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________________ (३७) आगल नला, वढे जेती मन ॥ दुशीयार रहे हवे रा मला, वाहे वली गाल ॥ ७ ॥ नगर ॥ किहां कणे झुंढ कलालता, फरतां मदवारि ॥ सुंदर शशि सिंदू रीया, घूमे दरबार ॥ ॥ नगर॥ कहां करो घोडा जुलमती, सोवन जडित पत्ताण ॥ ताजा तेजी ही सता, दीसे दीवाण॥॥ नगर॥ किदां कणे वली पायक लडे, सामे हथीयार ॥ एक वाहे घा एकने, ए क टालदार ॥ १० ॥ नगर०॥ किदां कणे घडीयाला घडी, वाजे वारंवार ॥ काल जणावे लोकने, रेहेजो दशियार ॥११॥नगर०॥ किहांकणे वली नोबत तणा, वाजे नीशाण ॥ जागोरे जागो धर्म करो, लोकने करे जाण ॥ १२ ॥ नगर॥ किहांकणे कनक रूपातणी, पडे तिहां टंकशाल ॥ गंज खजाना उपर रहे, बहुत रखवाल ॥ १३ ॥ नगर॥ किहांकणे बेठा चठतरे, काजीकोटवाल ॥ जगडोनांजे लोकनो,न तीये लांच विचाल ॥ १४॥ नगर० ॥ किहांकणे दोशी कापडा, वेचे पटकूल ॥ जेम तेम साटुं मेलवे, दलाल वातुल ॥ १५॥ नगर ॥ किहांकणे बेठा जवहरी, जवाही र लेईजोय ॥ मोतीमाएक लालडे, लान पामे सोय ॥ १६ ॥ नगर ॥ किहां कणे माझ्या कंदोईएं, सूख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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