारे मास॥४॥ मो० ॥ क्ली सुण सखि एक कामिनी, कार्य विचार। कीय ॥ परदेशे पियुनें चालतां, शेलडी हाथे दोध ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ॥४५॥ मो० ॥ चालतो दुतो लानने, ते पण न चाल्यो गाम ॥ नही कहुं अब निश्चे तो, जपवू नगवंत नाम ॥ ४६॥ मो० ॥ अग्यारमे दिन वारो दियो, राणी कहे ते आमाशेलडीने जेम फल नहीं तेम तस निःफल काम ॥४७॥ मो॥ सुण नारी ए क चतुर हता,निशि चडी गृह उत्तंग ॥ सिंह रूप ल ख्युं तिहां, कहे कारण कुण चंग ॥ ४ ॥ मो०॥ ए मर्म कहे मुज स्वामिनी,मुज न उपजे मास॥याज जीव नूख्यो कलमले, व्रत कीधो उपवास ॥ ४ए ॥ मो० ॥ बारमे दिन राणी कहे, विरहिणी ए अनिता य॥सिंह देखि मृगवाहन त्रसे, तो वेगें राती जाय ॥ ॥ ५० ॥ मो॥सुण नारी एक नची चडी, वीण व जाडे केम॥पण आजे दुं कदिा नहीं, पिनशुं खेल ण प्रेम ॥ ५१ ॥ मो० ॥ तेरमे दिन वारो दियो, य ति रसिक ते राजानाते नेद पटराणी कहे, मदनिका सुण सावधान ॥ ५॥ मो॥चंइमा वाहन मिरग लो, नारीने पियुयुं नेह।जो नाद वेध्यो नवि चले,तो वाधे निशि एह ॥ ५३॥मो०॥ एम नव नवी अचरि ज कथा,निशि कहे नित्य न मास ॥चीतारीयें चित्तरं जीयो, प्रीतम पाडयो पास ॥ ५० ॥ मो॥ परहरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) बीजी पद्मिनी,वश कस्यो नवली नार ॥ ते चतुरनारी कला खरी, जे वश करें जरतार ॥ ५५ ॥ मो॥य ति चतुर चीतारी रमे,आपणा पियुने संग ॥ ए ढाल सुणतां तीसरी,समय सुंदर मनरंग ॥ ५६ ॥ मो० ॥ ॥दोहा॥ ॥शोक्य मलीहवे तेहनी,बोले नावे तेम॥षण ख थदेखाई करे, वली मन चिंते एम॥१॥णे चौतारी वश कियो, अहो अम्हारो नाह॥ श्रम्ह साहमुं देखे नहीं, कहो अब कीजे काह ॥ २॥रा जकाज गेडीकरी,बोडी नारि कुलीन॥चीतारानी पु त्रिका, तिमशुं राजा लीन ॥३॥ देखी बल बिश्ते दनु,जो कोइ घाले घात ॥ कंत तणुं चित्त फेरवी, तो बंध बेसे वात ॥४॥ ॥ ढाल चोथी ॥ पूरोने सोहागण रूडो साथीयो जी॥ ए देशी॥ ॥ हवे ते चौतारी नारी दिन प्रतें जी,बावी म ध्यान्ह आवास ॥ रडामांहे बेसी करीजी, एकली को नहीं पास ॥१॥ करे रे चीतारी निंदा था पणी जी, जीवने ये उपदेश ॥ पुण्य पसायें पामी सं पदा जी, मत थनिमान करेश ॥२॥ करे॥राय तुजातपूरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७) नां वस्त्र धारण तज्यां जी, वली तज्या शोल श एगार ॥ बाप तो वेश मूलगो जी, पेहेरी बेठी ते णि वार ॥३॥क० ॥ शीशे तरूया तणी राखडी जी, काचनी धडकली कान ॥ उगनीयां पीतल तणां जी, दिसतां सोवन वान ॥४॥ करे ॥ नकवेस र मोती बीपर्नु जी, तिलक टीला तणुं त्यांह ॥ का च अकीकन। मुड्डी जी, काचनी कंचलि बांहि ॥५॥ क०॥ चनसरो बांध्यो गले चीडीयो जी,केसुडी बिंदली गाल ॥ दार पहेयो हिये शंखनो जी, वचमां गुंजा फल ताल ॥६॥करे ॥ जांजर बेठ कांसातणां जी, पीतल वीनिया पाय॥ पहरण बीटनो चरणीयो जी, Jढण लोबडी काय॥ ७ ॥ करे॥ एहवो वेश पेहेरी करी जी, जीवने दिये प्रतिबोध ॥ तुं म कर जीव गारवो जी, तुं म कर वली क्रोध ॥ ॥करे॥ ए सघली कदि रायनी जी, ए तुज मूलगो वेश॥ पु एय प्रमाणे सुख पामीयो जी, मकर गर्व तुं लेश ॥ ॥ ए ॥ करे॥ गर्व थोडो पण जो कियो जी, तो तुऊने नृप एह ॥ कंठे जाली परी काढशे जी, तुरत देशे तुझ लेह ॥१०॥ करे॥ एणी परें आत्मा निं दती जी, नेदती कर्मनी कोड ॥आपणां पाप या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GG) लोवती जी, जगवंत नवथी बोड ॥ ११ ॥ क०॥ शोक्य शू ली सरखी कही जी, पगने धाखे होये पेसी ॥ निशदिन बिजोती रहेजी, मारे सूइ गले बेसी ॥ १२ ॥ ॥ करे || रात दिन बिड् जोती थकीजी, देखीयो ए प्रस्ताव ॥ नूपनें तेडी संजारीयोजी, शोक्यनो डुष्ट स्वना व ॥ १३ ॥ करे० ॥ सुण पियु तें ह्मनें तजीजी, वि ए अपराध विशेष ॥ तेहनुं दुःख अमको नहींजी, पण कुलक्षय हुंतो देख ॥ १४ ॥ करे० ॥ जेणे तुमनें आप वश की योजी, तेद चितारी धूतारि ॥ तुक नयी ते काम करेजी, मानजे सही निरधार ॥ १५ ॥ क रे० ॥ नृप कहे वात केम मानीयें जी, कामण केम क रे कोय ॥ जीवी अधिक मुऊने गणेजी, दूधमें पूरा म जोय ॥ १६ ॥ करे ० ॥ कामनुं एह पारखुंजी, अ वगुण गुण करी दी । जो में नयरों देखाडनुंजी, तो पण मानीश नीव ॥ १७ ॥ करे० || बेसे मध्या न्ह प्रावास में जी, मंत्र साधन करे नित्य ॥ निरति क रवा नर मूकीघोजी, ते कहे वात ए सत्य ॥ १ ८॥ करे ० तो पण राय माने नहींजी, खाप रह्यो प्रचन्न ॥ नजरें दी ठी थाप निंदतीजी, वचन सुयां निजकन्न ॥ १९ ॥ || करे | ए वृत्तांत जाणी करीजी, चिंतवे नूप ए धन्य ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) एहवी शदि पामी करीजी, गर्व करे नहीं मन्न ॥ २० ॥ करे० ॥ अधम अंतेनर माहरीजी, एहने दूषण देशाशोक्यने उर्जन सारिखा जी, गुण तजीथ वगुण ले ॥ २१ ॥ करे॥ अहो अहो एहनी चातु रीजी,धहो यहो धर्म यतन।नत्तम एह अंतेनरीजी, राणीमांहे रतन ॥ २२ ॥ करे ॥ रायन मन्न प्रस न थयुंजी, चीतारी करी पटराणी ॥ अवर अंतेनरी अवगुणीजी, पुण्य तणां फल जाणी॥ २३ ॥करे॥ चोथी ढाल पूरी थईजी,चतुर चीतारी चरित्रासमयसुं दर कहे हवे सुणोजी,धर्मनी वात विचित्र ॥२॥०॥ ॥दोहा॥ ॥ विमलचंड एणे अवसरे, याचारज पदधार ॥ अनुक्रमें थाव्या विहरता, साधु तणे परिवार ॥ १ ॥ जितशत्र राजा यावीयो, साथ ले पटराणी ॥ पदपं कज प्रण्मी करी,सुगी साधुनी वाणी॥॥राजाने राणी बेदु, लीधो श्रावक धर्मादान शियल तप नाव ना, सदा करे शुनकर्म ॥ ३॥ अंतकालें ते एकदा,थ सण करी अपारापटराणी राजा तणी,पोहोती व गे मजार ॥४॥तिहाथी चवी वैताढ्य गिरि, तोर एपुर अनिधान ॥ विद्याधर दृढशक्तिनी,पुत्री थई पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एक) धान ॥ ५ ॥ नामें कनकमाला निपुण, रूपवंती रति जेम ॥ जर यौवन धावी नती, पेखत वाधे प्रेम ॥ ॥ ६ ॥ वासव खेचर अपहरी,इहां मूकी कर। गेह ॥ पाणी ग्रहण करण नणी, सजी सामग्री एह॥७॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ मेघमुनि का मममोले रे॥ए देशी॥ . ॥ एणे अवसर तसु बांधव याव्यो, कनक तेजा एवं गम ॥ वासव विद्याधरशुं मामयो, मांहो मांहे संग्राम ॥१॥ वात सुण प्रीतम मोरा हो,हूं कहुँ सघर्बु विरतंत॥ तूं चतुर विचदण कंतावात ॥ए यांकणी॥ एक एकने घा दीधा सबला,बेदु मूथा ततकाल ॥ कन कमाला बंधव दुःख करती, बेटी अबला बाल ॥॥ वात ॥ तिहां व्यंतर वली पाव्यो कोइ, कहेवाला गो एम ॥ पूरव जनम पिता ढुं तारो, तुज उपरें मुज प्रेम ॥३॥ वात॥ तिणवेला दृढशक्ति विद्याध र, पूं याव्यो सोय॥अन्य रूप ते कीg कन्या, तेणें सुर अवसर जोय ॥ ४ ॥ वात ॥ कनकतेजा वास व ते कन्या, पुत्री एह मृतरूप ॥ देवमाया करी कीधी व्यंतर, दीना खेचर नूप ॥५॥ वातः ॥ विद्याधरें ए म जाण्युं वासव,मुक सुत मास्यो एह॥तेणे पण मास्यो ते विद्याधर, ते वली कन्या तेह ॥ ६ ॥ वात ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) धिक् धिक् काम नोग ए अनरथ, धिक् धिक् ए संसा र ॥ वैराग्ये दृढशक्ति विद्याधर, सीधो संजम नार ॥ ॥ ॥ वात० ॥ व्यंतर माया करी जीवाडी, ते क न्या तेणि वार ॥बाप भागलें बेटी कहे सघलो,बांधव मरए प्रकार ॥ ७ ॥ वात ॥ साध कहे कन्या रूप फेयुं, किणे कारणें कहो देव ॥ देव कहे सांजल तुं मुनिवर, नांगँ तुफ संदेह ॥ ए॥वात०॥ वितिप्रतिष्ठ नगरीनो स्वामी, जितशत्र दुतो राय ॥ चित्रांगद पु त्री तेणें परणी, श्रावक शुभ कहेवाय ॥१॥वात अंतकाल जब दूळ चितारो,राय दीयो नवकार ॥ का त करी व्यंतर हूँ दुन,ए मोटो नपकार ॥११॥वात अन्यदिवसें आव्यो इणे वगमें, दीनी खिणी बाल॥ अधिक सनेह अवधि करी जाण्यो,पूरव नव ततकाल ॥१२॥ वात०॥ मुज पुत्री मत मार विद्याधर,जनक संघातें जाय ॥ में वियोग अण सहतें कीधी,ए क न्या मृतप्राय ॥ १३॥ वा०॥ में विप्रतायो तुं दवे ख मजे, मुनिवर मुफ अपराध ॥ तुं मुक व्रतनो हेतु थ यो सुर, एम कही विचस्यो साध ॥ १४॥ वा० ॥ व्यं तर देव वचन समरंती,कनकमाला गुन ध्यान ॥ ईहा पोह करतां तिहां पाम्यु,जातिसमरण ज्ञान॥१५॥वा. Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए ) कनकमाला कहे कोण मुजहोशे,तात कहो नरतार ॥ देव कहे पूरव नव होशे, सिंहरथ राजा सार ॥१६॥ वा० ॥ केम संबंध होशे मुज तिणशुं, सुण पुत्री सस नेह ॥ वक्रशिक्षित वाजी अपहरशे, राजा यावशे ते ह॥ १७ ॥वा०॥ चिंता थारत म करे पुत्री,सुखें रहे इण गम ॥ हुँ तुज पासें रहीश रखवालो, त्यां लगें जा तुज काम १७ ॥ वा० ॥ व्यंतरशुं क्रीडा सुख क रती, कनकमाला ढुं एह ॥ व्यंतर काले गयो मेरुपर्व त, चैत्यवंदन जणी तेह ॥