Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ७४ )
तो चंग॥ तेरो कारण कहुं निग्गई, चोथो खम सुरंग ॥४॥ ॥ ढाल पहेली ॥ शीख न शीख न चेलणा ॥ देश ॥॥
॥ जंबुद्वीप सोहामणो, लाख जोयण मान ॥ द हिप जरत तिहां जलो, देश गंधार प्रधान ॥ १ ॥ रा ज करे सिंहरथ तिहां, राजा परचंम ॥ वयरी राय नमा डीया, परताप प्रखंम ॥ २ ॥ राज करे । ए यांक थी । पुंमर वर्धनपुर प्रतिननुं, बहु ऋद्धिसमृद्धि ॥ नूरमणी नालें तिलो, सघजे पर सि६ ॥ ३ ॥ राज० ॥ एकदिन राजा नेटणे, खाया अश्व दोय ॥ उत्तर पंथना उपना, देखे सहु कोय ॥ ४ ॥ राज० ॥ राजा राज्यकुम रथया, बेदु सवार । नगरथकी बाहिर गया, चलगा न मजार ॥ ५ ॥ राज० ॥ राजायें अश्व शेडावीयो, केहवो जोनं वेग ॥ पवनवेग जेम कडीयों, लागो उद्वेग ॥ ६ ॥ राज० ॥ जेम जेम वागं काठी ग्रही, तेम ते म चड्यो रोष || घटवी मांहे लेई गयो, खडतालीश कोश ॥ ७ ॥ राज० ॥ ढीली वाग मूकी तिहां, था क्यो नूपाल ॥ वक्रशिक्षित कनो रह्यो, घोडो ततका ल ॥ ८ ॥ राज० ॥ वक्रमाणस पण एहवां, समजा यां न जाय || लाल पाल माने नदी, खापें पाध सं ध्याय ॥ ए ॥ सज०॥ अश्व जेइ तरु बांधीयो, ए
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