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डी बदु दाट ॥ गुंदवडां पेडा जला, दीवे गले दाढ ॥ १७ ॥ नगर ॥ किहांकणे सखरा सुरहीए, चूया चंपेल ॥ महमहता ममियां घणां, मोघरेल फूलेल ॥ ॥ १७ ॥ नगर ॥ किहां घंटा रणके देहरे, जिनबिंब विचित्र ॥ श्रावक स्नात्र पूजा करे, करे जन्म पवित्र ॥ १ए॥ नगर ॥ किहां वली साधुने साधवी, बेठी पोशाल ॥ ये नवियणने देशना, वांचे सूत्र रसाल ॥ २०॥ नगर ॥ किहां जले आंक नणे घणा, नी शालें बाल ॥ बार मुखें कही, घडो दे ततकाल ॥ १॥ नगर० ॥ किहां काजी मुनां पढे, किताब कुराण ॥ किहां वली ब्राह्मण वेदीया, नणे वेद पुरा ए॥ २२ ॥ नगर ॥ कहां बजार बाजी पडे,किहां गीतने गान॥ किहां पवाडा गाईयें, किहां दीजें दान ॥ २३ ॥नगर॥ किहां वली नगरनी नायका, बैठी श्रावास ॥ हाव नाव विन्रम करी,पाडे नर पास ॥२४ ॥ नगर ॥ कहां वली मोती प्रोईये, किहां फटिकनी माल ॥ किहां परवाला काढीयें, हींगलो हरियाल ॥ ॥ २५॥ नगर ॥ किहां धानना ढग मामीया, किहां खडना गंज। किहां घी तेल कूफा नखा, किहां काष्ठ ना पुंज ॥ २६ ॥ नगर ॥ चनराशी चउटा नलान
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