Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५३) तम तुं, तुफ नगरी दूर॥पालो जातां सुख पामीश तुं, ले विद्या नरपूर ॥२५॥ वा॥ प्रज्ञप्ति विद्या तेणे दीधी,नृपें लीधी तेणी वार ॥ सुखे समाधे सिंहरथ रा जा,पोहोतो नगरमजार॥२६॥वा० ॥ नगरलोक थयां यति हर्षित, वो जयजयकार ॥ समयसुंदर क हे पूरव नवनी, पांचमी ढाल उदार ॥२७॥ वा ॥
॥दोहा॥ .॥ एम ते राजा सिंहरथ,दिवस पांचमे जायादि न केता एक तिहां रहि, नवल वधू लपटाय ॥ १॥ नगर प्रतें जाय एह नृप,रमवा सिंहरथ राय ॥ तेणें कारण ते लोकमें,निग्गई नाम कहाय ॥२॥ अन्य दि वसे ते निग्गई,तिहां पोहोतो परमात ॥ केहवा लागों देवता, सुए राजन एक वात ॥३॥ सामि वोलावा थावीयो, ढुं जा बुं तेथ ॥ काल विलंब होशे घणो, ए दुःख करशे एथ ॥॥ तेणे कारणे तूं तिम करे, जेम ए सुखिणी थाय ॥ एम कहीने व्यंतर गयो,हवे नृप करे नपाय ॥ ५ ॥राजापुर वासियुं नर्बु, अति ऊंचा आवास॥धनवंत लोक वसे सुखी,आणंद लीलवि तास ॥६॥ उत्तंग तोरण देहरां,जिनवर बिंबं अनेक॥ स्नात्र महोत्सव नव नवा,वारू नगर विवेक ॥ ७ ॥
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