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________________ ( ए) रनव सुख सोहलो ॥ मो० ॥ ४ ॥ मोरा ॥ तुं प नरह कर्मादान ॥ वाल ॥ वली पाप बढारह परि हरे ॥ मोरा ॥ मोरा०॥ तुं सुकृत किया अनुमोद ॥ वाल ० ॥ तुं मुकत तणी गर्दी करे। मो०॥ ५ ॥ ॥ मोरा० ॥ ताहरे मारग ने अति दूर ॥ वा० ॥ तुं संबल साथें घालजे ॥ मोरा ॥ मो० ॥ तारे पग पग चोरनी धाड ॥ वाल॥ तुं तेहथी सहिरो रहे ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ तुं हिंसा मृषा वाद ॥ वा० ॥ तुं अदत्तादानथी उसरे ॥मो०॥ मोरा प्री० ॥ तुं परि ग्रह धारंन पाप ॥ वा० ॥ तुं त्रिविध त्रिविध करी परिहरे ॥ मो० ॥ ७ ॥ मोरा०॥ तोरी अंतयवस्था एह ॥ वाल० ॥ तुं धर्मे दृढ करजे हियुं ॥ मोरा ॥ मो० ॥ तु सदहजे मनगु६ ॥वाल०॥ तुने चन विहार अगसए दीयुं ॥ मो०॥ ७॥ मो॥ एक साचो श्री जिनधर्म ॥ वाल॥ ताहरे अवर सदु को अथिर ने ॥मो॥मो॥ तुं मरण तणो जय माण ॥ वा॥ तुं जोय जगत कुण अमर डे ॥ मो० ॥ ए ॥ मोरा ।। तु शरणां करजे चार ॥ वा० ॥ श्रीअरिहंत सि६ सु साधु जे ॥ मोमो०॥ तु केवलि नाषित धर्म ॥वा॥ ए चारे धाराधजे ॥ मोग॥ १० ॥ मो० ॥ तुं ध्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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