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वन उद्यान विनोद करावी, मोहलो पूरे राय जी ॥ को रा० ॥३॥ वूगे मेह प्रथम वनमाहि, प्रगटयो नूमि सुगंधजी ॥ बीजां वन समरंतो शे डयो, दूर गयो गज अंधजी ॥ कोई रा० ॥४॥ वडशाखा वलगी रह्यो राजा, राणी गइ गजसाचे जी॥हाहाकार दु नगरीमा हि, हाथी न केहनें हा थेंजी। कोइरा०॥५॥माकार गयो अटवीमांदे, दीतुं एक तलावजी ॥ पाणी पीयण नगी गज पयगे, राणी लह्यो प्रस्तावजी॥ कोइरा०॥६॥ हलवे हल वें गजयी उतरी,चाली एक दिशि लेईजी॥ सिंह वाघ थी बिहिती अबला,कर्मनें दूषण देईजी ॥कोइरा॥ ॥ ७ ॥ हा हा दैव करूं केम हुँ दवे,कोण कीधां में पा पजी॥ कोण विपत्ति अवस्था पाडी,राणी करे विला पजी॥ कोइरा०॥७॥ण रोवे कण जोवे चिटुंदि शि, छण चीतारे राज जी ॥ कुण कुण राज लीला नोगवती, एयवस्था याजजी॥ कोइरा॥ ए॥ कि हां चंपा नगरीनां मंदिर,किहां हीमोला खाटजी॥कि हां प्रीतम पोढण सुखशय्या, किहां नवरंगी खाटजी कोइरा॥१०॥ किहां ते नोजन नगति सजा, कि हां कुटुंब परिवारजी॥ मंगाकार पडी हुँ अटवी, अब
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