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(११) ट में नोगव्यां रेहां, उःख नरी मनमाहि ॥ क० ॥ ॥॥ साधवीय धर्म सुणावियो रेहां, ए संसार असा र॥ क० ॥ धर्म सामग्री दोहिली रेहां, कुटुंब अनं ती वार ॥ क० ॥ ३ ॥ वैराग्ये मन वालीयुं रेहां, ली धो संजम जार ॥क०॥ दीदाथी बीहिती थकी रेहां, न कह्यो गर्न विचार ॥क० ॥४॥ अनुक्रमें व्रत पालता रेहां, वाध्यु मोटुं पेट ॥ क० ॥ कोढ पाढ ग्र ह खेटनो रेहां, न रहे बानु नेट ॥ क० ॥ ५ ॥ कहे गुरुपी बेठी रहो रेहां, थमें करयु निर्वाह ॥ क० ॥ लोक बोक प्री नही रेहां, जिनशासन उमाद ॥ ॥कर्म॥६॥ बेटो जायो साधवी रेहां, बानो मूक्यो समशाण ॥ कर्म ॥ रतन कंबल शिर वीटीयो रेहां, वली मुंड्डी सहि नाण ॥ क० ॥ ७॥ तोपण बाल मुठ नही रेहां, ऐ ऐ पुस्य प्रमाण ॥ क० ॥ चंमाल देखी चमकीयो रेहां, स्त्रीने दीधो बाण का थपकरण नाम आपीयु रेहां, दिन दिन वाधे तेह ॥क० ॥ चंमालपीशुं साधवी रेहां, मां अधिक सने द॥ क० ॥ ५ ॥ गुरुपी पूजे साधवी रेहां, गर्न न दीसे केण ॥ क० ॥ में जायो '
मुथको रेहां, बाहि र परतव्यो तेण ॥क० ॥१०॥ बालकशुं बा
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