Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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नां वस्त्र धारण तज्यां जी, वली तज्या शोल श एगार ॥ बाप तो वेश मूलगो जी, पेहेरी बेठी ते णि वार ॥३॥क० ॥ शीशे तरूया तणी राखडी जी, काचनी धडकली कान ॥ उगनीयां पीतल तणां जी, दिसतां सोवन वान ॥४॥ करे ॥ नकवेस र मोती बीपर्नु जी, तिलक टीला तणुं त्यांह ॥ का च अकीकन। मुड्डी जी, काचनी कंचलि बांहि ॥५॥ क०॥ चनसरो बांध्यो गले चीडीयो जी,केसुडी बिंदली गाल ॥ दार पहेयो हिये शंखनो जी, वचमां गुंजा फल ताल ॥६॥करे ॥ जांजर बेठ कांसातणां जी, पीतल वीनिया पाय॥ पहरण बीटनो चरणीयो जी, Jढण लोबडी काय॥ ७ ॥ करे॥ एहवो वेश पेहेरी करी जी, जीवने दिये प्रतिबोध ॥ तुं म कर जीव गारवो जी, तुं म कर वली क्रोध ॥ ॥करे॥ ए सघली कदि रायनी जी, ए तुज मूलगो वेश॥ पु एय प्रमाणे सुख पामीयो जी, मकर गर्व तुं लेश ॥ ॥ ए ॥ करे॥ गर्व थोडो पण जो कियो जी, तो तुऊने नृप एह ॥ कंठे जाली परी काढशे जी, तुरत देशे तुझ लेह ॥१०॥ करे॥ एणी परें आत्मा निं दती जी, नेदती कर्मनी कोड ॥आपणां पाप या
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