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________________ (५१) चिंतवी, समजावी सुत सार ॥ निशिनर चाली एकली, पूर्व दिशि सुविचार ॥४॥ ॥ ढाल बातमी ॥ मोहनगारो रे नंदि खेण नाहलो ॥ ए देशी॥ ॥निशिनर चाली रे मयणरेहा सती,एकलीय बला रे नार ॥ पूर्व दिशि सामां मन शंकती,पेठी थ टवी मजार ॥१॥ मयणरेहा निशि चाली एकली,रा खए शीलरतन ॥एयांकणी॥ किंहां जई काज समा रूं जीवनु, करूं वली कोडी जतन ॥ ॥मयणरे ॥ खरे मध्यान्हें सरोवर देखीयु,लीधो तिहां विश्राम ॥ फल फूल नक्षण करी पाणी पीयु, सूती कदली गम ॥३॥मय॥ सागारी थासण मुखें कच्चयो,राति पडी ततकाल ।। सिंह वाघ गुंजे बिहामणा, बोले बहु लां शीयाल॥४॥ मय० ॥ धाधी रातें पेटपीडा थ ई,जायो पुत्र प्रधान ॥ गुनलकण संपूरण गुणनितो, सुंदररूप निधान ॥ ५॥ मय० ॥ रतन कंबल नामां कित मुड्डी, वींटी बाल शरीर ॥ सती सरोवर प्रना तें गई, शुचि करवा निज चीर ॥ ६॥ मय० ॥ वस्त्र धोई पेठी वली स्नानने, तिण वेला उंदैत ॥ पाणी माहेथी गज नीसस्यो, जाणे काल कतांत ॥ ७ ॥म Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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