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________________ (१४) पांचमी,राग सारंग मल्हार हो।ब्रा०॥समयसुंदर कहे हवे कहूँ, पुस्य तणां फल सार होब्रा०॥ ७॥ ॥ ॥ ढाल बही॥राग खंजायतीनी देशी॥ ..॥राजा मूड अपुत्री रे,तिरों अवसरें तिणे गामो रे॥थश्व एक अधिवासि रे, नगर नमे गम नामो रे ॥१॥ राज पामीयो रे करकंस कंचनपुर तणुं रे, फ व्यु साधुनुं वचन ततकाल शोहामणुं रे,ऐ ऐ पुण्यप्र माण ॥राजाए अांकणी नगरी पुरुष नहीं तिस्यो रे, लाख मली लोकाई रे ॥ पुस्य विना नवि पामीय रे, मोहोटी पदवी का रे॥राज ॥॥नयर बाहेर दय थावीयो रे,सूतो देखो कुमारो रे॥त्रण प्रदक्षिणा देई करी रे, हिस्यो हर्ष अपारो रे ॥ राज॥३॥ उत्यो कुंवर उतावलो रे,नंघ बगाई खातो रे॥ पुण्य ध केल्यो तरफडी रे, जांणे दालिइ जातो रे ॥राज॥ ॥४॥ अधिकारी नर धाविया रे, जयजय शब्द करं सारे ॥ कर जोडी नना रह्या रे,चामर नत्र धरंता रे ॥राज ॥५॥ राजा अश्व उपरें चढयो रे, चाल्यो नगर मकारो रे ॥ हय गय रथ पायक तणो रे, पूनें अंत.न पारो रे ॥राज०॥ ६ ॥ नगरीमांहे पेसता रे, ब्राह्मण पाडा आया रे ॥ ए चंभाल राजा दुळ रे, प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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