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________________ (२६) ध अनेक, कीर्ति जग पसरी री॥ ए॥ ते चित्रसना मजार, सिंहासण नपरेंरी॥बैठो श्रीजयराय,मस्तक मुकुट धरे री॥१०॥ जय राजा मुखचं, प्रतिबिंबो प्रगटेरी ॥ लोक मल्यां लख कोड,नाम उमुह प्रगटे री॥११॥ गोडी राग रसाल, बीजी ढाल कही री॥ समय सुंदर कहे एम,सुगतां सरस सहीरी॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ कामण गारा रे लोक ॥ ए देशी॥ ॥ मुह नामें राजाघरें रे, गुलमाला पटराणी॥ अनुक्रमें सात बेटा जण्या रे,साते सुकज सुजाण ॥१॥ था कामिनी तृप्ति न पामे केम ॥रढ लीधी मूके नही रे, पामे नव नवा प्रेम रे ॥ या कागाए आंकणी॥ जनमथी माया केलवी रे, शीखे घरनुं सूत्र॥धूलडीये रमती कहे रे, ए मुज पति ए पुत्र रे॥॥या का॥ देह समारे दिन प्रत्ये रे,शीखी नाण विनाए॥अण ख अदेखाई करे रे, गाये त्रियनां गान रे ॥३॥ का धाराधे कुलदेवता रे, विनति करे वारंवार ॥ गौरीगण गोरी रमे रे, नलो होजो जरतार रे ॥॥श्रा का॥प रणी पण रहे पूनती रे, वशीकरण एकांत ॥ किमहि पियुडो वश करुं रे,पूलं मननी खांत रे॥५॥ था का॥ सुख पामे जरतारनु रे, तो पुत्र वांडे नार ॥ पुत्र पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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