Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 77
________________ (७७) ॥ ढाल बीजी॥ उपशम तरुबाया रस लीजेंए देशी॥ काल गयो केतो चितरता, पूरूं काम न थाय जी॥ चित्रांगद चितारा केरी, पुत्री एक कहायजी॥ ॥१॥ कनकमंजरी चतुर विचक्षण, सकल कलागुण जाजी॥ वेधक वचन अधिक चतुराश्यद्भुत रूप जु वानजी॥२॥कनक॥ ॥ए थांकणी॥ एक दि वसें चितारा पुत्री, लेई नक्त थाहारजी ॥ राजमा रग आवंती रोकी, खेलंते असवारजी ॥३॥ कनक०॥ ते असवार गयो जव दूरें, तव ते थावी तेतजी। पिता गयो नोजन मूकीने, देहनी चिंता हेतजी ॥४॥ कनक० ॥ नवरी बेठी तेणें चितारी, मणि कुहिम सु पवित्रजी ॥ वानाशं वारू चीतरियो, मोर पिड सुवि चित्रजी ॥५॥ ननक० ॥ तेणे अवसरें राजा तिहाँ आव्यो, जास्यो साचो मोरजी॥ जालण काजें जबकी कर वाह्यो। नांगा नख अतिजोरजी॥६॥ कनक०॥ ताली देई हसी चीतारी, वाह्यो मर्मनो बोलजी। त्रिदुं पायें मंगतो थोमांचो, चोथो मल्यो अमोलजी नक०॥ वचन सुपी वित्तखो थयो राजा, पूजे कहे कोण मंचजी ॥ कनकमंजरी कुमरी हसती, सघलों कहे प्रपंचजी ॥ ॥ कनक० ॥ बाप नणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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