Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 91
________________ (१) धिक् धिक् काम नोग ए अनरथ, धिक् धिक् ए संसा र ॥ वैराग्ये दृढशक्ति विद्याधर, सीधो संजम नार ॥ ॥ ॥ वात० ॥ व्यंतर माया करी जीवाडी, ते क न्या तेणि वार ॥बाप भागलें बेटी कहे सघलो,बांधव मरए प्रकार ॥ ७ ॥ वात ॥ साध कहे कन्या रूप फेयुं, किणे कारणें कहो देव ॥ देव कहे सांजल तुं मुनिवर, नांगँ तुफ संदेह ॥ ए॥वात०॥ वितिप्रतिष्ठ नगरीनो स्वामी, जितशत्र दुतो राय ॥ चित्रांगद पु त्री तेणें परणी, श्रावक शुभ कहेवाय ॥१॥वात अंतकाल जब दूळ चितारो,राय दीयो नवकार ॥ का त करी व्यंतर हूँ दुन,ए मोटो नपकार ॥११॥वात अन्यदिवसें आव्यो इणे वगमें, दीनी खिणी बाल॥ अधिक सनेह अवधि करी जाण्यो,पूरव नव ततकाल ॥१२॥ वात०॥ मुज पुत्री मत मार विद्याधर,जनक संघातें जाय ॥ में वियोग अण सहतें कीधी,ए क न्या मृतप्राय ॥ १३॥ वा०॥ में विप्रतायो तुं दवे ख मजे, मुनिवर मुफ अपराध ॥ तुं मुक व्रतनो हेतु थ यो सुर, एम कही विचस्यो साध ॥ १४॥ वा० ॥ व्यं तर देव वचन समरंती,कनकमाला गुन ध्यान ॥ ईहा पोह करतां तिहां पाम्यु,जातिसमरण ज्ञान॥१५॥वा. Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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