Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 68
________________ (६७) रथाव्यों हतो, हुँ जिन महिमा हेत ॥ २॥ प्रतिबू ज्यो राजा नमि,त्रीजो प्रत्येक बुझ॥ नावें चारित्र ती यो नलो, संवेगी मनशु६॥३॥पाट थापी निज पुत्र ने,राज रमणि सवि मि॥ माया ममता परिहरी,नमि पहोतो वनखंम॥४॥ इंश परीक्षा यावीयो, करी ब्रा ह्मणनुरूप ॥ नमिराजा वैरागर्नु,देखें कोण स्वरूप॥५॥ ॥ ढाल पंदरमी॥बे बांधव वंदन चल्याए देशी॥ .॥कहे नमि रायनें,हेतु कारण पडिचोय रे॥ ए ह अर्थ श्रवणें सुणी, प्रश्नपडुत्तर जोय रे ॥ १ ॥ कहे नमि० ॥ मिथिला नगरी मंदिरे, सबल कोला दल आजो रे ॥ दारुण दीन दयामणो, केम सुणीय ऋषिराजो रे ॥ २ ॥ ३० ॥ नमि राजा कहे इंइने, हे तु कारण पडिचोय रे ॥ एद यर्थ श्रवणें सुणी, प्रश्न पडुसर जोय रे ॥ ३ ॥ नमि॥ मिथिला नगरी वने हतो,दमनोरम नामो रे ॥फल फूलें गया शोनतो,ब दुपंखी विश्रामो रे ॥४॥न ॥ ते तरु वाय कंपावी यो, तेणे पंखीनां वृंदो रे । हीन दीन खीयां थकां, अशरण करे थाकंदो रे ॥ ५॥ न० ॥ यनिएं मिथि ला बलें, मंदिरनो नहीं लेखो रे ॥ एह यंतेनर पारडे, एक वार फरि देखो रे ॥६॥ इं० ॥सुखें समाधे जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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