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________________ ( २८ ) ॥ का० ॥ रूपें कुंवरी रूयडी रे, मदनमंजरीना म ॥ यौवन यावी जोरमें रे, सकल कला प्रनिराम रे ॥ १६ ॥ या का० ॥ समय सुंदर कहे में नयी रे, ए ली परें त्रीजी ढाल | गुजराती लोक पूढज्यो रे, ते क देशे ततकाल ॥ १७ ॥ खा का० ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग नूपाल ॥ सरवणीयानी देश ॥ ॥ तेरो अवसर उजेली राय, चंमप्रद्योतन नाम क दाय ॥ जोर वहे वारु जेदनो, तेज प्रताप सबल ते दनो ॥ १ ॥ चंमप्रद्योतन यागल दूत, वात कहे ए चरिजनूत | नगरी कंपिलानो धणी, तेह तणी म हिमा प्रतिघणी ॥ २॥ प्रगट्यो मुंकुट रतन निराम, मुह थयुंजय नृपनुं नाम ॥ किणही राजाने याज ते नदी, एहवो मुकुट जाणजो सही ॥ ३ ॥ चंमप्र द्योत ते प्रति लोनियो, मुकुट लेल उपर मन कियो ॥ मूक्यो दूत ते कारज सिद्धि, विनाशकाले विपरीत बुद्धि ॥ ४ ॥ दूत जो कहें डमुह नरेश, मुकुट दिये मत करे कलेश ॥ चंमप्रद्योतनने ए योग, रतन क दीजें सबलो जोग ॥ ५ ॥ डुमुह राय पण नही पाध रो, वलतो वचन कहे व्याकरो ॥ मुकने पण वल्लन ए बोल, तुम स्वामीनां रतन अमोल ॥ ६ ॥ हाथी ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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