Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 69
________________ (६५) बुं वसुं, काम नही किणतां रे ॥ मिथिला नगरी दा ऊतां, थम न बले इहां कां रे ॥ ७ ॥न ॥ गढ गोपुर करि थर्गला, थट्टालक खणे खा रे ॥ यंत्रशत नी सज करी, क्षत्रिय तुं पनी जाइ रें॥ ॥ इं०॥ श्रद्धानगरी में सजी,उपशम रस प्राकारो रे॥संवेग रूप गोपुर सज्यो, तप नोगल अति सारो रे ॥ ए॥न॥ सबल कमाड संवर तणां, खाइयंत्र थाटालो रे ॥ ए .त्रणे सबला सज्या, त्रणे गुप्ति विशालो रे ॥ १० ॥ ॥ नमि०॥वीरज धनुष चढावी\ समिति प्रत्यंचा चा ढी रे॥धैर्यमुति काठी ग्रही,सत्ययुं वींटी गाढी रे॥११ ॥नाबार नेद तप बाणगं,कर्म कंचुकने नेदी रे॥मु जथातम रूप शत्रुने, जीपे जिनमत वेदी रे ॥ १ ॥ न०॥ऊंचां मंदिर मालीयां,वरंमी वर प्रासादो रे॥नवा करावी थापणां, पबीतजे परमादो रे ॥ १३ ॥न०॥ मारग वचें घर ते करे,जे मन धरे संदेहो रे ॥ निचे मुक्ति नणी चल्यो, तस घर शाश्वतो तेहो रे ॥ १४ ॥ न०॥ लोमहार तस्कर बुरो, गंठी बोड निवारी रे ॥ निरुपश्व नगरी करी, होजे पनी व्रतधारी रे॥१५॥ इंइ०॥ एह अन्याय इहां घणो, मिथ्यामति दंम दी में रे ॥ विण थपराधी बांधायें, अपराधी मूकीजें रे॥ Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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