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चो जिन धर्मसार रे ॥जीव० ॥ ए आंकणी॥ति ण अवसर बढो थयोजी, मडीयो नाम कहाय ॥जरा करीथयो जाजरोजी,उतनी नहीं पाय रे ॥२॥ जीव०॥पड्यो पडयो जाये ढल्योजी, मकी बेगे वा ट॥ सडण पडण घटी जतोजी, पडयो करे अरडाट रे ॥३॥ जीव०॥ कर जोडी कहे गोकुलाजी, एहिज बलद तिकोय ॥ नृप चिंते बूढापणेजी, एह अवस्था होय रे॥४॥ जीव ॥ बाग चोर जल नय घणाजी, गरथ ते धनरथ मूलावार न लागे विणसतांजी, धर्म खरोयनुकूल रे॥५॥जी॥ तरु पंखी मेलो जिस्योजी, कुंटुंब तिस्युं कहेवाय ॥जाये ते गति जूजूईजी,साचो जिनधर्म सखाय रे ॥६॥जी॥ मात पिता बंधव सुता जी,अंतेनर निजहर्म ॥ स्वारथ विण विहडे सहूजी, विहडे नही जिनधर्म रे॥७॥जी॥मान अणीजल बिंदूजी,जिम पाकुंतरुपान ॥अथिर ए तिमथान जी,थिर निश्चल धर्म ध्यान रे ॥ ७ ॥जी॥ जरा करी अतिजाजरो जी, काचो माटी नंम ॥ काया रोग समा कुतीजी, जिन धर्म एक अखंम रे ॥ ए॥जी॥ यौ वन जाये जोरमेंजी, जाणे नदीनो वेग ॥ राख्यु न रहे केह जी, धर्म रहे दृढ टेक रे॥१०॥ जी०॥
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