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________________ (५४) ॥ ढाल नवमी॥ राग मालवी गोडी॥ तुं गीया गिरि शिखर सोहे॥ ए देशी॥ ॥सुणी वचन सराग तेहनां, सतीय चिंते एम रे ॥ सबल संकट पडी हूं हवे,शील रा केम रे॥१॥ मयगरेहा शील राख्यु, पडि संकट जेण रे॥ दिनप्रत्ये प्रनातें उठी, नाम लीजें तेण रे ॥२॥मयण ॥ए यांकणी ॥ में जे कर्म कगेर कीधा, उदय थाव्यां ते हरे ॥ यापदामांहे पडी थापद, हजी नावे द रे ॥३॥ मय० ॥ ढुं अनाथ अत्राण अबला, कांई न चाले जोर रे॥शील राखण नगीना,कलं एक निहोर रे ॥४॥ मय० ॥ सती नांखे सुण विद्याधर, नंदीसर लेई जाय रे ॥ पड़ी मानीश वचन ताहरु, जोरें प्रीति न थाय रे॥५॥ मय० ॥ एम मुणी हर्षि त दु खेचर, रचियुं देव विमान रे ।। साथें लेई चाल्यो विद्याधर, नंदीसर असमान रे ॥६॥ मय० ॥ तिहां जाइ जिनवर बिंब पूज्यां, रुषजानन वर्षमान रे ॥ चंशनन वारिषेण नामें, धनुष्य पंचशत मान रे॥७॥ मया ॥ मणिचूड मुनिने वांदी बेग, बेक पागल आय रे ॥ चार नाणीवात जाणी, सुत लियो सम काय रे ॥णामय० ॥ कर जोडी मणिप्रन कहे सुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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