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________________ (४४) गां खेलणां ॥ रसिया खेले बागमें,गाये राग वसंत॥१॥ सुरंगां० ॥ एअांकणी॥ बोलसिरी जाई जुई, कुंद व ने मुचकुंद ॥९॥ चंपक पामल मालती, फूली रह्यां अरविंद ॥२॥सु०॥ दमणो मरून मोघरो, सब फू ली वनराय ॥ मु०॥ एक न फूली केतकी, पीयु विण हर्ष न थाय ॥३॥॥ थांबा मोखा यति घणा, मांजर लागी सार ॥९॥ कोयल करें टटुकडा, चिटुं दिशि नमर गुंजार ॥॥सु० ॥ जुगबादु रमवा च व्यो,मयणरेहालै साथ ॥सु०॥ बागमांहि रमे रंगा, मफ धघु निज हाथ॥५॥मुग निर्मल नीर खंको खली, जोले राजमराल ॥९॥प्रेमदाशुं प्रेमें रमे, नाखे ला ल गुलाल ॥ ६॥ सु० ॥ नोजन नक्ति युक्ति नली, करता थई अवेर सु॥रात पडी रवि थाथम्यो, प सखो प्रबल अंधेर ।। ७ ।मु० ॥ निर्नय गम जाणी रह्यो, रातें बाग मजार ॥ मु०॥ केलीघर सूतो नृप, थोडो शो परिवार ॥ ७ ॥९॥ चोथी ढाल पूरी थई, मुंबखडानी जाति ।।सु०॥ समयसुंदर कहे हवे सुणो, रातें दोशे जे वात ॥ ए ॥ सु०॥ ॥ ढाल पांचमी ।। अवसर जाणी इं॥ ए देशी ॥ ॥ हवे मणिरथ पापिष्ट, चित्तमांहे चिंतवे ॥ अव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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