Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 34
________________ ( ३४ ) तारी मुड्डी, जीव नरत नरेसर जोय ॥ ३॥ रे जी० ॥ कारिमुं रूप संसारमां, मत करो गर्व लगार ॥ विष्ण सतां ऋण वेला नहीं, जुन चक्रवर्ती सनतकुमार ॥ ४ ॥ रे जी० ॥ कारिमि ऋद्धि संसारमा, ऋणमांहे खूटि जाय ॥ चंमाल घरें चाकर रह्यो, पाणी आल्यो रे हरिचंद राय ॥ ५ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण मातनुं, दृष्टांत चुलणी जोय ॥ निज पुत्रने बाल जणी, याग दीधी मन करी कोय ॥ ६ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं राज संसार मां, दीसतां सुख एकवार ॥ समनें ब्रह्मदत्त बेक, ग या सातमी नरक मकार ॥ ७ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सग पण बापनुं, कीयो कनक नर घनर्थ ॥ आपणो अं गज बेदीयो, ज्ञातासूत्रे एह अर्थ ॥ ८ ॥ रेजी० ॥ का रिमुं सगपण बापनुं, कोणी कें कीधुं पाप ॥ श्रेणिक काठ पंजर दीयो, नित्य नाडी मरायो बाप ॥ ए ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण बंधुनुं, जीव जोयें हृदय मजार ॥ ते भरत बाहुबल नड्या, एक एकने रे दी धा प्रहार ॥१०॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण नारितुं, पतिमारिका दृष्टांत ॥ नरतार माखो आपणो, मांस नाखण रे गई एकांत ॥ ११ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सग पण कंतनुं, न कीयो सबज अन्याय ॥ वनमांहें दम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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