SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४२) शीयत्त ॥जली नारीने पांच पिता कह्या, राजा स सरो शेठ रे॥लाजीमरिये प्रीतें बोलतां, जनम पिता ने जेठ रे ॥ १५ ॥ शीयल ॥ शीयल रतन राजन किम खंमीयें,जोई चित्त विमास रे ॥ इह नव अपज स वाघे यति घणो,परनव उर्गति वास रे ॥१६॥ ॥शीयल०॥ जुगबादु तुज नाई अति नलो,मुफ माथे नरतार रे ॥ जेठ विचारी जू एहनी,केम लोपीजें का र रे॥१७॥ शीयल ॥ सतीय वयण सुणी राजा चिंतवे,मौन करी रहूं याज रे॥जुगबादु बांधव माया विना, सरशे नहीं नेट काज रे ॥ १॥ शीयल० ॥ बीजी ढाल नणी में एहवी, प्रश्न पडुत्तर सार रे ॥ समय सुंदर कहे हवे तुमें सोनलो, गर्नतणो अधि कार रे ॥१ए॥ शीयल०॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ सुगुण सनेही मेरे लाल,वि नति सुणो मेरे कंत रसाल ॥ए देशी॥ ॥ एक दिन मयारेहा तिणे अवसरें, निश जर सूती थापणे मंदिर ॥ सुपने पेखे पूनम चंदा॥ जाग त प्रगटयो परमाणंदा ॥१॥ चंद सुपन चित्तमाहि धर ती,चालीनिजपियु पासें निरती॥राजहंस जेम लीला करती, ठमठम अंगण पगलांजरती॥॥धापणा पी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy