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(ए५) नर नारीनु,जाण नदीनो वेगाथथिर कुटुंब सदुको म व्युं,पग पग अधिक उग ॥१०॥ अथिर०॥ अथिर रू प कायात', इंश् धनुष जेम रंग।यथिर मान राजा तणां, जाणे गंग तरंग ॥ ११॥ अथिर० ॥ अथिर अनित्य अशाश्वती, ए संसार असार।एम चिंतवतां पामियो, जातिसमरण सार ॥१॥ अथिर० ॥ राज
दि बोडी करी, लीधो संजम नारदीधो शासन दे वता, साधु वेश सुविचार ॥ १३॥ अथिर० ॥ वड वयरागी निग्गई,चोथो प्रत्येक बुझ॥गाम नगर पुर वि हरतो, संजम पाले गुद॥१॥ यथिर ॥ बही ढा ल पूरी थई,निग्गई नृपनी एदाहवे चारे एकता होशे, समयसुंदर कहे तेह ॥ १५॥ अथि०॥
॥दोहा॥ ॥ क्षितिप्रतिष्ठ नामें नगर, चन्मुख देवल गु६॥ ते सम काल समोसस्या, चारे प्रत्येक बुझ ॥१॥ दैव जोगें चारे चतुर,चारे दिशि चिहूं बार॥पेठा देउलमांहे ते,बेग यासन सार॥॥पूरवदिशि करकं मुनि,ददि ए उमुह महंतापलिम दिशि नमि राजऋषि, उत्तर नि ग्गई संत ॥३॥मुज लागे आशातना,आवे पूंत प्रत्यक्ष॥ साधु नक्ति करवा जणी, थयो चतुर्मुख यह ॥४॥
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