Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 47
________________ ( ४ ७ ) शेकावे पेट रे ॥ साधु सबल तपसी ढुंतो, काम विडंब्यो नेटो रे ॥ ८ ॥ धि० ॥ चित्त चूक्युं रहने मिनुं, चरम शरीरी जेहो रे ॥ गुफामांहि राजुल तणो, देखी कथा डो देहो रे ॥ ए ॥ धि०॥ साधु द्रुतो कुलवालुङ, वे श्यालुब्धो जेहो रे ॥ थून पडाव्यो जिन तणो, अनर थ कीधो एहो रे ॥ १० ॥ धि०॥ साधवी पण सुकुमा लिका, मूकी मसाण पासो रे ॥ सारथवाहचं घर कीयुं, जोगव्या जोग विलासो रे ॥ ११ ॥ धि ॥ दमयंती देखी करी, चूको नल अणगारो रे || चेला रूप देखी च ल्यो, वीर तणो परिवारो रे ॥ १२ ॥ धि० ॥ नूल्यो पु त्री प्रजापति, यहिल्या नूल्यो इंदो रे ॥ जननीशुं जा व्द जुल्यो, नगिनी अहिउंदो रे ॥ १३ ॥ धि० ॥ एम अनेक जोगी यति, चूक्या कर्मविशेषें रे ॥ तेम चू क्यो मणिरथ इहां, मयारेहारूप देख्यो रे ॥ १४ ॥ धि० बह ढाल पूरी थई, कह्या केता अधिकारो रे ॥ सम यसुंदर कहे धन्य तिके, पाले शीयल उदारो रे ॥१५॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे मणिरथने पाहरु, जोरें नगर लेई जाय ॥ निरतिकरी चंड्जस नली, वैद्य तेडी वन धाय ॥ १ ॥ चंड्जस पण खाव्यो तिहां, करतो मुख खाकंद ॥ गा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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