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(७५) काकी राय ॥ प्रावृत्ति करे थापणी, फलने फूल खाय ॥१॥राज ॥ ऊंचो गिरि उपर चड्यो, व सवा निवास ॥ नूप सात एक नमियो, देखे थावा स॥ ११ ॥राज ॥ तिहां बेठी एक कन्यका, देखी दिव्यरूप ॥ऐ ऐ अनुत लावणिमा,चमक्यो चित्त न प॥१॥ राज ॥ कन्या जत्नी कती थ, दी थादर मान ॥ सिंहासन बेसण तव्यो,मान विण तजे गन ॥ १३ ॥राज ॥ यतः ॥ बार बोलावण बेस', बीडी बे कर जोड ॥ जे घर पांच बब्बा नही,ते घर दूरे बोड ॥ १४ ॥ नयणे नयण बेहु मल्यां, उपन्यो कामराग ॥ चतुर्रा चमक लोह ज्यु, जोवे चित्त ला -ग॥ १५॥राज०॥ यतः॥ नया पदारथ नयण रस, नयणें नयण मिसंत ॥ अजाण्याशुं प्रीतडी, पेहला नयण करत ॥१६॥रा ॥राजा तन मन ननस्या, कुमरीतन देखी॥ प्रेम जणावे पाबलो, संचम सुविशेषी॥१७॥राज॥दोहा ॥ जेणे दी क्रोध उपशमे, वाधे अधिक सनेह॥ पूरवनव संबंध नो, तिवसेंति को नेह ॥१॥ जेणे दो प्रेम उप शमे, जागे क्रोध कषाय ॥ वैरनाव कोपाउलो, ति एसेंती कहेवाय ॥१५॥ ढाल ॥राजा कहे मुलक
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