SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (एए) चारे चरम शरीर ॥ १५॥सा॥चारे वायु तणी परें ॥॥थप्रतिबद विहार सा०॥ चारे सायर जल जि स्या ॥गु०॥ शुरू हृदय सुविचार ॥१६॥सा०॥ चारे पं कज दल जिस्या ॥गु०॥ निरूप लेप निःसनेह ॥सा॥ चारे कूर्मतणीपरें।गु०॥ गुप्तेंशिय गुण गेह॥१७॥सा चारे खंमविषाण ज्यूं॥गुणा एक जाति सुविरत्तासा॥ चारे नारंग पंखीज्युं गु॥ अप्रमत्त एक चित्त ॥१॥ ॥सा०॥ चारे सिंह तणी परें । गु० ॥ दीसंता उधृष्य ॥सा०॥ चारे विहग तणीपरें ।।गु०॥ विप्रमुक्त वरपद ॥१॥सा०॥ एम अनंतगुण साधना ॥गु०॥ में केता कहेवाय ॥सा॥ सहस्त्र जीन सुरगुरु स्तवे ॥गु०॥ तो पण पूर्ण न थाय ॥२०॥सा॥ में केताएक कह्या।गु०॥ साधु तणागुण सार ॥सा॥ वचन विलास सफलो कि यो । गु॥ सफल कियो अवतार ॥१॥सा० ॥ध न्य माता जेणे जनमीया ॥गु०॥ धन्य पिता कुल वंश ॥सा॥ धन्य धन्य करणी साधुनी ॥गु०॥ इंश करे प्र शंस ॥श्शासा॥ चारे केवल पामीया ॥ गु० ॥ चारे पदुता सि६ ॥सा॥ चारे अजरामर थया ।गुला धी अविचल दि॥२३॥सा॥ चारे एकसमे चव्या गु०॥ जनम थयो तेम जाण ॥सा॥ एक समे दीक्षा Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy