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लोवती जी, जगवंत नवथी बोड ॥ ११ ॥ क०॥ शोक्य शू ली सरखी कही जी, पगने धाखे होये पेसी ॥ निशदिन बिजोती रहेजी, मारे सूइ गले बेसी ॥ १२ ॥ ॥ करे || रात दिन बिड् जोती थकीजी, देखीयो ए प्रस्ताव ॥ नूपनें तेडी संजारीयोजी, शोक्यनो डुष्ट स्वना व ॥ १३ ॥ करे० ॥ सुण पियु तें ह्मनें तजीजी, वि ए अपराध विशेष ॥ तेहनुं दुःख अमको नहींजी, पण कुलक्षय हुंतो देख ॥ १४ ॥ करे० ॥ जेणे तुमनें आप वश की योजी, तेद चितारी धूतारि ॥ तुक नयी ते काम करेजी, मानजे सही निरधार ॥ १५ ॥ क रे० ॥ नृप कहे वात केम मानीयें जी, कामण केम क रे कोय ॥ जीवी अधिक मुऊने गणेजी, दूधमें पूरा म जोय ॥ १६ ॥ करे ० ॥ कामनुं एह पारखुंजी, अ वगुण गुण करी दी । जो में नयरों देखाडनुंजी, तो पण मानीश नीव ॥ १७ ॥ करे० || बेसे मध्या न्ह प्रावास में जी, मंत्र साधन करे नित्य ॥ निरति क रवा नर मूकीघोजी, ते कहे वात ए सत्य ॥ १ ८॥ करे ० तो पण राय माने नहींजी, खाप रह्यो प्रचन्न ॥ नजरें दी ठी थाप निंदतीजी, वचन सुयां निजकन्न ॥ १९ ॥ || करे | ए वृत्तांत जाणी करीजी, चिंतवे नूप ए धन्य ॥
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