Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४३) युनी पासें थावे,कोमल वचनें कंत जगावे॥मयणरेहा बोले थति मीठो, चंदसुपन स्वामी में दोगे ॥३॥ सुं दर शोल कला संपूरण,तापसंताप तिमिरनर चूरण ॥ गगन मंगलथी ते उतरतो,दोतो वदन प्रवेश करतो॥४ तेह तणुं फल कहों मुज स्वामी,हुँ पू तुमने शिर ना मी ॥ वनिता वचन सुणी नृप हरख्यो,कहे तें सुपन न लोथति निरख्यो ॥५॥ सुपन एह तणे अनुसारें, पुत्र होशे परधान तुम्हारे ॥तहत्ति करी राणी घर: वे,सु ख नोगवती काल गमावे ॥६॥त्रीजे मासें कपनाम हलो, गर्नवतीने एहज सोहिलो ॥ जाणे जिनवर पू जा कीजें, साधु समीप वखाए मुगीजें ॥७॥ उत्त म दान सुपात्रं दीजें,एणी परें लखमी लाहो लीजें ॥ उत्तम गर्न तणे परनावें, माता उत्तम मोहलो पावे ॥॥ अधम गर्न पेटें जो घावे,माने ईट लीहाला ना वे॥ होंश करे माटी खावानी, चोरी पेसी बानी मानी॥ मानला जला मोहला नपना जेह, मयणरे हा पूराणा तेह ॥ त्रीजी ढाल कही ए सार,समय सुं दर कहे सुपन विचार ॥ १०॥
॥ ढाल चोथी॥ जुबखडानी देशीमां ॥ ॥तेणे अवसरें सोहामो,थायोमास वसंत ॥सुरं
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