१ए ॥वा०॥ मुज पुण्य प्रे यो तुं थाव्यो,कीधो तुरत विवाह॥एह संबंध कहियो में सघलो,तें पूब्यो निजनाह ॥२०॥वा० ॥ए संबंध मुणतां पाम्यो,जातिसमरण राय ॥ पूरव नव तेणें दी ग सघला, आणंद अंग न माय ॥ २१॥वा ॥ तेणे अवसर व्यंतर ते याव्यो, कीधो नृप परणाम ॥ कनक माला सुरने कह्यु, सघ एम थयो विवाह ॥ २॥ वा० ॥ व्यंतरसुर सिंहरथ राजाने,संतोष्यो अत्यंत॥ जव्य दिव्य आहार जमाड्या, मास सीम एकांत ॥ ॥ २३ ॥ वा० ।। हवे राजा कहे सुण तुं सुंदरी, दे मुमने थादेशामुजविण सघला वयरी राजा,मलीक जाडे देश ॥ २४ ॥ वा॥ कनकमाला कहे सुण प्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) तम तुं, तुफ नगरी दूर॥पालो जातां सुख पामीश तुं, ले विद्या नरपूर ॥२५॥ वा॥ प्रज्ञप्ति विद्या तेणे दीधी,नृपें लीधी तेणी वार ॥ सुखे समाधे सिंहरथ रा जा,पोहोतो नगरमजार॥२६॥वा० ॥ नगरलोक थयां यति हर्षित, वो जयजयकार ॥ समयसुंदर क हे पूरव नवनी, पांचमी ढाल उदार ॥२७॥ वा ॥ ॥दोहा॥ .॥ एम ते राजा सिंहरथ,दिवस पांचमे जायादि न केता एक तिहां रहि, नवल वधू लपटाय ॥ १॥ नगर प्रतें जाय एह नृप,रमवा सिंहरथ राय ॥ तेणें कारण ते लोकमें,निग्गई नाम कहाय ॥२॥ अन्य दि वसे ते निग्गई,तिहां पोहोतो परमात ॥ केहवा लागों देवता, सुए राजन एक वात ॥३॥ सामि वोलावा थावीयो, ढुं जा बुं तेथ ॥ काल विलंब होशे घणो, ए दुःख करशे एथ ॥॥ तेणे कारणे तूं तिम करे, जेम ए सुखिणी थाय ॥ एम कहीने व्यंतर गयो,हवे नृप करे नपाय ॥ ५ ॥राजापुर वासियुं नर्बु, अति ऊंचा आवास॥धनवंत लोक वसे सुखी,आणंद लीलवि तास ॥६॥ उत्तंग तोरण देहरां,जिनवर बिंबं अनेक॥ स्नात्र महोत्सव नव नवा,वारू नगर विवेक ॥ ७ ॥ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए ) ॥ ढाल बही॥सीमंधर सोनलो॥ ए देशी॥ ॥अन्य दिवस राय नीसखो, हय गय रथ परिवा र॥ मारग मांहि देखीयो,अति सुंदर सहकार ॥१॥ थिर आ संपदा, अथिर कुटुंब परिवार निग्गई नृप एम चिंतवे,अथिर सयल संसार ॥ ३ ॥ अथिर० ॥ ए आंकणी ॥ लागी मांजर महकती,लागी यांबाबु बकोयल करे टदुकडा, रह्या मधुकर रस चूंब ॥३॥ अथिर० ॥राजायें एक मांजर ग्रही, नीसरते निज हा थाएक एक फल फूल मंजरी,तेम ग्रही सघले साथ। ॥४॥ अथिर० ॥ काष्ठनत यांबो कीयो, फल फूल मांजर त्रोडिाशोना सघली कारिमी, एहज मोटी खो डि ॥५॥ अथिर० ॥ वलते राजा पूजीयुं, कहो ते कि हां सहकार ॥ देखाडियुं अंग उलगु, सूको काष्ठ थ सार ॥६॥थथिर ॥यांबो केम थयो एहवो, वली पूज्युं तिण नूपातें मांजर ग्रही तेहनी, सैन्य कीयो ए सरूप ॥ ७ ॥ अथि॥ ए स्वरूप आंबा तां, देखी चिंते राय ॥ हा हा अथिर शोना इसी, एमांहे खे रु थाय ॥ ७ ॥ अथिर० ॥ अथिर माणसनुं पान खु, मान अणी जेम उसाअथिरराज दिसंपदा,न त्तम न करे शोष ॥ ए ॥ अथिर० ॥ अथिर जोबन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए५) नर नारीनु,जाण नदीनो वेगाथथिर कुटुंब सदुको म व्युं,पग पग अधिक उग ॥१०॥ अथिर०॥ अथिर रू प कायात', इंश् धनुष जेम रंग।यथिर मान राजा तणां, जाणे गंग तरंग ॥ ११॥ अथिर० ॥ अथिर अनित्य अशाश्वती, ए संसार असार।एम चिंतवतां पामियो, जातिसमरण सार ॥१॥ अथिर० ॥ राज दि बोडी करी, लीधो संजम नारदीधो शासन दे वता, साधु वेश सुविचार ॥ १३॥ अथिर० ॥ वड वयरागी निग्गई,चोथो प्रत्येक बुझ॥गाम नगर पुर वि हरतो, संजम पाले गुद॥१॥ यथिर ॥ बही ढा ल पूरी थई,निग्गई नृपनी एदाहवे चारे एकता होशे, समयसुंदर कहे तेह ॥ १५॥ अथि०॥ ॥दोहा॥ ॥ क्षितिप्रतिष्ठ नामें नगर, चन्मुख देवल गु६॥ ते सम काल समोसस्या, चारे प्रत्येक बुझ ॥१॥ दैव जोगें चारे चतुर,चारे दिशि चिहूं बार॥पेठा देउलमांहे ते,बेग यासन सार॥॥पूरवदिशि करकं मुनि,ददि ए उमुह महंतापलिम दिशि नमि राजऋषि, उत्तर नि ग्गई संत ॥३॥मुज लागे आशातना,आवे पूंत प्रत्यक्ष॥ साधु नक्ति करवा जणी, थयो चतुर्मुख यह ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए६) ॥ ढाल सातमी॥मात जी धन्य ते नर नारी ॥ए देश। ___॥करकंमुने बालपणाथी,खरज हती यति गाढ।। तिण कारणे खाजें खणवा,तेह शिलाका काढी रे॥१॥ चारे साध मव्या चरमुखमें, चतुर करे धर्मचर्चा ॥ यह करे कर जोडी सेवा,साधनी पूजा अर्चा रे ॥ २॥ चा०॥ खाजि खणीने तेह शिलाका, वली रूडी परेरा खी ॥ मुह साधु देखीने बोल्या, रहि न शक्यो सत्य नांखीरे ॥३॥चा॥राजदिसघली तें बोडी, बोडी सघत्ती माया ॥ एक वात प्रयुक्ति कीधी,लोन सलीगुं लाया रे॥४॥ चा०॥ प्रांरखमांहे रज केम समाये, अमृतमां विष केम ॥ तुफ उत्कृष्टा चारित्र मांहे, एह शिलाका तेम रे ॥ ५॥ चाण॥ मुह शी ख सुगीन मि राजा,मुह प्रतें एम नांखे ॥राज काज चिंतातुं करतो, पण हवणां कां दाखे रे ॥ ६ ॥चा॥ तवगंधारी मुनीसर बोव्या,सुण नमिराय मुणिंदा ॥ स वैथोक बोडया तें तो पण, एक न बोडी निंदा रे ॥॥ चा०॥ मोदनणी उग्यो तुं मुनिवर, निंदा नही तु ज जुगती॥ पापणी करणी पार उतरी, जे करता ते जुगता रे.॥ ७॥ चा०॥ कहे करकं सुराज्यो मुनिवर,अहितयकी जे.वारे ॥ हितनी बात कहे ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) णने को,दोष कही निरधारो रे ॥णाचा॥साची वात कही करकं,मुनिवर सघले मानी ॥ साधु जला चारे चारित्रिया,कोई नही अनिमानारे॥१०॥चा॥प्रत्ये कबुतणी धर्म चर्चा, सातमी ढाल रसाल ॥ समय सुंदर कहे साधुतणा गुण,हवे हूं कहीश विशाल रे ११ ॥ ढाल बातमी॥राग गोडी॥ वाडी फूली. अति नल। ॥ मन नमरा रे ॥ ए देशी। ॥ चारे बत्र पति राजवी॥गुण गिरुया रे॥ चारे चतुर सुजाण ॥साधु गुण गिरुथारे । चारे सकल कला नि ला॥ गुण गिरुयारे॥ चारे अमृत वाणि॥१॥साधु चारे सख्य सुत्लरकणा॥गु०॥