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(५६) स ॥ शोल पूर्व लख वरसा सीम, तप जप संजम कीधा निःसिम ॥४॥ ते पोहोता बारमे देवलोक,पुरम्य तणां फल पाम्या रोक ॥ सामानिक देवता केहेवाय, बावीश सागर नोगवा थाय ॥ ५॥ तिहाथी चवीने धातकी खंफ, जरतमाहे हरिषेण प्रचंग ॥ अर्ध च की राजा धनिराम, समुदत्ता तस नार्या नाम । ॥ ६ ॥ तेहनें पुत्र थया सुपवित्त, सागर देवने सागर दत्ताबारमो जिन दृढसुव्रत स्वाम, तस पासें साधु थया हितकाम॥७॥त्रीजे दिन थयो वीजली पात, बेदु साधु तणो थयो विघात ॥ उपना सातमे सुर धावास, स तर सागर लगें लील विलास ॥॥ नेमीसरने तेणें प्र स्तावें, केवल महिमा करवा यावे॥प्रश्न करे कई जग अाधार,किहां थाशे स्वामीयम अवतार॥ ए॥ नगवं त कहे इण नरत मजार, मथुरा पुरी अलका धव तार ॥ जयसेन राजानो सुविवेक,पुत्र होशे बेदुमाहि एक ॥१०॥ बीजो नगर सुदर्शन जेह, मयणरेहा सुत दोशे तेह ॥ एम सांजली गया देवता दोय,निज देवलोकें हर्षित होय ॥ ११ ॥ अनुक्रमें सुर सुख नोगवी सार,एक तणो मिथिला अवतार ॥ जयसेन वनमाला कूखें हंस, पुत्र पद्मरथ कुल अवतंस ॥१॥
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