Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 61
________________ (६१) हितकाम रे ॥ मयणरेहाने प्रणमी करी रे, सुर गयो यापण गम रे॥१०॥ मन ॥ साधवी पासें संजम लियो रे,मयणरेता अनिराम रे ॥ तप जप कतिन करी धाकरां रे, साधवी सुव्रता नाम रे ॥११॥ मन०॥ बार मी ढाल पूरी थई रे,मोहनीकर्म अधिकार रे।समय सुं दर कहे दवे सुणोरे,पुत्रनो कोण प्रकार रे।।१॥मन। ॥ दोहा ॥ . ॥ तेरो बालक वधतां तिहां, शत्रु नमाड्या जेण॥ नाम यथारथ पापियुं, कुमरतणुं नमि तेण ॥१॥था नवरसनो तिणे कीयो,सकल कला अन्यास॥अनुक्रमें यौवन धावियु, मृगनयणी दृगपास ॥॥ वंश इका गनी नपनी,रूपवंत गुणवंत॥सहस बगेत्तर कन्यका, परणावी अति कंत ॥३॥ निज नारीशु परिवस्यो,अपह र युं जेम इंद ॥काम नोग सुख जोगवे, पामे परमाणंद ॥४॥ हवे ते राजा पद्मरथ, नमिने देई राज ॥ दीक्षा लेई मुगतें गयो, सास्यां धातम काज ॥ ५॥ ते पण मणिरथ पापीयो, निजबंधवने मार ॥ तेणें निशिथ हि मशीयो मू, नरक गयो निर्धार ॥ ६ ॥ चंजस राजा थापियो, मति मेहेते परधान ॥ पाले राज पर शु, दिनदिन अधिके वान ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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