Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 78
________________ (७७) नोजन आणंती, दौठो पुरुष में एकजी॥राजमारग घोडो छोडंतो, ते माहे नही विवेकजी ॥ए॥ कन क०॥ दयाजाव नही ते माहे,मूढ न जाणे एमजी॥ वढू बेटी बूढीने बाली, चाले मारग केमजी॥१०॥ कनक० ॥ एक मूरख ए पेहेलो पायो, बीजो पायो एहजी ॥ जेणें मुफ बाप नणी चित्रशाला, सरखी विहेंची तेहजी॥११॥ कनक०॥ बहु परिवारें बीजा चितारा,मुफ पिता असहायजी॥अति निर्धन बूढो केम तेहने, सरि काम देवायजी॥१२॥कनक॥ मुक पिता त्रीजो ए मूरख, नोजन वेला विवादजी॥ देहचिंता कठीने जाये,शीतल किस्यो सवादज॥१३ ॥ कनक० ॥ शीतल अन्न जन्म पुत्रीन, कर्षण ह त्यो कुवायजी॥ वयर विरोध सगाणुं चारे, स्वाद दीन कहेवायजी ॥ १४॥ कनक०॥ चोथो मूरख तूं राजे सर,जेणे थाल्यो मन नर्मजी॥ मोर किहां आवे वामें, जास्यो नदी ए मर्मजी॥१५॥कनक०॥ ऐ ऐरा जन तुज चतुराई, ऐ ऐ बुदिपारजी॥ घणा दिवस थो जोता मलीया, मूरख पाया चारजी॥ १६॥ कन कवचन चातुरी रंजियोराजा,रंजियो देखी रूपजी। गति मति धृति थारुति अति रंज्यो, कुमरी एह अनू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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