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( १७ )
खे कहे कामिनी रे, कां सरजी किरतार रे ॥ ६ ॥ श्रा का० ॥ पुत्र परणावुं प्रेमयुं रे, वहू देखूं एक वार ॥ गोद खेलाउँ पोतरा रे, सफल करूं अवतार रे ॥ ७ ॥ ॥ का० ॥ बालक पीड़ा उपजे रे, प्रायें उगमते सूर ॥ खेत्रपालें जमती रहे रे, ढोले तेल सिंदूर रे ॥ ८ ॥ ॥ या का० ॥ पुत्र प्रमुख सुख उपनां रे,तो पण जी व उद्वेग ॥ गुणमाला रहे कूरती रे, पुत्री न पामी एक रे ॥ ए ॥ था का० ॥ चोरी न बांधी यांगो रे, तोर णें नावी जान ॥ पेसतो जमाइ न पोंखीयो रे, ते जी व्यं कु ज्ञान रे ॥ १० ॥ या का०॥ हाथ मुकावण हा श्रीयो रे, के घोडा के गाम ॥ जमाइ न दीधो दायजो रे, तो धन केहु काम रे ॥ ११ ॥ या का० ॥ घनतनसघ ली नारीनो रे, सहज सदारो एह ॥ पुत्रथकी पण वा लहो रे, नवल जमाई नेह रे ॥ १२॥ या का० ॥ दी से राणी दूबी, प्रीतम पूग्यो नेद ॥ गुणमाला कहे गलगली रे, पुत्री एक उमेद रे ॥ १३॥ प्रा का मा न्यां बणां मानणां रे, दंम देवाले जाय ॥ ड्रोड धाव क रतां थकां रे, कि मेलें पुत्री याय रे ॥ १४ ॥ श्रा का० ॥ कल्पवेलि मांजरि नली रे, दोठी सुपन मजा ॥ बहु जतनें बेटी थई रे, राणी हर्ष खपार रे ॥१५॥
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