Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(६४)
॥हा॥ १५॥ सजन संबंधी सघलां थायां, नयरों नारप्रवाह करें ॥ हां०॥ कहो साधवी तुम्हें संज म मारग, दुःकर लीधो केणि परें । हांग ॥ १६ ॥ चंइजसा कहे किहां मुफ बांधव,साधवी वात कही संघ ली॥हा॥जेणसेंती तूं जुड़ करे ते,बांधव तुज रंग रली॥हां० ॥१७॥ चंजसा मलवा नणी चाल्यो, न मि साम्हो थाइपाय लागो॥हा॥ बांधव बेन मल्या मनरंगें, लोक तणी मन मर नागो ॥ हां ॥ १७ ॥ नमिराजाने देश अवंती, राज देई वैराग नजी॥हा॥ चंजसा गुरुपासें दीक्षा, ग्रदी का रिमी शदि तजी॥ हां ॥ १५ ॥ नमि राजा जोगवे मिथिलापुरी, नगर सुदर्शन राज बेई॥ हां० ॥ समय सुंदर कहे सुणो हो च तुर नर, तेरमी ढाल ए चित्त देई । हां ॥ २० ॥ .. ॥ ढाल चौदमी ॥ नावनानी देशी॥
॥हो राज बे रूडी परें । रूडी परें रेहो ॥ सुख नो गवतां सुविशेष ॥ हो देह दायज्वर नपनो रेहो ॥ न मटे पीड निमेष ॥ १॥ दो कर्मथी न बूटे रे, कोई विण जोगव्या रे॥ दो कडूवां कर्मविपाक हो दादब मासी तनु दहे॥ तारेहो जाणेघगनिनी जाल ॥ हो सहि न शके नेमि वेदना ॥ वे ॥ रेहो नोजन
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104