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ब्रह्मचर्य प्रतिपाल ॥६॥ सा० ॥ चारे शीलांग रथधरा ॥गु ॥ चारे निर्मल गात्र ॥ सा० ॥ चारे उत्कृष्टी क्रिया ॥गु० ॥ चारे चारित पात्र ॥ ७ ॥ सा० ॥ चारे सर्व माया तजी ॥ गु०॥ चारे दुआ निर्यय ॥ सा० ॥ चारे मद मत्सर तज्या ॥०॥ चारे साधुने पंथ ॥८॥ सा० ॥ चारे इंडिय वश कीया ॥ ० ॥ चारे जीत्यो लोन ॥ सा०॥ चारे चं चल मन दम्युं ॥ गु० ॥ चारे बांमी शोन ॥ ए ॥ सा० ॥ चारे गुरु करें गोचरी ॥ गु० ॥ सुजतो ले थाहार ||सा॥ चारे रसना रस तज्या ॥ गु०॥ देह दिये याधार ॥१०॥ सा० ॥ चारे करे खातापना ॥ गु ॥ चारे करे काउस्सग्ग ॥ सा०॥ चारे शीत तावड सहे ॥०॥ चारे सहे उपसर्ग ॥ ११ ॥ सा० ॥ चारे चारित्र खप करे ॥ ० ॥ चारे निर्मल ग्यान ॥ सा० ॥ चारे तप अप प्रागला ॥गु०॥ चारे चित्त घरे ध्यान ॥ १ ॥ सा० ॥ चारे साधु माधरा ||गु०॥ चारे समुड् गंभीर ॥ सा० ॥ चारे गुण मणि रोहणा || गु० ॥ चारे सुरगिरि धीर ॥ १३ ॥ सा० ॥ चारे तेज सूरज समा ॥०॥ चारे शीतल चंद ॥ सा० ॥ चारे वृषन धुरंधरा ॥ ० ॥ चारे मोहो टा मुलिंद ॥१४॥ सा० ॥ चारे शंख निरंजणा ॥ गु०॥ चारे गजशमीर ॥ सा० ॥ चारे गगन निराश्रया ॥ गु०॥
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