चारे नूप निधान ॥सा॥ चारेलीला लाडला॥गुणाचारे पुरुष प्रधान ॥॥सा चारै न्याय निपुण नला ॥ गु० ॥ चारे मोहोटा जप ॥सा०॥ चारे चिर पाली प्रजा ॥गु०॥ चारे इंश सरूप ॥३॥सा॥चारे चार कारणथकी।गु०॥ चारे प्रत्येक बु६॥सा॥चारे घर रमण। तजी।गु०॥ चारे ले व्रत गु॥॥सा०॥ चारे जातिसमरणा ॥गु०॥ चारे सा धुने वेश ॥सा॥ चारे एकाकी रहे गुण॥ विचरे देश परदेश ॥॥सा॥ चारे पंच माहाव्रती॥ गुण॥चारें परम दयाल सा॥ चारे सुमति गुप्ति धरा । गु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ब्रह्मचर्य प्रतिपाल ॥६॥ सा० ॥ चारे शीलांग रथधरा ॥गु ॥ चारे निर्मल गात्र ॥ सा० ॥ चारे उत्कृष्टी क्रिया ॥गु० ॥ चारे चारित पात्र ॥ ७ ॥ सा० ॥ चारे सर्व माया तजी ॥ गु०॥ चारे दुआ निर्यय ॥ सा० ॥ चारे मद मत्सर तज्या ॥०॥ चारे साधुने पंथ ॥८॥ सा० ॥ चारे इंडिय वश कीया ॥ ० ॥ चारे जीत्यो लोन ॥ सा०॥ चारे चं चल मन दम्युं ॥ गु० ॥ चारे बांमी शोन ॥ ए ॥ सा० ॥ चारे गुरु करें गोचरी ॥ गु० ॥ सुजतो ले थाहार ||सा॥ चारे रसना रस तज्या ॥ गु०॥ देह दिये याधार ॥१०॥ सा० ॥ चारे करे खातापना ॥ गु ॥ चारे करे काउस्सग्ग ॥ सा०॥ चारे शीत तावड सहे ॥०॥ चारे सहे उपसर्ग ॥ ११ ॥ सा० ॥ चारे चारित्र खप करे ॥ ० ॥ चारे निर्मल ग्यान ॥ सा० ॥ चारे तप अप प्रागला ॥गु०॥ चारे चित्त घरे ध्यान ॥ १ ॥ सा० ॥ चारे साधु माधरा ||गु०॥ चारे समुड् गंभीर ॥ सा० ॥ चारे गुण मणि रोहणा || गु० ॥ चारे सुरगिरि धीर ॥ १३ ॥ सा० ॥ चारे तेज सूरज समा ॥०॥ चारे शीतल चंद ॥ सा० ॥ चारे वृषन धुरंधरा ॥ ० ॥ चारे मोहो टा मुलिंद ॥१४॥ सा० ॥ चारे शंख निरंजणा ॥ गु०॥ चारे गजशमीर ॥ सा० ॥ चारे गगन निराश्रया ॥ गु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) चारे चरम शरीर ॥ १५॥सा॥चारे वायु तणी परें ॥॥थप्रतिबद विहार सा०॥ चारे सायर जल जि स्या ॥गु०॥ शुरू हृदय सुविचार ॥१६॥सा०॥ चारे पं कज दल जिस्या ॥गु०॥ निरूप लेप निःसनेह ॥सा॥ चारे कूर्मतणीपरें।गु०॥ गुप्तेंशिय गुण गेह॥१७॥सा चारे खंमविषाण ज्यूं॥गुणा एक जाति सुविरत्तासा॥ चारे नारंग पंखीज्युं गु॥ अप्रमत्त एक चित्त ॥१॥ ॥सा०॥ चारे सिंह तणी परें । गु० ॥ दीसंता उधृष्य ॥सा०॥ चारे विहग तणीपरें ।।गु०॥ विप्रमुक्त वरपद ॥१॥सा०॥ एम अनंतगुण साधना ॥गु०॥ में केता कहेवाय ॥सा॥ सहस्त्र जीन सुरगुरु स्तवे ॥गु०॥ तो पण पूर्ण न थाय ॥२०॥सा॥ में केताएक कह्या।गु०॥ साधु तणागुण सार ॥सा॥ वचन विलास सफलो कि यो । गु॥ सफल कियो अवतार ॥१॥सा० ॥ध न्य माता जेणे जनमीया ॥गु०॥ धन्य पिता कुल वंश ॥सा॥ धन्य धन्य करणी साधुनी ॥गु०॥ इंश करे प्र शंस ॥श्शासा॥ चारे केवल पामीया ॥ गु० ॥ चारे पदुता सि६ ॥सा॥ चारे अजरामर थया ।गुला धी अविचल दि॥२३॥सा॥ चारे एकसमे चव्या गु०॥ जनम थयो तेम जाण ॥सा॥ एक समे दीक्षा Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ग्रही ॥गु०॥ तेम केवल वर नाण ॥४॥सा०॥ ढाल सुतां बातमी ॥२०॥ त्रूटे कर्मनी कोडी ॥सा॥ च रण नमे चिढुंसाधना ॥गुणासमयसुंदर कर जोडि २५ ॥ ढाल नवमी ॥ षन प्रनु पूजीयें ॥ए देशी ॥ ॥ करकंमु उमुह नमी ए,निग्गई नामें प्रसिद॥मा हामुनि गाईयें ए॥चिहुँ खंमें करी वर्णव्या ए, चारेप्र त्येक बु॥१॥महामुनि गायेंए॥ गातां परमानंद मु क्तिमुख पायें एमाहा॥ए बांकणी॥ चारे चनगति दुःख हरे ए, तारण तरण समरथ माहा॥ नाम ज पंतांजेहन ए,जनम दुये सुकयउ॥॥माहा॥ सोल शें बासठने समे ए,जेठ पूनम दिन सार|माहा॥चोथो खमपूरो थयो ए,श्रीघागरा नगर मजार ॥शामाहा॥ विमलनाथ सुपसानले ए,सान्निध्य कुशल सूरींद॥मा हा॥ चारे खंम पूरा थयाए, पाम्यो परमाणंद ॥ ४ ॥ माहा ॥ देश परदेशे दीपता ए, नागड गोत्र शृंगार ॥मादा० ॥ श्रीसंघनार धुरंधरा ए, उदयवंत परिवार यामाहा॥ सूरूशाह गुणें जला ए, संघनायक सुवि चार ॥मा॥ तेह तणे आग्रह करीए, कोधो ग्रंथ थ पार ॥६॥मादा॥ श्रीखरतर गह राजियो ए,युग प्रधा नजिन चंद मा॥श्री जिनसंघसूरीसरु ए,नएतांथ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) धिक नन्नास ॥७॥मा०॥ प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना ए,स कलचंद मुणिंद ॥माहा॥ तास शिष्यवाचक नणे ए,स मय सुंदर पाणंदाजामहा०॥ चारे प्रत्येक बुनाए, ए चारे ही खेमामाहा॥ चारे खंमें विस्तयो ए,जिहां रवि तेज अखंम॥णामा०॥ सांजलतां सुख संपदा ए, जणतां अधिक उन्नास ॥मादा०॥दिन दिन संघ उदय घणो ए, थाणंद लील विलास ॥१०॥मा० ॥ इति ॥अथ समकेतनी चोपाई ॥ ॥धुर प्रणमुं जिनवर चोवीश, सवि गणधरने नामुं शिश ॥ तेहनां वयण सुणे जे कान, मन राखे समकितने ध्यान ॥१॥ साचो देव एक वीतराग, धर्म तो जेणे दाख्यो माग ॥ ते जिनवरनी पालु घाण, जे होये साचा सुगुरु सुजाण ॥ २ ॥ पंच म हाव्रत मनमां धरे, राग देष पेहेलु परिहरे ॥ चारि त्र पाले टाले दोष, लोये आहार थोडे संतोष ॥३॥ दोषमाहे जे थाधाकर्म, टाले ते त्रोडे पाठ कर्म ॥ श्राधाकर्म करे नर नारी,ते पण घणुंए रुले संसार ॥४॥ मूकी देह तणा सुखवास, सहे परीसह बा रे मास ॥ तपें करी जे जस साध, वंदनिक ते त्रि Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) चुवन साध ॥ ५ ॥ एक संयमने बीजी दमा, शत्रु मित्र जेहने बेदु समा ॥ दृष्टिराग तरी उतरी, ते जा शे नव सायर तरी॥ ६ ॥ एक थापणुं करी मन गम, नणे गुणे सिवात प्रमाण ॥ सजुरु तणो उ पदेश थाचार, जोश समजो हैये विचार ॥ ७॥ एक पहेरे मुनिवरनो वेश, पण साचो नवि दीये उपदे श ॥ जेद बापे जिनवर वयण, तेहने किहां दि यानां नयण ॥ ७ ॥ घर मूकीने थया माहातमा, म मता जइ लागा यातमा ॥ महारुं महारुं एम कहे घj, तेह मूरख वदनता पणुं ॥ ए ॥ एक तजी दी से ने इस्या, लोने शिष्य करें अण कश्या ॥ पंच म हाव्रत कहे उच्चरे, उपशम रस ते कहो केम गरे । ॥ १० ॥ थाधाकर्मी जे वहोरे घणो, धर्म विगोवे जिनवर तो ॥ यंत्र तंत्र मूली करी करी, चूरण थापे घर घर फरी॥ ११ ॥ कुगुरु तणा जाणी थ हि नाण, सेवा न करे जे होये जाण ॥ जिनवाणी सनिलीयें इसी, सोनुं गुरु बेलीजें कसी ॥१२॥ सोनाथी होय एक नव दाण,कुगुरु करे नवनवनी हाण ॥ सोने घाता पण ते मले, कुगुरु पसायें नव नव रुजे॥१३॥ सर्प मसे कुए नवनो अंत, कुगुरू Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) करे संसार अनंत ॥ एम जाणी वली लेजे साप, कु गुरु नमि नवि बोलियें धाप ॥१४॥ एक वहे जि नवरनी बाण, वैर वहे तिहां एक अजाण ॥ एद थापणा नही गुरु एम,बोली लीये वंदतुं तेम ॥१५॥ एक नणे महारा गुरु देव, में करवी एहिजनी सेव ।। पद तणा स्वामीने मान, थवर पदने दे अपमान ॥ १६ ॥ एक सगा जागी महातमा, गुण पाखें ता रे घातमा ॥ पात्र नणी पूजे तेहने, कहो समकित केम ले तेहने ॥ १७ ॥ देखो परखी गुरु गुणवंत, श्रावकने मन संयमवंत ॥ एह श्रापणा नही इम न णे,दान मान सघले अवगणे ॥ १७ ॥ एका ने गह नो अनुराग, पण न लहे साचो जिनमाग ॥ वीर व चन लेइने पाधलं, कुगुरु सुगुरु जो यादरं ॥ १ ॥ जेहने आगमनुं बहु मान, तेहना उघडे एणे कान ॥ ए साधारण गुरुनी वात, जोड्ने लेजो मुक्ति मा त ॥२०॥ हृदय नयन तमे जूठ सुजाण, बंको कु गुरु ए जिन बाण ॥ सद्गुरु तथा चरण थाचरो, जेम नवसायर लीलायें तरो ॥ २१ ॥ जे जिन था ए वहे निशदीत, ते नपर जे नाणे रीश ॥ नवे तत्त्व निरता सहहे, सूधुं समकित ने ते कन्हे ॥ २२ ॥ ए Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (104) हवं समकित सूधुं जाण,धर्मकाजनुं मकरीश काण। जिनवर पूजा सजुरु नक्ति, नावें करवी पातम श क्ति // 23 // पडिक्कमपुंने फासुं नीर, कीजें धर्म क युं जे वीर // धर्मे दि सिदि घर दंत,धर्म संकट स वि नाजंत // 24 // धर्मं सूर्य निरतो तपे, धर्मे पाप कर्म सवि खपे // धर्मे होये रूपनो योग, धर्मपसा यें संपत्ति नोग // 25 // नणे गुणे ने बहु तप करे, पण समकित सूधुं नवि आदरे // समकित विण ते सदुए फोक, समकित आदर करवं रोक // 26 ॥स मकित माय बाप संसार, समकितथी सुख संपत्ति सार // समकित एह धर्मर्नु मूल, समकितथी स दुए अनुकून // 27 // समकित दि सिदि घर घणी, समकित लगें होये सुर धणी॥ समकित सी के सघलां काज,समकित लगें त्रिनुवननु राज // 2 // समकित सहितनुं सुणो प्रमाण, कृष्णराय, जुन मंमाण // तपविण श्रेणिक राजह धणी, लेशे पदवी थरिहंत तणी // // समकित पाले जे नर नार, व लीन थावे ते संसार // // एम जाणी समकित था दरा, सा६ रमण। जेमलाला वरा ॥३०॥इति // Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only