SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०३) करे संसार अनंत ॥ एम जाणी वली लेजे साप, कु गुरु नमि नवि बोलियें धाप ॥१४॥ एक वहे जि नवरनी बाण, वैर वहे तिहां एक अजाण ॥ एद थापणा नही गुरु एम,बोली लीये वंदतुं तेम ॥१५॥ एक नणे महारा गुरु देव, में करवी एहिजनी सेव ।। पद तणा स्वामीने मान, थवर पदने दे अपमान ॥ १६ ॥ एक सगा जागी महातमा, गुण पाखें ता रे घातमा ॥ पात्र नणी पूजे तेहने, कहो समकित केम ले तेहने ॥ १७ ॥ देखो परखी गुरु गुणवंत, श्रावकने मन संयमवंत ॥ एह श्रापणा नही इम न णे,दान मान सघले अवगणे ॥ १७ ॥ एका ने गह नो अनुराग, पण न लहे साचो जिनमाग ॥ वीर व चन लेइने पाधलं, कुगुरु सुगुरु जो यादरं ॥ १ ॥ जेहने आगमनुं बहु मान, तेहना उघडे एणे कान ॥ ए साधारण गुरुनी वात, जोड्ने लेजो मुक्ति मा त ॥२०॥ हृदय नयन तमे जूठ सुजाण, बंको कु गुरु ए जिन बाण ॥ सद्गुरु तथा चरण थाचरो, जेम नवसायर लीलायें तरो ॥ २१ ॥ जे जिन था ए वहे निशदीत, ते नपर जे नाणे रीश ॥ नवे तत्त्व निरता सहहे, सूधुं समकित ने ते कन्हे ॥ २२ ॥ ए Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy