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________________ ( ६६ ) शब्द सोहावे नहीं कान ॥ हो चूडी कतारी आपली ॥ या० ॥ रे हो प्रेमदा प्रेम प्रधान ॥ प्रे० ॥ ए ॥ रे हो क० ॥ हो सघलां वलय कतारतां ॥ ० ॥ रे हो एकेक राख्यो मंगलिक ॥ हो वालि सोनुं जे यापणुं ॥ आ॥ रे हो जे त्रोडे कान खलीक ॥ जे० ॥ १० ॥ रे हो क० ॥ हो वलय कोलाहल केम रह्यो । क० ॥ रे हो राजा पूढी निजनारि ॥ हो नेद सुल्यो मिथिला धणी ॥ मि॥ रे हो चिंते चित्त मकार ॥ चिं० ॥ ११ ॥ रे हो क० ॥ हो एकाकी पणुं प्रति नलुं ॥ ० ॥ रे हो बहु जण मल्या बहु दुःख ॥ हो चक्रवर्त्तिने सुख नही ॥ सु० ॥ रे हो जे मुनिवर ने सुख ॥ जे ० ॥ ॥ १२ ॥ रे हो क० ॥ हो एकलो थावे जीवडो || जी० ॥ रे हो परजव जाय पण एक ॥ हो कुटुंब सट्रु को कारिमुं ॥ का ॥ रे हो वारु धर्म विवेक ॥वा० ॥ १३ ॥ रे हो क० ॥ हो जवजव जाय जीव एकलो ॥ ए० ॥ रे हो साथै कर्म सखाय ॥ हो पुष्यें शुन गति पामीयें ॥ पा० ॥ रे हो पापें दुर्गति जाय ॥ पा० ॥ १४ ॥ रे हो क० ॥ हो जीव खबे एक शाश्वतो ॥ सा० रे हो दर्शन ज्ञान संपन्न ॥ हो कह्या संयोग प्रशाश्व ता ॥ घ० ॥ रे हो पुत्र कलत्र धन धान्य ॥ पु० ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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