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________________ ( १६ ) ॥ दोहा ॥ ॥ हवे ते ब्राह्मण यावियो, सुणि राजाने राज ॥ गाम एक मागे नलुं, जेहथी सीजे काज ॥ १ ॥ क रकंमु राजा कहे, वाच काचनि कलंक ॥ मन मान्युं विप्र मागतुं, गाम एक निःशंक ॥ २ ॥ चंपा नगरी वसुं दधिवाहन जिहां राय ॥ तिहां दे गाम सुखें रहुँ, कोण करे श्रावजाय ॥ ३ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ राग सिंधूडो ॥ मेवाडा राजा रे || ए देशी || ॥ कागल लखी दीधो रे, विप्र चाल्यो सीधो रे ॥ वी लीधो सातूनो साथै संबलोरे ॥ चंपापुर पोहोतो रें, जिहां पोतें रहतोरे ॥ मनमांहि गहगहतो, वंबित सुफ फलो रे ॥ १ ॥ चंपापुरी राजा, दधिवाहन रा जारे ॥ एक गाम ब्राह्मणने देजो प्रतिनजुरे ॥ येणे गामने गमेरे, राय बीजो पामेरे || ईणि काम विरा की या सही किलो रे ॥ २ ॥ कागल देखाड्योरे, नृप त्रिसूलो चाड्योरे ॥ वली त्राड्यो ब्राह्मणनें राजा कोपरे ॥ चंमालनो बेटो रे, ए राजथी मोटोरे ॥ म तनेटो कंचनपुर किणे एथापीयारे ॥ ३ ॥ वलतो दूत मूक्योरे, दधिवाहन चूक्योरें ॥ घणुं कूक्यो वली बोल For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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