SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५७) जयसेन राजा दीक्षा लीध,शदि पद्मरथ पुत्रने दीध ॥ पुष्पमाला पटराणी सुरंग, नोगवे राजा सुरक अनंग ॥१३॥ एकदिन अपहरियो वक्रतुरंग, नृप अटवी पडियो जाणे कुरंग ॥ तिहां दोगे तुम अंगज जेह, पूरव नव तणो प्रगटयो नेह ॥ १४ ॥ बालक चंचो लीधो जाम, पू लशकर याव्युं ताम ॥ गज चडी राजा मिथिला याव्यो, पुत्र जनम जेम रंग वधाव्यो ॥ १५ ॥ बीज तणो जेम वाधे चंद, मयणरेहा तुज पुत्र थाणंद ॥ सतीय सुणी हरखी ततकाल, समय सुंदर कहे दशमी ढाल ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जेहवे मुनिवर एम कहे, तेहवे एक विमान ॥ ननथीनीचं नता, तेजें नाग समान ॥१॥ ज यजय शब्द समुच्चरी, अपर याणंद पूर ॥ घम घम घमके घुघरी, वाजे वाजित्र तुर ॥ २ ॥ निर्मल फटि क रत्नमय, नाटक पेड बत्रीश ॥ मणि मुक्ताफल जालिका, शोनामान सुजगीश ॥ ३ ॥ तेणे विमान थी नीलस्यो, देव दिव्य आकार ॥ कानें कुंमल जल हले, उरें मुक्ता फलहार ॥ ४ ॥ सती तणा ते देवता, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy