Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 84
________________ (G ) तो तेमा हतो,जीरण कूपनी नीति ॥३६॥ मो॥ बार वरसें प्रीतम मल्यो, पद्मिनी पसली माहे ॥मोहो टां मुक्ताफल दीयां, करवा नारिनो उत्साहे ॥३॥मो॥ तिणें नारी ते नाखी दीयां,केम कियो पियुयुं रोषाया ज अमल पियु खवरावीयो, कही न शकुं पडे शोष ॥३७॥ मो० ॥ नवमे दिन वारो दीयो, नेद कह्यो राणी तामाकरकांतें ते रातां थयां, कीकी बबि मुख श्याम ॥ ३॥ मो०॥ मानिनी मनमांहे चिंतवे, मुज हती मोहोटी याश॥मुज गुंजाफल पियु दीयां,त्रंबक मूल न तास ॥ ४० ॥ मो० ॥ सुण नूप पंमित पू बिया,गया बार मांहे दोय॥ पूंते कहो केता रह्या,चो ज अ यहां कोय ॥४१॥ मो० ॥ एक कहे पंमित दश रह्या,बीजो कहे रह्यो एक ॥ त्रीजो कहे सघला गया, कहे स्वामिनी सुविवेक ॥ ४२ ॥ मो० ॥आज यांख फरके दाहिएी,कहेतां न आवे धात॥ चिंताज गावी शोकनी, मत कांई घाले घात ॥ ४३ ॥ मो० ॥ दशमे दिन वारो दियो, राणी कहे सुण दा स।एक श्रावण ने नाश्वो,बेदु गया बारे मास॥४॥ मो० ॥ क्ली सुण सखि एक कामिनी, कार्य विचार। कीय ॥ परदेशे पियुनें चालतां, शेलडी हाथे दोध ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104