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________________ (३३) यो॥ वरसो वरसें एरीति,राजा प्रजा करी प्रीति ॥२॥ उचो इंध्वज कीधो, दीपतो पट कपर दीधो ॥ वारु चित्राम विनती, रणकी सम घंटा चीति ॥ ३ ॥ दीजें जाचकने दान, गाईजें गीतने गान ॥ नानाविध वा जित्र वाजे, नादें करी अंबर गाजे॥॥ वली नाटक पडह बत्रीश,पेखंता पूगे जगीश ॥ श्म सात दिन सु विचार, उत्सव कीधो अतिसार ॥ ५॥ पूनम दिन पू जीअर्ची,सुविशेष घणुं धन खरची ॥ सदुको लोक ते मंदिर पोहोतो, मनमोहे अति गहगहतो॥६॥ इंइध्व जनी बही ढाल, ए सोरती राग रसाल ॥ समयसुंदर कहे सुणो एह, वैराग उपजशे जेद ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी॥राग केदारो॥श्रेणिक राय, ढुंरे - अनाथी निथ॥ ए देशी॥ ॥ एक दिवसें राजा यावीयो, पेख्यो इंध्वज तेह ॥ मलमूत्र माहे पड्यो सडी, हाहा कुण अवस्था ए ह॥१॥रे जीवडा कारिमो ए संसार॥ बहु कुःख तो रे नंमार रे॥ जीवडा० ॥ए थांकणी॥ माणस पगे मरदीजतो, नींजतो कीच मकार ॥ एम देखी राजा चिंतवे, अहो अहो अथिर संसार ॥२॥रे जी॥ का रिमी शोना देहनी, पारके पुजलें होय ॥ हाथथी उ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005374
Book TitleKarkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages104
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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