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________________ (१०२) चुवन साध ॥ ५ ॥ एक संयमने बीजी दमा, शत्रु मित्र जेहने बेदु समा ॥ दृष्टिराग तरी उतरी, ते जा शे नव सायर तरी॥ ६ ॥ एक थापणुं करी मन गम, नणे गुणे सिवात प्रमाण ॥ सजुरु तणो उ पदेश थाचार, जोश समजो हैये विचार ॥ ७॥ एक पहेरे मुनिवरनो वेश, पण साचो नवि दीये उपदे श ॥ जेद बापे जिनवर वयण, तेहने किहां दि यानां नयण ॥ ७ ॥ घर मूकीने थया माहातमा, म मता जइ लागा यातमा ॥ महारुं महारुं एम कहे घj, तेह मूरख वदनता पणुं ॥ ए ॥ एक तजी दी से ने इस्या, लोने शिष्य करें अण कश्या ॥ पंच म हाव्रत कहे उच्चरे, उपशम रस ते कहो केम गरे । ॥ १० ॥ थाधाकर्मी जे वहोरे घणो, धर्म विगोवे जिनवर तो ॥ यंत्र तंत्र मूली करी करी, चूरण थापे घर घर फरी॥ ११ ॥ कुगुरु तणा जाणी थ हि नाण, सेवा न करे जे होये जाण ॥ जिनवाणी सनिलीयें इसी, सोनुं गुरु बेलीजें कसी ॥१२॥ सोनाथी होय एक नव दाण,कुगुरु करे नवनवनी हाण ॥ सोने घाता पण ते मले, कुगुरु पसायें नव नव रुजे॥१३॥ सर्प मसे कुए नवनो अंत, कुगुरू Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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