Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 87
________________ ( ७) नां वस्त्र धारण तज्यां जी, वली तज्या शोल श एगार ॥ बाप तो वेश मूलगो जी, पेहेरी बेठी ते णि वार ॥३॥क० ॥ शीशे तरूया तणी राखडी जी, काचनी धडकली कान ॥ उगनीयां पीतल तणां जी, दिसतां सोवन वान ॥४॥ करे ॥ नकवेस र मोती बीपर्नु जी, तिलक टीला तणुं त्यांह ॥ का च अकीकन। मुड्डी जी, काचनी कंचलि बांहि ॥५॥ क०॥ चनसरो बांध्यो गले चीडीयो जी,केसुडी बिंदली गाल ॥ दार पहेयो हिये शंखनो जी, वचमां गुंजा फल ताल ॥६॥करे ॥ जांजर बेठ कांसातणां जी, पीतल वीनिया पाय॥ पहरण बीटनो चरणीयो जी, Jढण लोबडी काय॥ ७ ॥ करे॥ एहवो वेश पेहेरी करी जी, जीवने दिये प्रतिबोध ॥ तुं म कर जीव गारवो जी, तुं म कर वली क्रोध ॥ ॥करे॥ ए सघली कदि रायनी जी, ए तुज मूलगो वेश॥ पु एय प्रमाणे सुख पामीयो जी, मकर गर्व तुं लेश ॥ ॥ ए ॥ करे॥ गर्व थोडो पण जो कियो जी, तो तुऊने नृप एह ॥ कंठे जाली परी काढशे जी, तुरत देशे तुझ लेह ॥१०॥ करे॥ एणी परें आत्मा निं दती जी, नेदती कर्मनी कोड ॥आपणां पाप या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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