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________________ (ए ) कनकमाला कहे कोण मुजहोशे,तात कहो नरतार ॥ देव कहे पूरव नव होशे, सिंहरथ राजा सार ॥१६॥ वा० ॥ केम संबंध होशे मुज तिणशुं, सुण पुत्री सस नेह ॥ वक्रशिक्षित वाजी अपहरशे, राजा यावशे ते ह॥ १७ ॥वा०॥ चिंता थारत म करे पुत्री,सुखें रहे इण गम ॥ हुँ तुज पासें रहीश रखवालो, त्यां लगें जा तुज काम १७ ॥ वा० ॥ व्यंतरशुं क्रीडा सुख क रती, कनकमाला ढुं एह ॥ व्यंतर काले गयो मेरुपर्व त, चैत्यवंदन जणी तेह ॥१ए ॥वा०॥ मुज पुण्य प्रे यो तुं थाव्यो,कीधो तुरत विवाह॥एह संबंध कहियो में सघलो,तें पूब्यो निजनाह ॥२०॥वा० ॥ए संबंध मुणतां पाम्यो,जातिसमरण राय ॥ पूरव नव तेणें दी ग सघला, आणंद अंग न माय ॥ २१॥वा ॥ तेणे अवसर व्यंतर ते याव्यो, कीधो नृप परणाम ॥ कनक माला सुरने कह्यु, सघ एम थयो विवाह ॥ २॥ वा० ॥ व्यंतरसुर सिंहरथ राजाने,संतोष्यो अत्यंत॥ जव्य दिव्य आहार जमाड्या, मास सीम एकांत ॥ ॥ २३ ॥ वा० ।। हवे राजा कहे सुण तुं सुंदरी, दे मुमने थादेशामुजविण सघला वयरी राजा,मलीक जाडे देश ॥ २४ ॥ वा॥ कनकमाला कहे सुण प्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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