________________ (104) हवं समकित सूधुं जाण,धर्मकाजनुं मकरीश काण। जिनवर पूजा सजुरु नक्ति, नावें करवी पातम श क्ति // 23 // पडिक्कमपुंने फासुं नीर, कीजें धर्म क युं जे वीर // धर्मे दि सिदि घर दंत,धर्म संकट स वि नाजंत // 24 // धर्मं सूर्य निरतो तपे, धर्मे पाप कर्म सवि खपे // धर्मे होये रूपनो योग, धर्मपसा यें संपत्ति नोग // 25 // नणे गुणे ने बहु तप करे, पण समकित सूधुं नवि आदरे // समकित विण ते सदुए फोक, समकित आदर करवं रोक // 26 ॥स मकित माय बाप संसार, समकितथी सुख संपत्ति सार // समकित एह धर्मर्नु मूल, समकितथी स दुए अनुकून // 27 // समकित दि सिदि घर घणी, समकित लगें होये सुर धणी॥ समकित सी के सघलां काज,समकित लगें त्रिनुवननु राज // 2 // समकित सहितनुं सुणो प्रमाण, कृष्णराय, जुन मंमाण // तपविण श्रेणिक राजह धणी, लेशे पदवी थरिहंत तणी // // समकित पाले जे नर नार, व लीन थावे ते संसार // // एम जाणी समकित था दरा, सा६ रमण। जेमलाला वरा ॥३०॥इति // Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org