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धुतणा गुण वर्णता, करतां निर्मल देह ॥ गंगाजल मां जीतता, केम रहे तनुनी खेह ॥३॥ साधु कथा सहेजें नली,अधिक ढाल रस एह ॥ विच विच मेवाने मरकी, सखर मीठाइ तेह ॥ ॥ साधु चरित्र सुगता थकां, मुगति तणां फल होय ॥ गरथ न लागे गांठ मुं, तेणे सुगजो सदु कोय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पहेली। गांगा मीणारा था
री मृगली ॥ ए देशी ॥ ॥ जंबूवीप सोहामणो, क्षेत्र नरत रसाल ॥ देश यवंती दीपतो, कदी न पडे कुष्काल ॥१॥ नगर सु दर्शन अति नजुं, बहुरुदि समृद्धि ॥ वारुं वसे व्यव हारीया, देश देश परति ॥॥नगर०॥ एषांकणी॥ उंचां मंदिर मालीयां, नंचा प्रासाद ॥ दंम नपर ध्वज लहलहे,करे स्वर्गगुंवाद ॥३॥ नगर॥ अंतेन र जाणे अपरा, मूकी आणी॥ दैत्य थकी मरते थके, निर्नय ठाम जाणी॥ ४ ॥ नगर॥ किहां कि ऐ राज सना जडी, महेता परधान ॥ शेत सेनापति सूत्रवी, खोजा ने खान ॥५॥नगर॥ किहां कणे त्र धरावतो, बेठो नूपाल ॥ दूकुम चलावे आपणो, माने बाल गोपाल ॥ ६॥ नगर ॥ किहां कणे नूप
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