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(५०) धरे नवकार ॥ वा० ॥ जिमकाज सरे पियु ताहरु ॥ मो० ॥ मो॥ एह संसार असार, तुं मोह म कर जे माहरो ॥ मो० ॥ ११ ॥ मो० ॥ एम मयणरे हा उपदेश ॥
वाते साचो सघलो सदहें । मो॥ ॥ मो० ॥ए जुगबाद जुवराज ॥ वा० ॥ते काल करी परनव लह्यो । मो० ॥ १२ ॥ मो॥ धन्य मय परेहा ए नारी ॥वा० ॥ एण अवसर काज समा. रियुं ॥ मो० ॥ मो० ॥ जेणे थापण्डो जरतार ॥ वा० ॥ उपदेश देई निस्तारीयो । मो० ॥ १३ ॥ मो० ॥ ए सातमी ढाल रसाल ॥ वा० ॥ जुगबादु श रणां तणी॥मो॥मो समयसुंदर कहे एम ॥वा०॥ हवे मयणरेदा वात ले घणी ॥ मो० ॥ १४ ॥
॥ दोहा ॥ ॥पितामरण जाणीकरी, चंजसा करे पोकार ॥ यांखें बदु थांसु फरे, करे विलाप अपार ॥१॥मयण रेहा एम चिंतवे,धिक धिक माहारूं रूप ॥ एवंथी थ नरथ उपन्यो, माखो प्रीतम नूप ॥॥ मत मारे मुज पुत्रने,मणिरथ माहरे काज ॥ शील रतन राखण न एी, जावं किणे दिशि नाज ॥ ३ ॥ एम मनमाहि
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